काया कसूं कमाण ज्यूँ हिंदी मीनिंग Kaya Kasu Kamaan Jyu Meaning
काया कसूं कमाण ज्यूँ, पंचतत्त करि बांण।
मारौं तो मन मृग को, नहीं तो मिथ्या जाँण॥
Kaaya Kasu Kamaan Jyu, Panchtatv Kari Baan,
Maaro To Man Mrig Ko, Nahi To Mithya Jaan.
काया कसूं : काया को कसुं, काया को नियंत्रित करूँ.
कमाण ज्यूँ : जैसे कमान पर चाप चढ़ाकर उसे कसा जाता है.
पंचतत्त : पंचतत्व, (क्षिति, जल, पावक, गगन समीर)
करि बांण : बाण बना लूँ, बाण कर लूँ.
मारौं तो : मारू तो.
मन मृग को : मन रूपी मृग (मन रूपी मृग को मारो)
नहीं तो मिथ्या जाँण : अन्यथा इसे मिथ्या जानों.
कबीर साहेब की वाणी है की यदि मारना ही है तो मन को मारो और पञ्च तत्वों को बाण बनाकर काया को साधक बनाकर इस मन को नियंत्रित करो और विकारों को समाप्त कर दो. यदि मन रूपी मृग को समाप्त नहीं किया जाता है तो समस्त साधना और भक्ति व्यर्थ है. भाव है की कबीर साहेब ने अनेकों स्थान पर कहा है की जब व्यक्ति भक्ति मार्ग पर आगे बढ़ता है तो वह वहां पर टिक कर नहीं रह सकता है. कारण है की साधक के मन में द्वन्द भाव रहता है. वह पुनः माया और सांसारिक विकारों के प्रति आकर्षित हो उठता है. अतः मन की चंचलता को समाप्त करना अत्यंत ही आवश्यक है. प्रस्तुत साखी में रूपक एंव उपमा अलंकार की व्यंजना हुई है.
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।
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