मनह मनोरथ छाँड़ि दे हिंदी मीनिंग Manah Manorath Chhadi De Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe Hindi Meaning (Hindi Arth/Hindi Bhavarth)
मनह मनोरथ छाँड़ि दे, तेरा किया न होइ।पाँणी मैं घीव नीकसै, तो रूखा खाइ न कोइ॥
मनह : मन, हृदय.
मनोरथ : मनोरथ, मन का चाहा.
छाँड़ि दे : छोड़ दे.
तेरा किया न होइ : तेरा किया नहीं होगा.
पाँणी मैं घीव निकसै : यदि पानी से ही घी निकलता हो.
तो रूखा खाइ न कोइ : तब तो रुखा कोई नहीं खाता, सभी घी को ही खाते.
मनोरथ : मनोरथ, मन का चाहा.
छाँड़ि दे : छोड़ दे.
तेरा किया न होइ : तेरा किया नहीं होगा.
पाँणी मैं घीव निकसै : यदि पानी से ही घी निकलता हो.
तो रूखा खाइ न कोइ : तब तो रुखा कोई नहीं खाता, सभी घी को ही खाते.
कबीर साहेब की वाणी है की हे जीव तू अपने मनोरथ को छोड़ दे, तेरा किया कुछ भी नहीं होने वाला है. नियामक शक्ति तो वह पूर्ण परम ब्रह्म है. तुम जो सोचते हो वह कभी होता नहीं है. व्यक्ति का सोचा हुआ तो पानी के समान ही है जिसे कितना भी मथा जाए, उसमे से घी की प्राप्ति नहीं होने वाली है. प्रस्तुत साखी में दृष्टान्त अलंकार की सफल व्यंजना हुई है. मनोरथ महज एक भ्रम है
श्रेणी : कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग