उतीथैं कोइ न आवई हिंदी मीनिंग
उतीथैं कोइ न आवई, जाकूँ बूझौं धाइ।
इतथैं सबै पठाइये, भार लदाइ लदाइ॥
Uteethe Koi Na Aavai, Jaaku Bujho Dhaai,
Itathe Sabe Pathiye, Bhaar Ladaai Ladaai.
उतीथैं : वहां से, परमात्मा से.
कोइ न आवई : कोई लौटकर नहीं आता है.
जाकूँ बूझौं धाइ : जिसको जाकर पूछ लिया जाय, जिससे पता किया जाए.
इतथैं : यहाँ से, मृत्युलोक, प्रथ्वी से.
सबै : सभी
पठाइये : जाते हैं.
भार लदाइ लदाइ : कर्म रूपी फल।
पूर्ण परमात्मा से कोई लौटकर नहीं आता है जिससे दौडकर यह पूछा जाए की वहां का हाल क्या है, वहां क्या हो रहा है आदि. इस जगत के समस्त लोगों को मैंने भार लादकर जाते हुए देखा है. सभी अपने कर्मों की गठरी को अपने सर पर लादे हुए चले जाते हैं. परमात्मा के यहाँ क्या होता है, कैसे होता है यह जीवात्मा की जीज्ञासा है जो साधक को बनी रहती है. अतः इस साखी का मूल भाव है की जब तक व्यक्ति सांसारिक क्रियाओं में लिप्त रहता है वह भव सागर से पार नहीं हो पायेगा और उसका आवागमन यूँही लगा रहेगा.
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।
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