तेरे संग में रहेंगे ओ मोहना भजन

तेरे संग में रहेंगे ओ मोहना भजन

 
तेरे संग में रहेंगे ओ मोहना भजन

तेरे संग में रहेंगे, ओ मोहना,
तेरे सँग में रहेंगे, ओ मोहना,
ओ मोहना, ओ सोहना,
ओ मोहना, ओ सोहना।

तुम चन्दन बनों, मैं पानी बनूँ,
तुम चंदन बनो, मैं पानी बनूँ,
मस्तक पर मिलेंगे, ओ मोहना,
तेरे संग में रहेंगे, ओ मोहना,
तेरे सँग में रहेंगे, ओ मोहना,
ओ मोहना, ओ सोहना,
ओ मोहना, ओ सोहना।

तुम पुष्प बनों, मैं धागा बनूँ,
तुम पुष्प बनो, मैं धागा बनूँ,
माला में मिलेंगे ओ मोहना,
तेरे संग में रहेंगे, ओ मोहना,
तेरे सँग में रहेंगे, ओ मोहना,
ओ मोहना, ओ सोहना,
ओ मोहना, ओ सोहना।

तुम मुरली बनों, मैं तान बनूँ,
तुम मुरली बनों, मैं तान बनूँ,
अधरों पर मिलेंगे, ओ मोहना
तेरे संग में रहेंगे, ओ मोहना,
तेरे सँग में रहेंगे, ओ मोहना,
ओ मोहना, ओ सोहना,
ओ मोहना, ओ सोहना।

तुम वक्ता बनों, मैं श्रोता बनूँ,
तुम वक्ता बनों, मैं श्रोता बनूँ,
भागवत में मिलेंगे, ओ मोहना,
तेरे संग में रहेंगे, ओ मोहना,
तेरे सँग में रहेंगे, ओ मोहना,
ओ मोहना, ओ सोहना,
ओ मोहना, ओ सोहना।

तेरे संग में रहेंगे, ओ मोहना,
तेरे सँग में रहेंगे, ओ मोहना,
ओ मोहना, ओ सोहना,
ओ मोहना, ओ सोहना।

श्रेणी : कृष्ण भजन 


तेरे संग में रहेंगे ओ मोहना by गौरव कृष्ण जी महाराज

Tere Sang Mein Rahenge, O Mohana,
Tere Sang Mein Rahenge, O Mohana,
O Mohana, O Sohana,
O Mohana, O Sohana.

Tum Chandan Banon, Main Paani Banun,
Tum Chandan Bano, Main Paani Banun,
Mastak Par Milenge, O Mohana,
Tere Sang Mein Rahenge, O Mohana,
Tere Sang Mein Rahenge, O Mohana,
O Mohana, O Sohana,
O Mohana, O Sohana. 
 
हृदय में एक ऐसी अनन्य भक्ति और प्रेम का भाव उमड़ता है, जो उस परम प्रिय के साथ हर रूप में एकाकार होने की तीव्र आकांक्षा रखता है। यह प्रेम केवल सांसारिक बंधनों तक सीमित नहीं, बल्कि एक ऐसी आत्मिक संगति है, जो हर रूप, हर अवस्था में उस सत्ता के साथ मिलन का स्वप्न देखता है। जैसे चंदन और पानी एक-दूसरे में घुलकर मस्तक पर तिलक की शोभा बढ़ाते हैं, वैसे ही भक्त का मन उस प्रिय के साथ हर पल, हर रूप में संनादित होने को आतुर रहता है। यह भावना एक ऐसी मधुर एकता की खोज है, जो पुष्प और धागे की तरह माला में, मुरली और तान की तरह अधरों पर, या वक्ता और श्रोता की तरह ज्ञान के सागर में मिलन का प्रतीक बनती है। यह प्रेम हर सांस में उसकी उपस्थिति को अनुभव करने का संकल्प है।

श्रीकृष्ण को ‘मोहन’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह शब्द ‘मोहित करने वाले’, ‘आकर्षित करने वाले’ या ‘सम्मोहनकारी’ अर्थ में प्रयोग होता है। भगवान श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व इतना मनमोहक था कि उनके रूप, उनकी मुस्कान, उनकी बाँसुरी की तान और उनकी बाल लीलाएँ सभी को आकर्षित कर लेती थीं—चाहे वह गोपियाँ हों, बाल-सखाएँ हों, पशु-पक्षी या सम्पूर्ण वृन्दावन की प्रकृति।

उनकी मोहक छवि और चित्ताकर्षक लीलाएँ देख कर राधा और अन्य गोपियाँ उन्हें प्रेम से ‘मोहन’ या ‘मनमोहन’ पुकारती थीं। इसका भाव है—जो सबके मन को फिर अपनी ओर खींच ले, वह मोहन है। कृष्ण जी की अद्भुत लीला, माधुर्य, करुणा और सहजता ही उनके ‘मोहन’ नाम का आधार है। इसी कारण भक्ति और प्रेम के गीतों में वे बरसों से ‘मोहन’ नाम से पुकारे जाते हैं।
 
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