बाड़ि चढ़ती बेलि ज्यूँ उलझी, आसा फंध मीनिंग Badi Chadhati Beli Jyu Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe Hindi Meaning (Hindi Arth/Hindi Bhavarth Sahit)
बाड़ि चढ़ती बेलि ज्यूँ, उलझी, आसा फंध।तूटै पणि छूटै नहीं, भई ज बाना बंध॥
Baadi Chadhati Beli Jyu, Ulajhi Aasa Fandh,
Tute Pani Chhute Nahi, Bhayi Je Baana Bandh.
बाड़ि चढ़ती बेलि ज्यूँ : बाड पर चढ़ती बेल की भाँती.
उलझी, आसा फंध : माया, आशा के फंद/जाल में उलझ जाती है.
तूटै पणि छूटै नहीं : टूटने पर भी छूटती नहीं है.
भई ज बाना बंध : जैसे कोई वचन से बंधा हुआ व्यक्ति हो.
बाड़ि : खेत के चारों तरफ कंटीली झाड़ियों से बनाई गई सुरक्षा दीवार.
चढ़ती : ऊपर चढ़ती है.
बेलि : बेल लता.
ज्यूँ : जैसे.
उलझी : आपस में उलझ जाती है.
आसा : मोह और माया, कामना और लालसा.
फंध : जाल, फांस.
तूटै : टूट जाती है.
पणि : लेकिन.
छूटै नहीं : मुक्त नहीं होती है.
भई ज बाना बंध : जैसे कोई वचनबद्ध हो.
उलझी, आसा फंध : माया, आशा के फंद/जाल में उलझ जाती है.
तूटै पणि छूटै नहीं : टूटने पर भी छूटती नहीं है.
भई ज बाना बंध : जैसे कोई वचन से बंधा हुआ व्यक्ति हो.
बाड़ि : खेत के चारों तरफ कंटीली झाड़ियों से बनाई गई सुरक्षा दीवार.
चढ़ती : ऊपर चढ़ती है.
बेलि : बेल लता.
ज्यूँ : जैसे.
उलझी : आपस में उलझ जाती है.
आसा : मोह और माया, कामना और लालसा.
फंध : जाल, फांस.
तूटै : टूट जाती है.
पणि : लेकिन.
छूटै नहीं : मुक्त नहीं होती है.
भई ज बाना बंध : जैसे कोई वचनबद्ध हो.
कबीर साहेब की वाणी है की संसार रूपी जगत में माया रूपी बेल/लता ऐसी ही पसरी हुई है, फैली हुई है जैसे खेत की बाड पर लता फ़ैल जाती है. यह लता
फैलकर आपस में उलझ जाती है. जीवात्मा आशा रूपी फंदे में पड़कर झूल रही है. अतः जीव माया में बंधा हुआ है, उलझा हुआ है. इसका निकलना आसान नहीं
होता है. जैसे यदि कोई व्यक्ति वचन देकर अपने वचनों में बंध जाता है, वैसे ही माया में फंसकर व्यक्ति फंसा ही रह जाता है और उबर नहीं पाता है.
प्रस्तुत साखी में उपमा रूपक और द्रष्टान्त अलंकर की व्यंजना हुई है. अतः मूल भाव है की व्यक्ति को माया के बंध को जानकर उससे मुक्ति का प्रयत्न करना चाहिए.
फैलकर आपस में उलझ जाती है. जीवात्मा आशा रूपी फंदे में पड़कर झूल रही है. अतः जीव माया में बंधा हुआ है, उलझा हुआ है. इसका निकलना आसान नहीं
होता है. जैसे यदि कोई व्यक्ति वचन देकर अपने वचनों में बंध जाता है, वैसे ही माया में फंसकर व्यक्ति फंसा ही रह जाता है और उबर नहीं पाता है.
प्रस्तुत साखी में उपमा रूपक और द्रष्टान्त अलंकर की व्यंजना हुई है. अतः मूल भाव है की व्यक्ति को माया के बंध को जानकर उससे मुक्ति का प्रयत्न करना चाहिए.
भजन श्रेणी : कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग