कबीर कलि खोटी भई मुनियर मिलै मीनिंग
कबीर कलि खोटी भई मुनियर मिलै न कोइ मीनिंग
कबीर कलि खोटी भई, मुनियर मिलै न कोइ।
लालच लोभी मसकरा, तिनकूँ आदर होइ॥
Kabir Kali Khoti Bhai, Muniyar Mile Na Koi,
Lalach Lobhi Maskara, Tinaku Aadar Hoi.
कबीर कलि खोटी भई : कबीर साहेब कहते हैं की कलियुग में खोटा हुआ है, बुरा हुआ है.
मुनियर मिलै न कोइ : कोई सच्चा मुनि, संतजन नहीं मिला है.
लालच लोभी मसकरा : ज्यादातर लालची, लोभी और मसखरा ही मिले हैं.
तिनकूँ आदर होइ: वर्तमान में उन्ही का आदर हो रहा है.
कलि: कलिकाल, कलियुग.
खोटी भई : बहुत ही बुरा हो रहा है.
मुनियर : मुनिजन, संतजन.
मिलै न कोइ : कोई नहीं मिला है.
लालच लोभी : माया प्राप्त करने के लोभी और लालची.
मसकरा : हास्य, विनोद करके लोगों को खुश करने वाला.
तिनकूँ : उन्ही को, उन्ही का.
आदर : सम्मान, इज्जत होना, बड़ा नाम होना.
होइ : होता है.
मुनियर मिलै न कोइ : कोई सच्चा मुनि, संतजन नहीं मिला है.
लालच लोभी मसकरा : ज्यादातर लालची, लोभी और मसखरा ही मिले हैं.
तिनकूँ आदर होइ: वर्तमान में उन्ही का आदर हो रहा है.
कलि: कलिकाल, कलियुग.
खोटी भई : बहुत ही बुरा हो रहा है.
मुनियर : मुनिजन, संतजन.
मिलै न कोइ : कोई नहीं मिला है.
लालच लोभी : माया प्राप्त करने के लोभी और लालची.
मसकरा : हास्य, विनोद करके लोगों को खुश करने वाला.
तिनकूँ : उन्ही को, उन्ही का.
आदर : सम्मान, इज्जत होना, बड़ा नाम होना.
होइ : होता है.
यह कलियुग का ही प्रभाव है की कलियुग में बहुत ही बुरा हो रहा, कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा है. कलियुग के प्रभाव के कारण से ही वर्तमान में सच्ची भक्ति करने वालों का कोई स्थान नहीं है. वर्तमान में मसखरों और लोभी लालची व्यक्तियों का ही बोलबाला है और उन्ही को ही सम्मान प्राप्त होता है. प्रस्तुत साखी में ऐसे लोगों के प्रति व्यंग्य किया है जो की भक्ति का ढोंग रचते हैं, स्वांग भरते हैं और भक्ति का नाटक करते हैं. वे सच्चे हृदय से भक्ति नहीं करते हैं. व्यंग्य है की जो मसखरे हैं, बस बातें बनाना जानते हैं उन्ही का सम्मान होता है. अतः साहेब का सन्देश है की यदि भक्ति करनी है तो हृदय से करनी चाहिए. दिखावटी भक्ति व्यक्ति का कल्याण नहीं कर सकती है.
कबीर दास जी की यह साखी कलियुग के स्वरूप और उसकी विकृतियों पर व्यंग्य करती है। वे कहते हैं कि कलियुग में समय बड़ा ही दूषित और बुरा हो गया है। सच्चे मुनि और संत मिलना कठिन हो गया है, बल्कि साधुता और भक्ति का वास्तविक स्वरूप कहीं खोजने पर भी नहीं मिलता। इसके विपरीत, समाज में दिखावा करने वाले, लोभी, लालच से भरे और मसखरा स्वभाव वाले लोग अधिक सम्मान पा रहे हैं। ऐसे लोग भक्ति का स्वांग रचते हैं, मीठी-मीठी बातें करते हैं या हास्य-विनोद करके लोगों को प्रभावित करते हैं, लेकिन उनके जीवन में सच्ची साधना और भक्तिभाव नहीं होता।
इस साखी का भाव यह है कि कलियुग में वास्तविक साधना और सच्चे संतों का महत्व कम हो गया है, जबकि ढोंग और बाहरी आडंबर को लोग अधिक मान्यता देने लगे हैं। कबीर इस प्रवृत्ति पर कटाक्ष करते हुए यह संदेश देते हैं कि जो लोग केवल दिखावा और कपट से भक्ति का अभिनय करते हैं, उनका कोई आध्यात्मिक लाभ नहीं होता। सच्ची भक्ति बाहरी प्रदर्शन में नहीं, बल्कि हृदय की सच्चाई और भीतर की साधना में है। यही कल्याण का मार्ग है।
इस साखी का भाव यह है कि कलियुग में वास्तविक साधना और सच्चे संतों का महत्व कम हो गया है, जबकि ढोंग और बाहरी आडंबर को लोग अधिक मान्यता देने लगे हैं। कबीर इस प्रवृत्ति पर कटाक्ष करते हुए यह संदेश देते हैं कि जो लोग केवल दिखावा और कपट से भक्ति का अभिनय करते हैं, उनका कोई आध्यात्मिक लाभ नहीं होता। सच्ची भक्ति बाहरी प्रदर्शन में नहीं, बल्कि हृदय की सच्चाई और भीतर की साधना में है। यही कल्याण का मार्ग है।
भजन श्रेणी : कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |
