कबीर जग की को कहे भौ जलि बूड़ै दास मीनिंग Kabir Jat Ki Ko Kahe Meaning Kabir Dohe

कबीर जग की को कहे भौ जलि बूड़ै दास मीनिंग Kabir Jat Ki Ko Kahe Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe Hindi Meaning (Hindi Arth/Bhavarth)

कबीर जग की को कहे, भौ जलि बूड़ै दास।
पारब्रह्म पति छाड़ि कर, करैं मानि की आस॥
Kabir Jag Ki Ko Kahe, Bhou Jali Bude Daas,
Paarbrahm Pati Chhadi Kar, Kare Maani Ki Aas.

कबीर जग की को कहे : जगत की बात को क्या कहा जाए.
भौ जलि बूड़ै दास : इस भवसागर के जल में तो समस्त संसार ही डूब रहा है.
पारब्रह्म पति छाड़ि कर : पूर्ण परम ब्रह्म रूपी पति को छोड़ कर.
करैं मानि की आस : जो मान सम्मान की आशा करते हैं.
जग की : इस संसार की, इस जगत की.
कहे :
क्या बात कही जाए, क्या कहा जाए.
भौ जलि : भव जल में, संसार में.
बूड़ै दास : भक्तजन भी डूब जाते हैं.
पारब्रह्म : पूर्ण परम ब्रह्म.
पति : स्वामी, मालिक, इश्वर.
छाड़ि कर : छोड़ कर.
करैं : करता है.
मानि : मान सम्मान.
आस : आशा, आशा करना.
कबीर साहेब की वाणी है की इस संसार के लोगों की कौन बात करे, उनके सबंध में क्या कहा जा सकता है. ऐसे सांसारिक व्यक्ति तो भव सागर में ही डूब जाते हैं. जो व्यक्ति पूर्ण ब्रह्म को छोड़ कर मान सम्मान की आशा करते हैं वे अवश्य ही कहीं के नहीं रहते हैं और अपना जीवन समाप्त कर लेते हैं. ऐसे व्यक्ति सांसारिक मान सम्मान के फेर में पड़े रहते हैं. मान सम्मान से आशय है की यदि कोई भक्ति मार्ग पर आगे बढ़ता है तो उसे अवश्य ही सांसारिक मान सम्मान की परवाह को छोड़ना ही पड़ता है. हो सकता है उसे लोग भला बुरा कहें लेकिन उसे चाहिए की वह भक्ति मार्ग पर अनवरत आगे बढ़ता चला जाए. 
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