स्वामी हूँणाँ सोहरा दोद्धा हूँणाँ दास मीनिंग Swami Huna Sohara Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe Hindi Meaning (Kabir Sakhi/Doha Hindi Arth/Hindi Bhavarth)
स्वामी हूँणाँ सोहरा, दोद्धा हूँणाँ दास।गाडर आँणीं ऊन कूँ, बाँधी चरै कपास॥
Swami Huna Sohara, Dodha Huna Daas,
Gaadar Aani Un Ku, Bandhi Chare Kapaas.
Swami Huna Sohara, Dodha Huna Daas,
Gaadar Aani Un Ku, Bandhi Chare Kapaas.
स्वामी हूँणाँ सोहरा : स्वामी बन जाना सरल है.
दोद्धा हूँणाँ दास : दास बनना अत्यंत ही कठिन कार्य है.
गाडर आँणीं ऊन कूँ : जैसे उन के लिए गाडर/भेड को पाला जाए.
बाँधी चरै कपास : बंधी बंधी ही कपास खाए.
स्वामी : मालिक, स्वामी.
हूँणाँ : होना.
सोहरा : सरल है, आसान है.
दोद्धा : मुश्किल है, विकट है.
हूँणाँ दास : दास होना.
गाडर : भेड़
आँणीं : लाइ गई है, आई है.
ऊन कूँ : उन को प्राप्त करने के लिए,
बाँधी : बंधी बंधी ही.
चरै कपास : कपास को खाती रहती है.
दोद्धा हूँणाँ दास : दास बनना अत्यंत ही कठिन कार्य है.
गाडर आँणीं ऊन कूँ : जैसे उन के लिए गाडर/भेड को पाला जाए.
बाँधी चरै कपास : बंधी बंधी ही कपास खाए.
स्वामी : मालिक, स्वामी.
हूँणाँ : होना.
सोहरा : सरल है, आसान है.
दोद्धा : मुश्किल है, विकट है.
हूँणाँ दास : दास होना.
गाडर : भेड़
आँणीं : लाइ गई है, आई है.
ऊन कूँ : उन को प्राप्त करने के लिए,
बाँधी : बंधी बंधी ही.
चरै कपास : कपास को खाती रहती है.
प्रस्तुत साखी में कबीर साहेब की वाणी है की स्वामी होना कठिन है और दास होना सरल है. जैसे यदि कोई स्वामी उन प्राप्त करने के लिए भेड का पालन करे लेकिन उन तो पता नहीं वह कब देगी, लेकिन यदि वह इसके स्थान पर बंधी बंधी ही कपास को ही खाने लगे तो हाथ तो कुछ लगता नहीं है, बल्कि सामने से हानि और होने लगती है. भाव है की यदि कोई व्यक्ति सांसारिकता छोडकर भक्ति करता है तो उसकी भक्ति तभी सार्थक होती है जब वह पूर्ण रूप से अपने अहम् का त्याग कर दे.
यदि वह अहम् का भाव रखता है तो अवश्य ही उसे ना तो भक्ति मिलती है और ना ही माया. इसका उदाहरण कबीर साहेब भेड़ के रूप में देते हैं. भेड़ को घर पर लाने का उद्देश्य उससे उन प्राप्त करना था. लेकिन भेड़ ने उन देने के स्थान पर कपास ही चर लिया तो उलटे हानि का सामना करना पड़ा. यही हाल उस जीवात्मा का होता है जो पूर्ण रूप से अपने चित्त को भक्ति में नहीं लगाती है.
भजन श्रेणी : कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग