सरस्वती चालीसा लाभ विधि महत्त्व
सरस्वती चालीसा लाभ विधि महत्त्व
माता सरस्वती विद्या की देवी हैं। सरस्वती माता की पूजा करने से विद्या की प्राप्ति होती है। सभी माता पिता अपने बच्चों को सर्वोच्च शिक्षा देने की कोशिश करते हैं जिससे उनकी संतान भविष्य में सफल हो, तरक्की कर सकें और उनका नाम रोशन कर सके। सरस्वती चालीसा का पाठ करने से एकाग्रता बढ़ती है। विद्या की प्राप्ति होती है। सरस्वती चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति बुद्धिमान बनता है। सरस्वती माता की पूजा बसंत पंचमी को सभी शिक्षण संस्थाओं में की जाती है। ऐसा माना जाता है कि सरस्वती देवी ही विद्या की देवी हैं और इनकी पूजा करने से ही विद्या की प्राप्ति होती है। सरस्वती माता को पीले फूल अर्पित किए जाते हैं। बसंत पंचमी के दिन पीले वस्त्र धारण करके सरस्वती माता की पूजा की जाती है। व्यक्ति को विद्या और बुद्धि प्राप्त करने के लिए नियमित रूप से सरस्वती माता की पूजा करनी चाहिए। विद्यार्थी जीवन में सभी को सरस्वती माता की पूजा करनी चाहिए जिससे उन्हें विद्या की प्राप्ति हो और उन्हें जीवन में सफलता हासिल हो।
सरस्वती चालीसा
॥दोहा॥
जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
दुष्टजनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥
जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
दुष्टजनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥
॥चालीसा॥
जय श्री सकल बुद्धि बलरासी। जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥
जय जय जय वीणाकर धारी।करती सदा सुहंस सवारी॥1
रूप चतुर्भुज धारी माता। सकल विश्व अन्दर विख्याता॥
जग में पाप बुद्धि जब होती। तब ही धर्म की फीकी ज्योति॥2
तब ही मातु का निज अवतारी। पाप हीन करती महतारी॥
वाल्मीकिजी थे हत्यारा। तव प्रसाद जानै संसारा॥3
रामचरित जो रचे बनाई।आदि कवि की पदवी पाई॥
कालिदास जो भये विख्याता।तेरी कृपा दृष्टि से माता॥4
तुलसी सूर आदि विद्वाना।भये और जो ज्ञानी नाना॥
तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा।केव कृपा आपकी अम्बा॥5
करहु कृपा सोइ मातु भवानी।दुखित दीन निज दासहि जानी॥
पुत्र करहिं अपराध बहूता।तेहि न धरई चित माता॥6
राखु लाज जननि अब मेरी।विनय करउं भांति बहु तेरी॥
मैं अनाथ तेरी अवलंबा।कृपा करउ जय जय जगदंबा॥7
मधुकैटभ जो अति बलवाना।बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना॥
समर हजार पाँच में घोरा।फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा॥8
मातु सहाय कीन्ह तेहि काला।बुद्धि विपरीत भई खलहाला॥
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी।पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥9
चंड मुण्ड जो थे विख्याता।क्षण महु संहारे उन माता॥
रक्त बीज से समरथ पापी।सुरमुनि हदय धरा सब काँपी॥10
काटेउ सिर जिमि कदली खम्बा।बारबार बिन वउं जगदंबा॥
जगप्रसिद्ध जो शुंभनिशुंभा।क्षण में बाँधे ताहि तू अम्बा॥11
भरतमातु बुद्धि फेरेऊ जाई।रामचन्द्र बनवास कराई॥
एहिविधि रावण वध तू कीन्हा।सुर नरमुनि सबको सुख दीन्हा॥12
को समरथ तव यश गुन गाना।निगम अनादि अनंत बखाना॥
विष्णु रुद्र जस कहिन मारी।जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥13
रक्त दन्तिका और शताक्षी।नाम अपार है दानव भक्षी॥
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा।दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥14
दुर्ग आदि हरनी तू माता।कृपा करहु जब जब सुखदाता॥
नृप कोपित को मारन चाहे।कानन में घेरे मृग नाहे॥15
सागर मध्य पोत के भंजे।अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥
भूत प्रेत बाधा या दुःख में।हो दरिद्र अथवा संकट में॥16
नाम जपे मंगल सब होई।संशय इसमें करई न कोई॥
पुत्रहीन जो आतुर भाई।सबै छांड़ि पूजें एहि भाई॥17
करै पाठ नित यह चालीसा।होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा॥
धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै।संकट रहित अवश्य हो जावै॥18
भक्ति मातु की करैं हमेशा। निकट न आवै ताहि कलेशा॥
बंदी पाठ करें सत बारा। बंदी पाश दूर हो सारा॥19
रामसागर बाँधि हेतु भवानी।कीजै कृपा दास निज जानी।
॥दोहा॥
मातु सूर्य कान्ति तव, अन्धकार मम रूप।
डूबन से रक्षा करहु परूँ न मैं भव कूप॥
बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु।
राम सागर अधम को आश्रय तू ही देदातु॥
||इति श्री सरस्वती चालीसा समाप्त ||
जय श्री सकल बुद्धि बलरासी। जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥
जय जय जय वीणाकर धारी।करती सदा सुहंस सवारी॥1
रूप चतुर्भुज धारी माता। सकल विश्व अन्दर विख्याता॥
जग में पाप बुद्धि जब होती। तब ही धर्म की फीकी ज्योति॥2
तब ही मातु का निज अवतारी। पाप हीन करती महतारी॥
वाल्मीकिजी थे हत्यारा। तव प्रसाद जानै संसारा॥3
रामचरित जो रचे बनाई।आदि कवि की पदवी पाई॥
कालिदास जो भये विख्याता।तेरी कृपा दृष्टि से माता॥4
तुलसी सूर आदि विद्वाना।भये और जो ज्ञानी नाना॥
तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा।केव कृपा आपकी अम्बा॥5
करहु कृपा सोइ मातु भवानी।दुखित दीन निज दासहि जानी॥
पुत्र करहिं अपराध बहूता।तेहि न धरई चित माता॥6
राखु लाज जननि अब मेरी।विनय करउं भांति बहु तेरी॥
मैं अनाथ तेरी अवलंबा।कृपा करउ जय जय जगदंबा॥7
मधुकैटभ जो अति बलवाना।बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना॥
समर हजार पाँच में घोरा।फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा॥8
मातु सहाय कीन्ह तेहि काला।बुद्धि विपरीत भई खलहाला॥
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी।पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥9
चंड मुण्ड जो थे विख्याता।क्षण महु संहारे उन माता॥
रक्त बीज से समरथ पापी।सुरमुनि हदय धरा सब काँपी॥10
काटेउ सिर जिमि कदली खम्बा।बारबार बिन वउं जगदंबा॥
जगप्रसिद्ध जो शुंभनिशुंभा।क्षण में बाँधे ताहि तू अम्बा॥11
भरतमातु बुद्धि फेरेऊ जाई।रामचन्द्र बनवास कराई॥
एहिविधि रावण वध तू कीन्हा।सुर नरमुनि सबको सुख दीन्हा॥12
को समरथ तव यश गुन गाना।निगम अनादि अनंत बखाना॥
विष्णु रुद्र जस कहिन मारी।जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥13
रक्त दन्तिका और शताक्षी।नाम अपार है दानव भक्षी॥
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा।दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥14
दुर्ग आदि हरनी तू माता।कृपा करहु जब जब सुखदाता॥
नृप कोपित को मारन चाहे।कानन में घेरे मृग नाहे॥15
सागर मध्य पोत के भंजे।अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥
भूत प्रेत बाधा या दुःख में।हो दरिद्र अथवा संकट में॥16
नाम जपे मंगल सब होई।संशय इसमें करई न कोई॥
पुत्रहीन जो आतुर भाई।सबै छांड़ि पूजें एहि भाई॥17
करै पाठ नित यह चालीसा।होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा॥
धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै।संकट रहित अवश्य हो जावै॥18
भक्ति मातु की करैं हमेशा। निकट न आवै ताहि कलेशा॥
बंदी पाठ करें सत बारा। बंदी पाश दूर हो सारा॥19
रामसागर बाँधि हेतु भवानी।कीजै कृपा दास निज जानी।
॥दोहा॥
मातु सूर्य कान्ति तव, अन्धकार मम रूप।
डूबन से रक्षा करहु परूँ न मैं भव कूप॥
बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु।
राम सागर अधम को आश्रय तू ही देदातु॥
||इति श्री सरस्वती चालीसा समाप्त ||
सरस्वती चालीसा का पाठ करते समय ध्यान देने योग्य बातें Saraswati Chalisa Vidhi Jaap Mahatv Hindi
- सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर पीले या सफेद वस्त्र धारण करें।
- सरस्वती चालीसा का पाठ करते समय पीला कपड़ा बिछाकर सरस्वती माता की तस्वीर रखें।
- सरस्वती माता को पीले और सफेद फूल अर्पित करें।
- गाय के घी से दीपक जलाएँ और धूप जलाएं। सरस्वती माता को पीले चंदन या केसर का तिलक लगाएं।
- स्वयं भी पीले चंदन का का तिलक लगाएं।
- सरस्वती माता का चालीसा का पाठ करें।
- चालीसा का पाठ संपूर्ण होने पर पीले या सफेद रंग की मिठाई बच्चों को खिलाएं।
सरस्वती चालीसा का पाठ करने के फायदे
(सरस्वती चालीसा पढने के फायदे )
- माता सरस्वती ज्ञान की देवी हैं। सरस्वती चालीसा का पाठ करने से ज्ञान की वृद्धि होती है।
- व्यक्ति बुद्धिमान और ज्ञानवान बनता है।
- सरस्वती माता वीणा वादिनी है, इनकी पूजा करने से संगीत के क्षेत्र में सफलता मिलती है।
- सरस्वती माता हंस वाहिनी है अर्थात यह बहुत ही विनम्र स्वभाव की होती हैं इसलिए सरस्वती चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति का शांत एवं स्थिर रहता है।
- सरस्वती चालीसा का पाठ करने से एकाग्रता में वृद्धि होती है।
- विद्यार्थी शांत मन से अपना अध्ययन कर सकते हैं। सरस्वती चालीसा का पाठ करने से चिंतन और मनन करने की क्षमता में वृद्धि होती है।
- ज्ञान प्राप्त करके व्यक्ति सफल एवं प्रतिष्ठा प्राप्त करता है।
- सरस्वती चालीसा का पाठ करने से चित्त एकाग्र रहता है।
- व्यक्ति अपने लक्ष्य पर केंद्रित रहता है और सफलता हासिल करता है।
- सरस्वती चालीसा का पाठ करने से विद्या के साथ ही ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति होती है।
- व्यक्ति संगीत के क्षेत्र में भी सफलता हासिल करता है। व्यक्ति वाकपटु सरल एवं स्पष्ट वक्ता होता है।
- सरस्वती चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति के सभी वाक दोष दूर होते हैं और वह स्पष्ट वक्ता बनता है। सरस्वती चालीसा का पाठ करने से विद्यार्थियों में पढ़ने के प्रति रुचि पैदा होती है और वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करते हैं।
- सरस्वती चालीसा का पाठ करने के अलावा सरस्वती माता के मंत्रों का जाप करके भी ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति की जा सकती है। सरस्वती मां ज्ञान की देवी हैं। इनको वाग्देवी भी कहा गया है। सरस्वती माता के प्रभावशाली मंत्रों का जाप करके व्यक्ति विद्या प्राप्त कर सकता है। सरस्वती माता विद्या, संगीत और ज्ञान की देवी है। इनकी पूजा करने से इन सभी गुणों की प्राप्ति होती है और जीवन सफल होता है।
माता सरस्वती की प्रभावशाली मंत्र
1. ऐं सरस्वत्यै ऐं नमः।
2. ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नमः।
3. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वीणा पुस्तक धारिणीम् मम् भय निवारय निवारय अभयम् देहि देहि स्वाहा।
4. नमः भगवति वद वद वाग्देवि स्वाहा।
5. ॐ सरस्वती मया दृष्ट्वा, वीणा पुस्तक धारणीम्।
हंस वाहिनी समायुक्ता मां विद्या दान करोतु में ॐ।।
6. या देवी सर्वभूतेषु विद्यारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
इन मंत्रों का जाप करने से व्यक्ति में एकाग्रता, चिंतन की क्षमता और सोचने समझने की शक्ति में वद्धि होती है। व्यक्ति ज्ञानवान और बुद्धिमान बनता है।
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भजन श्रेणी : सरस्वती माता भजन (Saraswati Mata Bhajan)
आरती श्री सरस्वती जी
जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता।
सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥
जय सरस्वती माता॥
चन्द्रवदनि पद्मासिनि, द्युति मंगलकारी।
सोहे शुभ हंस सवारी, अतुल तेजधारी॥
जय सरस्वती माता॥
बाएं कर में वीणा, दाएं कर माला।
शीश मुकुट मणि सोहे, गल मोतियन माला॥
जय सरस्वती माता॥
देवी शरण जो आए, उनका उद्धार किया।
पैठी मंथरा दासी, रावण संहार किया॥
जय सरस्वती माता॥
विद्या ज्ञान प्रदायिनि, ज्ञान प्रकाश भरो।
मोह अज्ञान और तिमिर का, जग से नाश करो॥
जय सरस्वती माता॥
धूप दीप फल मेवा, माँ स्वीकार करो।
ज्ञानचक्षु दे माता, जग निस्तार करो॥
जय सरस्वती माता॥
माँ सरस्वती की आरती, जो कोई जन गावे।
हितकारी सुखकारी ज्ञान भक्ति पावे॥
जय सरस्वती माता॥
जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता।
सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥
जय सरस्वती माता॥
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जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता।
सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥
जय सरस्वती माता॥
चन्द्रवदनि पद्मासिनि, द्युति मंगलकारी।
सोहे शुभ हंस सवारी, अतुल तेजधारी॥
जय सरस्वती माता॥
बाएं कर में वीणा, दाएं कर माला।
शीश मुकुट मणि सोहे, गल मोतियन माला॥
जय सरस्वती माता॥
देवी शरण जो आए, उनका उद्धार किया।
पैठी मंथरा दासी, रावण संहार किया॥
जय सरस्वती माता॥
विद्या ज्ञान प्रदायिनि, ज्ञान प्रकाश भरो।
मोह अज्ञान और तिमिर का, जग से नाश करो॥
जय सरस्वती माता॥
धूप दीप फल मेवा, माँ स्वीकार करो।
ज्ञानचक्षु दे माता, जग निस्तार करो॥
जय सरस्वती माता॥
माँ सरस्वती की आरती, जो कोई जन गावे।
हितकारी सुखकारी ज्ञान भक्ति पावे॥
जय सरस्वती माता॥
जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता।
सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥
जय सरस्वती माता॥
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