करीब से जिसने ज्ञान सीखा वो पूरे जीवन में काम आया
करीब से जिसने ज्ञान सीखा वो पूरे जीवन में काम आया
करीब से जिसने ज्ञान सीखा,
वो पूरे जीवन में काम आया।
जो दूर रह करके सीखता है,
वो पूरे जीवन न सीख पाया।
करीब से......
गुरु के चरणों में सिर झुका के,
रहो तो सब ज्ञान मिल सकेगा।
जो ज्ञान का करता ना अहम है,
वही सही ज्ञान को है पाया।
करीब से......
ज़रा ये सोचो विचारो बंधु,
कदम तुम्हारे चले थे कब से?
बड़ों ने पकड़ी थी तेरी अंगुली,
तभी से चलना तू सीख पाया।
करीब से......
करीब जाकर स्वयं को समझो,
तुम्हारे अंदर ही ईश बैठा।
उसी को अपना ही कांत समझो,
जो पूरी सृष्टि को है बनाया।
करीब से......
वो पूरे जीवन में काम आया।
जो दूर रह करके सीखता है,
वो पूरे जीवन न सीख पाया।
करीब से......
गुरु के चरणों में सिर झुका के,
रहो तो सब ज्ञान मिल सकेगा।
जो ज्ञान का करता ना अहम है,
वही सही ज्ञान को है पाया।
करीब से......
ज़रा ये सोचो विचारो बंधु,
कदम तुम्हारे चले थे कब से?
बड़ों ने पकड़ी थी तेरी अंगुली,
तभी से चलना तू सीख पाया।
करीब से......
करीब जाकर स्वयं को समझो,
तुम्हारे अंदर ही ईश बैठा।
उसी को अपना ही कांत समझो,
जो पूरी सृष्टि को है बनाया।
करीब से......
भजन : करीब से जिसने ज्ञान सीखा/रचना : दासानुदास श्रीकान्त दास जी महाराज/स्वर : आलोक जी ।
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यह भजन गुरु की निकटता और उनके प्रति समर्पण की महिमा बताता है। जो व्यक्ति गुरु के करीब रहकर ज्ञान प्राप्त करता है, वह ज्ञान उसके पूरे जीवन में काम आता है, जबकि जो गुरु से दूरी बनाए रखता है, वह कभी सच्चा ज्ञान नहीं पा सकता। गुरु के चरणों में सिर झुकाकर और अहंकार त्यागकर ही सच्चा ज्ञान मिलता है, जो जीवन को सार्थक बनाता है। भजन उदाहरण देता है कि जैसे बचपन में बड़ों ने उंगली पकड़कर चलना सिखाया, ठीक वैसे ही गुरु की संगति और मार्गदर्शन से जीवन का सही रास्ता मिलता है। भक्त को यह समझना चाहिए कि उसके भीतर ही ईश्वर विराजमान है, जो सारी सृष्टि का रचयिता है। उसे उसी ईश्वर को अपना सबसे प्रिय मानकर, उसके करीब जाना चाहिए। यह भजन भक्त को प्रेरित करता है कि वह गुरु की शरण में जाए, उनके प्रति पूर्ण निष्ठा रखे और अपने अंदर की दिव्यता को पहचानकर जीवन को सही दिशा दे। गुरु की निकटता ही उसे अज्ञान के अंधेरे से निकालकर सत्य और ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाती है।
सतगुरु की महिमा अपरंपार एवं असीम है। सतगुरु वे दिव्य आत्मा हैं जो हमें अज्ञान के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाते हैं। उनकी कृपा से ही जीवन में शांति, सुख और मोक्ष की प्राप्ति होती है। सतगुरु अपने शिष्य को न केवल दुनियावी ज्ञान देते हैं बल्कि उसे आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग भी दिखाते हैं। उनके बिना कोई भी जीवन के वास्तविक उद्देश्य को नहीं समझ सकता। इसलिए संतों और महापुरुषों ने सतगुरु की महिमा को अनंत बताया है।
सतगुरु की महिमा को शब्दों में व्यक्त करना असंभव है। उनकी कृपा से ही शिष्य के मन में भक्ति, प्रेम और समर्पण का भाव जागृत होता है। सतगुरु की शरण में जाने से जीवन के सारे दुख दूर हो जाते हैं और आत्मा को असीम शांति प्राप्त होती है। उनके द्वारा दिया गया ज्ञान शिष्य के जीवन को नई दिशा देता है और उसे सच्चे सुख की प्राप्ति होती है। सतगुरु की महिमा ही है जो हमें भगवान तक पहुँचने का सच्चा मार्ग दिखाती है।
सतगुरु की महिमा को शब्दों में व्यक्त करना असंभव है। उनकी कृपा से ही शिष्य के मन में भक्ति, प्रेम और समर्पण का भाव जागृत होता है। सतगुरु की शरण में जाने से जीवन के सारे दुख दूर हो जाते हैं और आत्मा को असीम शांति प्राप्त होती है। उनके द्वारा दिया गया ज्ञान शिष्य के जीवन को नई दिशा देता है और उसे सच्चे सुख की प्राप्ति होती है। सतगुरु की महिमा ही है जो हमें भगवान तक पहुँचने का सच्चा मार्ग दिखाती है।
भजन : करीब से जिसने ज्ञान सीखा ।
भजन रचना :दासानुदास श्रीकान्त दास जी महाराज ।
स्वर : आलोक जी ।
भजन रचना :दासानुदास श्रीकान्त दास जी महाराज ।
स्वर : आलोक जी ।
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Author - Saroj Jangir
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