काशी में खुली है दुकान गौरा रानी शिव भजन
गौरा रानी क्या लोगी हो गौरा रानी क्या लोगी।
पायल तो मैं पहन के आई,
मुझे बिछुबा दिला दो भोलेनाथ,
मैं तो बस यही लूँगी,
काशी में खुली है दुकान गौरा रानी क्या लोगी,
गौरा रानी क्या लोगी हो गौरा रानी क्या लोगी।
लहंगा तो मैं पहन के आई,
मुझे चुनर दिला दो भोलेनाथ,
मैं तो बस यही लूँगी,
काशी में खुली है दुकान गौरा रानी क्या लोगी,
गौरा रानी क्या लोगी हो गौरा रानी क्या लोगी।
हरवा तो मैं पहन के आई,
मुझे नथनी दिला दो भोलेनाथ,
मैं तो बस यही लूँगी,
काशी में खुली है दुकान गौरा रानी क्या लोगी,
गौरा रानी क्या लोगी हो गौरा रानी क्या लोगी।
चूड़ा तो मैं पहन के आई,
मुझे महंदी दिला दो भोलेनाथ,
मैं तो बस यही लूँगी,
काशी में खुली है दुकान गौरा रानी क्या लोगी,
गौरा रानी क्या लोगी हो गौरा रानी क्या लोगी।
काशी मैं खुली है दुकान गौरा रानी क्या लोगी - बहुत प्यारा भजन | Kashi Main Khuli Hai Dukan
Shiv Gora Bhajan - Kashi Main Khuli Hai Dukan Gora Rani Kya Logi | Devotional Song | Shiv Gora Bhajan | New Bhajan 2022 Song - Kashi Main Khuli Hai Dukan Gora Rani Kya Logi
Singer - Aarti
Music - Naman Gujral
lyrics - Neetu G
Editing - Mayank
Label - Bhajan Bhakti
यह भाव शिव और पार्वती के उस दिव्य स्नेह को चित्रित करता है, जहाँ प्रेम सहज, सरल और लोकगीत-सा जीवंत हो उठता है। इसमें कोई महाकाव्यिक गंभीरता नहीं, बल्कि घरेलापन है — जैसे एक स्त्री अपने प्रिय से प्यारा-सा आग्रह करती है। काशी का संदर्भ यहाँ केवल एक नगर नहीं, बल्कि उस आनंदधाम का प्रतीक है जहाँ भोलेनाथ स्वयं व्यापारी बनकर अपनी गौरा को प्रसन्न करते हैं। यह दृश्य भक्ति से अधिक निकट का है — प्रेम में सने संवाद का, मीठे हँसी-मजाक का। गौरा की यह छवि केवल देवी नहीं, बल्कि घर की लाड़ली सी लगती है, जो अपने भोलेनाथ से स्नेहभरा संवाद करती है — “पायल पहन ली है, अब बिछुआ दिला दो।” इस सादगी में एक गहरी आत्मीयता छिपी है, जो दर्शाती है कि ईश्वर और प्रेम, दोनों ही तब सुंदर लगते हैं जब उनमें सरलता हो।
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Author - Saroj Jangir
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