युगों युगों से यही हमारी बनी हुई परिपाटी
युगों युगों से यही हमारी,
बनी हुई परिपाटी है,
खून दिया है मगर नहीं दी,
कभी देश की माटी है,
युगों युगों से यही हमारी,
बनी हुई परिपाटी है,
खून दिया है मगर नहीं दी,
कभी देश की माटी है।
इस धरती ने जन्म दिया,
है यही पुनिता माता,
है एक प्राण दो देह सरीखा,
इससे अपना नाता है,
यह पावन माटी ललाट की,
ललित ललाम लालटी है,
खून दिया है मगर नहीं दी,
कभी देश की माटी है।
इसी भूमि पुत्री के कारण,
भस्म हुई लंका सारी,
सुई नोक भर भू के पीछे,
हुआ महाभारत भारी,
पानी सा बह उठा लहू,
फिर पानीपत के प्रांगड़ मे,
बिछा दिए रिपुओ के शव थे,
उसी तरायण के रण मे,
प्रष्ट बाचती इतिहासो के,
अब भी हल्दी घाटी है,
खून दिया मगर नहीं दी,
कभी देश की माटी है।
सिख मराठा राजपूत,
क्या बंगाली क्या मद्रासी,
इसी मंत्र का जाप कर रहे,
युग युग से भारत वासी,
बुन्देले अब भी दोहराते,
यही मंत्र है झाँसी में,
देंगे प्राण न देंगे माटी,
गूँज रहा है नस नस मे,
शीश चढ़ाए काट गर्दने,
या अरी गर्दन काटी है,
खून दिया है मगर नहीं दी,
कभी देश की माटी है।
इस धरती के कण कण पर,
चित्र खिचा कुर्बानी का,
एक एक कण छन्द बोलता,
चढ़ी शहीद जवानी का,
ये इसके कण नहीं,
अरे ज्वालामुखियों की लपटे है,
किया किसी ने दावा इन पर,
ये दावा से झपटे हैं,
इन्हें चाटने बढ़ा उसी ने,
धूल धरा की चाटी है,
खून दिया मगर नहीं दी,
कभी देश की माटी है।
युगों युगों से यही हमारी,
बनी हुई परिपाटी है,
खून दिया है मगर नहीं दी,
कभी देश की माटी है,
युगों युगों से यही हमारी,
बनी हुई परिपाटी है,
खून दिया है मगर नहीं दी,
कभी देश की माटी है।
बनी हुई परिपाटी है,
खून दिया है मगर नहीं दी,
कभी देश की माटी है,
युगों युगों से यही हमारी,
बनी हुई परिपाटी है,
खून दिया है मगर नहीं दी,
कभी देश की माटी है।
इस धरती ने जन्म दिया,
है यही पुनिता माता,
है एक प्राण दो देह सरीखा,
इससे अपना नाता है,
यह पावन माटी ललाट की,
ललित ललाम लालटी है,
खून दिया है मगर नहीं दी,
कभी देश की माटी है।
इसी भूमि पुत्री के कारण,
भस्म हुई लंका सारी,
सुई नोक भर भू के पीछे,
हुआ महाभारत भारी,
पानी सा बह उठा लहू,
फिर पानीपत के प्रांगड़ मे,
बिछा दिए रिपुओ के शव थे,
उसी तरायण के रण मे,
प्रष्ट बाचती इतिहासो के,
अब भी हल्दी घाटी है,
खून दिया मगर नहीं दी,
कभी देश की माटी है।
सिख मराठा राजपूत,
क्या बंगाली क्या मद्रासी,
इसी मंत्र का जाप कर रहे,
युग युग से भारत वासी,
बुन्देले अब भी दोहराते,
यही मंत्र है झाँसी में,
देंगे प्राण न देंगे माटी,
गूँज रहा है नस नस मे,
शीश चढ़ाए काट गर्दने,
या अरी गर्दन काटी है,
खून दिया है मगर नहीं दी,
कभी देश की माटी है।
इस धरती के कण कण पर,
चित्र खिचा कुर्बानी का,
एक एक कण छन्द बोलता,
चढ़ी शहीद जवानी का,
ये इसके कण नहीं,
अरे ज्वालामुखियों की लपटे है,
किया किसी ने दावा इन पर,
ये दावा से झपटे हैं,
इन्हें चाटने बढ़ा उसी ने,
धूल धरा की चाटी है,
खून दिया मगर नहीं दी,
कभी देश की माटी है।
युगों युगों से यही हमारी,
बनी हुई परिपाटी है,
खून दिया है मगर नहीं दी,
कभी देश की माटी है,
युगों युगों से यही हमारी,
बनी हुई परिपाटी है,
खून दिया है मगर नहीं दी,
कभी देश की माटी है।
Yugo Yugo Se Hamri Paripati Deshbhakti Song/Patriotic Song
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