हरि आप हरो जन री भीर हिंदी अर्थ शब्दार्थ Hari Aap Haro Jan Ree Bheer Meaning

मीरा भगवान श्री कृष्ण की अनन्य भक्त हैं। मीरा जो स्वयं एक महान भक्त हैं, उनके लिए भगवान श्री कृष्ण हर दुख को हरने वाले हैं और उनकी शरण में सम्पूर्ण विश्वास है। मीरा ने अपनी रचनाओं में उनकी महिमा और उपासना का गान किया है, स्वयं को उनकी प्रेमी और भक्त मानते हुए। निबंध में मीरा के विचार, भावनाएँ और भक्ति भरे रस्ते को विस्तार से वर्णित करेंगे, जो एक सच्चे भक्त की अनुभूतियों को दर्शाएगा।-जय श्री कृष्णा.

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हरि आप हरो जन री भीर हिंदी अर्थ शब्दार्थ Hari Aap Haro Jan Ree Bheer Meaning

हरि आप हरो जन री भीर।
द्रोपदी री लाज राखी , आप बढ़ायो चीर।
भगत कारण रूप नरहरि , धरयो आप सरीर।
बूढ़तो गजराज राख्यो , काटी कुञ्जर पीर।
दासी मीराँ लाल गिरधर , हरो म्हारी भीर।।

हरि आप हरो जन री भीर शब्दार्थ Hari Aap Haro Jan Ree Bheer Word Meaning

हरि - श्री कृष्ण (Lord Krishna)
जन - भक्त (Devotee)
भीर - दुख-दर्द (Pain, Sorrow)
लाज - इज्जत (Honor)
चीर - साड़ी, कपड़ा (Cloth)
नरहरि - नरसिंह अवतार (Narasimha Avatar)
सरीर - शरीर (Body)
गजराज - हाथियों का राजा ऐरावत (King of Elephants - Airavata)
काटी - मारना (Injured, Hurt)
लाल गिरधर - श्री कृष्ण (Lord Krishna)
म्हारी - हमारी (My, Ours)
हरि - हे हरि! (Oh Hari!)
आप - आप (You)
हरो - हर लीजिए (Please protect)
जन - जन (People)
री - की (of)
द्रोपदी - द्रोपदी (Draupadi)
लाज - लाज (Honor)
राखी - रखी गई (was preserved)
आप - आप (You)
बढ़ायो - बढ़ा दिया (elevated)
चीर - चीर (Torn cloth)
भगत - भक्त (Devotee)
कारण - कारण (Karna)
रूप - रूप (Form)
नरहरि - नरहरि (Narhari)
धरयो - धारण किया (embraced)
आप - आप (You)
सरीर - शरीर (Body)
बूढ़तो - बूढ़े हुए (Old)
गजराज - गजराज (Elephant)
राख्यो - रक्षा की गई (was protected)
काटी - काट दी थी (was injured)
दासी - दासी (Maid)
मीराँ - मीरा (Meera)
लाल - लाल (Red)
गिरधर - गिरधर (Giridhar)
हरो - हर लीजिए (Please protect)
म्हारी - मेरी (My)

Line by Line Meaning Hari Aap Haro Jan Ree Bheer

हरि आप हरो जन री भीर। - हे हरि! आप जनों की भीर को हर लीजिए। (Oh Hari (Lord Krishna) Please protect the people from sorrow.)
द्रोपदी री लाज राखी , आप बढ़ायो चीर। - द्रोपदी की लाज रखी गई, आपने उसकी सराहना की और उसकी चीर को बढ़ा दिया। (Draupadi's honor was preserved, and you elevated her torn cloth.)
भगत कारण रूप नरहरि , धरयो आप सरीर। - भक्त के कारण आपने नरहरि का रूप /शरीर को धारण किया। (The devotee Karna, in the form of Narhari, embraced your body.)
बूढ़तो गजराज राख्यो , काटी कुञ्जर पीर। - जिस तरह आपने अपने भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए नरसिंह का शरीर (रूप) धारण कर लिया  तथा जिस तरह आपने हाथियों के राजा भगवान इंद्र के वाहन ऐरावत हाथी को मगरमच्छ के चंगुल से बचाया था (Just as you took on the form of Narasimha to save your devotee Prahlad, and just as you saved the elephant king of the gods, Airavata, from the serpent's grasp.)
दासी मीराँ लाल गिरधर , हरो म्हारी भीर।। - दासी मीरा ने लाल गिरधर को पुकारा, हे हरि! मेरी भीर को हर लीजिए। (The Dasi (Devotee) Meera called out to Lord Giridhar, Oh Hari! Please protect me from my Pain and Sorrow.)

हरी आप हरो जन री भीर हिंदी भावार्थ/मीनिंग 

मीरा भगवान श्री कृष्ण के भक्त-प्रेम का वर्णन करते हुए कहती हैं कि आप हमारे भक्तों के सभी प्रकार के दुखों को हरने वाले हैं (भक्तों को संकट और दुखों से बचाने वाले हैं) आप समस्त दुखों का नाश करने वाले हैं। श्री कृष्ण के इस गुण/स्वभाव के बारे में मीरा उदाहरण देते हुए कहती हैं कि जिस तरह आपने द्रौपदी की लाज (इज्जत/आबरू) को बचाया और साड़ी के कपड़े को बढ़ाते ही चले गए, जिस तरह आपने अपने भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए नरसिंह का शरीर धारण कर लिया था और जिस तरह आपने हाथियों के राजा भगवान इंद्र के वाहन ऐरावत हाथी को मगरमच्छ के चंगुल से बचाया था, हे श्री कृष्ण, उसी तरह अपनी इस दासी अर्थात भक्त के भी सारे दुःख हर लो, समस्त दुखों का नाश करो.

काव्य सौन्दर्य - इन पंक्तियों में मीरा श्री कृष्ण के प्रति भक्ति-भाव को स्पष्ट करती है। इन पंक्तियों में शांत रस अधिक है। मीरा कहती है कि हे! श्री कृष्ण, आप अपने भक्तों की संगीन परेशानियों को दूर करने वाले हैं। आपने द्रोपदी की लाज बचाई और साड़ी को बढ़ाते चले गए। आपने अपने भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए नरसिंह का रूप भी धारण किया था। भाव है की श्री कृष्ण अपने भक्तों के प्रति अत्यंत ही दयालु स्वभाव के हैं और उनके दुख दर्द, संकट, बाधाओं को दूर करते हैं.
 

मीरा के साहित्यिक गुणधर्म निम्नलिखित हैं:

भक्ति-प्रेम भरा रस: मीरा की रचनाओं में भगवान श्री कृष्ण के प्रति गहरी भक्ति और प्रेम का रस है। उनकी कविताओं, गीतों और दोहों में भगवान की प्रेम-लीलाओं, रास-लीलाओं, बांसुरी बजाने की मिठास, और गोपियों की प्रेम-रस को भरपूर दिखाया गया है।

स्त्रीत्व और स्वाधीनता: मीरा की रचनाओं में स्त्रीत्व और स्वाधीनता के महत्वपूर्ण पहलु हैं। वे एक स्वतंत्र, साहसिक और निर्भय नारी की चित्रण करती हैं, जो अपने प्रेमी भगवान की प्रेम-रस भरी भक्ति में लीन रहती हैं।

आत्म-विनोद और वैराग्य: मीरा की रचनाओं में आत्म-विनोद और वैराग्य का भाव प्रधान होता है। वे संसार की माया के प्रति उदासीनता, संगीत और नृत्य के माध्यम से अपनी आत्मा को तृप्ति देती हैं और वैराग्य की महत्वपूर्ण शिक्षा देती हैं।

सामाजिक सुधार : मीरा की रचनाओं में सामाजिक सुधार, स्त्री-सशक्तिकरण, और समानता की पुकार भी स्पष्ट रूप से प्रकट होती है। मीरा ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में महिलाओं की स्थिति को सुधारने की मांग की है और पुरुष-प्रधान समाज में स्त्रियों के अधिकारों के लिए समाज को प्रोत्साहन किया है।

विविधता: मीरा की रचनाओं में विविधता भी दिखाई देती है। उनकी कविताओं में धार्मिक, राजनैतिक, सामाजिक और आत्मिक विषयों पर चर्चा होती है। वे एक समग्र व्यक्तित्व हैं जिनकी रचनाएँ विभिन्न पहलुओं को समाहित करती हैं।

भावुकता और संवेदनशीलता: मीरा की रचनाओं में भावुकता और संवेदनशीलता का अधिकार होता है। वे अपने भावों को सुन्दर शब्दों में प्रकट करती हैं और पाठकों के दिल को छू लेती हैं।

वाद-विवाद: मीरा की रचनाओं में वाद-विवाद का भाव भी प्रधान होता है। वे सामाजिक और धार्मिक विषयों पर अपने मत को स्पष्ट रूप से प्रकट करती हैं और विचारों की विविधता को प्रस्तुत करती हैं।
 
मीरा की रचनाओं के ये गुणधर्म उन्हें समाज की एक अनोखी और प्रभावशाली साहित्यिक व्यक्तित्व बनाते हैं। उनकी रचनाओं में भावनात्मकता, समानता, सामाजिक सुधार की मांग, विचारों की विविधता और वाद-विवाद का भाव उत्कृष्ट रूप से दिखता है। मीरा की साहित्यिक चर्चा और उनकी रचनाओं की प्रशंसा भारतीय साहित्य की महत्वपूर्ण विषयों में से एक है। मीरा की साहित्यिक गुणधर्म उनके लोकप्रिय गीतों, भजनों और पदों में दिखाई देते हैं जो आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं। वे एक महान भक्तिन, कवियित्री और सामाजिक सुधारक थीं जिनकी रचनाओं ने समाज में सुधार और समानता की बात चर्चा को सबके सामने रखा। मीरा के चरित्र में समानता, साहित्यिक उत्कृष्टता, विविधता, भावुकता और वाद-विवाद का भाव प्रधान रहता है। उनकी रचनाओं में भगवान के प्रति भक्ति, समाज के प्रति संवेदनशीलता और धर्म-नैतिक मूल्यों के प्रति समर्पण का भाव दिखता है।



Meera Ke Pad - Hari Aap Haro Jan Ri Bheer

 
इस पद में कवयित्री मीरा भगवान श्री कृष्ण के भक्त-प्रेम का वर्णन करते हुए कहती हैं कि आप हर जन की भीड़ में भी हरि हैं। द्रोपदी की लाज रक्षा करके आपने उसकी साड़ी को बढ़ा दिया था, जिस तरह आपने भक्त प्रह्लाद को नरसिंह के रूप में बचाया था, और जिस तरह आपने हाथियों के राजा भगवान इंद्र के वाहन ऐरावत को मगरमच्छ के चंगुल से बचाया था, हे श्री कृष्ण! उसी तरह मेरी भक्ति में भी सभी प्रकार के दुखों को हर लो, दुखों का नाश कर दो . मीरा एक महान भक्त-कवयित्री थी, जो भगवान श्री कृष्ण की अद्भुत प्रेम-लीलाओं के प्रचार-प्रसार में जुट गई थी। उनकी जीवनी एक अद्भुत कहानी है, जिसमें उनकी भक्ति, समर्पण और आत्मनिर्भरता की प्रेरणा है। मीरा की शब्दों में व्यक्तिगत अनुभव, भावुकता और गहरी आत्मीयता होती थी, जो उनकी रचनाओं में दिखती है। उनकी जीवनी हमें एक सच्ची भक्ति और आदर्श जीवन जीने की प्रेरणा देती है।
मीरा की भाषा शैली अत्यन्त सुन्दर और अनूठी है। उनकी रचनाओं में उत्कृष्ट साहित्यिक रूपकारिता और भावुकता की एक अनूठी मिश्रण नजर आती है। उनकी भाषा गीतों की तरह सहज, स्वीकार्य और आकर्षक है। उनकी रचनाओं में धार्मिक तत्वों को सरल शब्दों में प्रस्तुत कर उनकी भक्ति और प्रेम की गहराई दिखाई देती है। मीरा की भाषा शैली आम जनता को भी स्पर्श करती है और उनकी रचनाओं को समझने में सुविधा देती है। उनकी भाषा शैली एक अनोखी पहचान थी जो उन्हें एक महान कवियित्री बनाती है ।

हरि आप हरो जन री भीर।
द्रोपदी री लाज राखी, आप बढ़ायो चीर।
भगत कारण रूप नरहरि, धरयो आप सरीर।
बूढ़तो गजराज राख्यो, काटी कुञ्जर पीर।
दासी मीराँ लाल गिरधर, हरो म्हारी भीर।।
अर्थ:
हे हरि! आप अपने भक्तों की सभी पीड़ाओं को दूर कर दें।
जिस प्रकार आपने द्रोपदी की लाज बचाई थी, चीर बढ़ाकर;
और भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए नरसिंह रूप धारण किया था;
उसी प्रकार आप मेरे भी संकटों को दूर कर दें।
हे गिरधर कृष्ण! मैं आपकी दासी मीरा हूँ, आप मेरी भी पीड़ा हर लें।
इस पद में मीरा बाई अपने आराध्य भगवान कृष्ण से अपने भक्तों की रक्षा की प्रार्थना करती हैं। वे बताती हैं कि भगवान कृष्ण ने पहले भी अपने भक्तों की लाज और पीड़ा को दूर किया है। जैसे उन्होंने द्रोपदी की लाज बचाई थी, प्रहलाद की रक्षा की थी, और बूढ़े हाथी की पीड़ा दूर की थी। मीरा बाई विश्वास करती हैं कि भगवान कृष्ण उनके भी संकटों को दूर करेंगे।
इस पद की रचना मीरा बाई ने की थी। वे एक भक्त कवयित्री थीं, जो भगवान कृष्ण की अनन्य भक्त थीं। उन्होंने कृष्ण भक्ति के कई पद और भजन लिखे हैं।
इस पद की भाषा राजस्थानी है। इसमें मीरा बाई ने अपने आराध्य भगवान कृष्ण को "हरि" और "गिरधर कृष्ण" के नामों से पुकारा है।
इस पद की ध्वनि लयबद्ध और संगीतमय है। इसमें मीरा बाई ने अपनी भक्ति भाव को व्यक्त किया है।
इस पद का संदेश है कि भगवान कृष्ण अपने भक्तों की सभी पीड़ाओं को दूर करते हैं।

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