ता कउ बिघनु न कोऊ लागै जो सतिगुरु अपुनै राखे हिंदी मीनिंग Ta Kau Bighanu Na Kou Lage Meaning
ता कउ बिघनु न कोऊ लागै जो सतिगुरु अपुनै राखे।
चरण कमल बसे रिद अंतरि अम्रित हरि रसु चाखे।
Ta Kau Bighanu Na Kou, Lage Jo Satigur Apne Rakhe,
Charan Kamal Base, Rid Antari Amrit Hari Rasu Chakhe.
ਤਾ ਕਉ ਬਿਘਨੁ ਨ ਕੋਊ ਲਾਗੈ ਜੋ ਸਤਿਗੁਰਿ ਅਪੁਨੈ ਰਾਖੇ ॥
ਚਰਨ ਕਮਲ ਬਸੇ ਰਿਦ ਅੰਤਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਹਰਿ ਰਸੁ ਚਾਖੇ ॥੩॥
ਦੁਆਰਾ ਦੱਸਿਆ ਗਿਆ ਸੰਦੇਸ਼ ਹੈ ਕਿ ਜਿਸ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਨੇ ਅਪਨਾ ਬਣਾ ਕੇ ਰੱਖਿਆ ਹੈ, ਉਸ ਦੀ ਰਕਸ਼ਾ ਦੀ ਕੋਈ ਵੀ ਰੁਕਾਵਟ ਨਹੀਂ ਆਉਂਦੀ। ਉਸ ਦੇ ਅੰਦਰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਕੋਮਲ ਚਰਨ ਵਸਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਉਹ ਆਤਮਿਕ ਜੀਵਨ ਦੇਣ ਵਾਲੇ ਹਰਿ-ਨਾਮ-ਰਸ ਨੂੰ ਸਦਾ ਚੱਖਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਰਸ ਨੂੰ ਚੱਖਣ ਤੋਂ ਜੀਵਨ ਦੀ ਸਾਰੀ ਚਿੰਤਾਵਾਰੀ ਦੂਰ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਆਤਮਾ ਚੌਰਾਸੀ ਲੱਖ ਜੀਵਨਾਂ ਦੇ ਚੱਕਰ ਤੋਂ ਬਚ ਜਾਂਦੀ ਹੈ।
मनु परबोधहु हरि कै नाइ ॥ दह दिसि धावत आवै ठाइ ॥ ता कउ बिघनु न लागै कोइ ॥ जा कै रिदै बसै हरि सोइ ॥ कलि ताती ठांढा हरि नाउ ॥ सिमरि सिमरि सदा सुख पाउ ॥ भउ बिनसै पूरन होइ आस ॥ भगति भाइ आतम परगास ॥ तितु घरि जाइ बसै अबिनासी ॥ कहु नानक काटी जम फासी ॥३॥
शब्दार्थ : कउ = को। बिघनु = रुकावट। रिद = हृदय। अंम्रित = आत्मिक जीवन देने वाला।
गुरु अर्जन देव जी इस वाणी में वे गुरु के महत्व का वर्णन कर रहे हैं। उन्होंने कहा है कि जो भक्त गुरु को अपना बनाकर रख लेता है, उसे कोई भी विघ्न नहीं आता और कोई भी फिक्र नहीं होती। भक्त के अन्दर परमात्मा के चरण बसे होते हैं और वह अपने परमात्मा के नाम का रस चखता है। जिस रस को चखने से भक्त चौरासी लाख जीवनों के चक्कर से मुक्त हो जाता है और उसके कर्म कट जाते हैं।
गुरु अर्जन देव जी यह बता रहे हैं कि हमारी आत्मा शुरुआत से ही भटक रही है, लेकिन जब हम गुरु की कृपा प्राप्त करते हैं तो वे हमें परमात्मा की ओर खींचते हैं और हम भटकने से बचकर परमात्मा की ओर आगे बढ़ते हैं। इस तरीके से हमारे कर्म कटने शुरू हो जाते हैं और हम चौरासी लाख जीवनों के चक्कर से मुक्त हो जाते हैं।
इस पद में गुरु के महत्व का वर्णन किया गया है और भक्त को गुरु के चरणों में आस्था रखने का महत्व बताया गया है। गुरु के आदेशों का अनुसरण करने से हम अपने अंतरंग और बाह्य जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं और चौरासी लाख जीवनों के चक्कर से मुक्त हो सकते हैं।
गुरु अर्जन देव जी यह बता रहे हैं कि हमारी आत्मा शुरुआत से ही भटक रही है, लेकिन जब हम गुरु की कृपा प्राप्त करते हैं तो वे हमें परमात्मा की ओर खींचते हैं और हम भटकने से बचकर परमात्मा की ओर आगे बढ़ते हैं। इस तरीके से हमारे कर्म कटने शुरू हो जाते हैं और हम चौरासी लाख जीवनों के चक्कर से मुक्त हो जाते हैं।
इस पद में गुरु के महत्व का वर्णन किया गया है और भक्त को गुरु के चरणों में आस्था रखने का महत्व बताया गया है। गुरु के आदेशों का अनुसरण करने से हम अपने अंतरंग और बाह्य जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं और चौरासी लाख जीवनों के चक्कर से मुक्त हो सकते हैं।
इस पद में भगवान के सत्संग और सत्संगी (गुरु) के महत्व का वर्णन प्राप्त होता है। जिस मनुष्य की रक्षा सत्संग और सत्संगी ने की है, उसे आत्मिक जीवन के रास्ते में कोई भी रुकावट नहीं आती। यहां "सत्संग" संतों या ज्ञानी गुरुओं के साथ सत्य के सम्बन्ध में संगठन या समाज का संदर्भ है, जिससे जीवात्मा आत्मिक ज्ञान और साधना के माध्यम से परमात्मा के पास पहुंचता है। इससे उसके आत्मिक जीवन के रास्ते में कोई भी रुकावट नहीं आती, और वह भगवान के पास पहुंचता है।
भगवान के कमल-फूल जैसे कोमल चरण उसके हृदय में बसते हैं। इससे उसे आत्मिक जीवन देने वाला हरि-नाम-रस सदा चखता है। यह भक्ति और प्रेम की भावना से भरी पंक्ति है.
भगवान के कमल-फूल जैसे कोमल चरण उसके हृदय में बसते हैं। इससे उसे आत्मिक जीवन देने वाला हरि-नाम-रस सदा चखता है। यह भक्ति और प्रेम की भावना से भरी पंक्ति है.
Ta Kau Bighanu Na Kou Lage Meaning in English
In this verse, Guru Arjan Dev Ji is explaining the significance of the Guru. He says that a devotee who fully trusts and follows the Guru faces no obstacles or worries. The devotee's heart becomes a place where the divine presence resides, and they find great joy in chanting the name of the Supreme Lord.
When a devotee experiences this divine connection, all their worries and anxieties disappear, and they are freed from the cycle of birth and death. The effects of their past actions are dissolved, and they achieve liberation.
Guru Arjan Dev Ji is stressing the importance of having complete faith in and surrendering to the Guru. By doing so, the devotee connects with the divine within, and the Guru guides them towards spiritual fulfillment and eternal happiness.