चरण कमल बंद हरि राई हिंदी मीनिंग Charan Kamal Band Meaning
चरण-कमल बंदौ हरि राई।
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघे,
अंधे को सब कछु दरसाई ॥
बहिरी सुनै, मूक पुनि बोलै,
रंक चलै सिर छत्र धराई।
सूरदास स्वामी करुनामय,
बार-बार बंदी तिहि पाई ॥
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघे,
अंधे को सब कछु दरसाई ॥
बहिरी सुनै, मूक पुनि बोलै,
रंक चलै सिर छत्र धराई।
सूरदास स्वामी करुनामय,
बार-बार बंदी तिहि पाई ॥
Or
चरन कमल बंदौ हरि राई।
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै, आंधर कों सब कछु दरसाई॥
बहिरो सुनै, मूक पुनि बोलै, रंक चले सिर छत्र धराई।
सूरदास स्वामी करुनामय, बार-बार बंदौं तेहि पाई॥
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै, आंधर कों सब कछु दरसाई॥
बहिरो सुनै, मूक पुनि बोलै, रंक चले सिर छत्र धराई।
सूरदास स्वामी करुनामय, बार-बार बंदौं तेहि पाई॥
चरण-कमल बंद हरि राई हिंदी मीनिंग Charan Kamal Band Hari Raai Meaning in Hindi
सूरदास जी ने इस पद में भगवान श्री के चरणों की वंदना की है। वे कहते हैं की मैं उन सर्वेश्वर भगवान् श्रीहरि के चरण-कमलों की वंदना करता हूँ, अर्थात मैं उनके चरणों में अपना शीश झुकाता हूँ।
भगवान के पावन श्री चरणों की महिमा है की उनकी कृपा को प्राप्त करके पंगु (विकलांग) व्यक्ति भी पर्वत/पहाड़ को पार कर लेता है। श्री चरणों की अद्भुद महिमा है की अँधा (नेत्रहीन) व्यक्ति भी देखने लग जाता है और गूंगा भी बोलने में सक्षम हो पाता है।
भगवान के पावन श्री चरणों की महिमा है की उनकी कृपा को प्राप्त करके पंगु (विकलांग) व्यक्ति भी पर्वत/पहाड़ को पार कर लेता है। श्री चरणों की अद्भुद महिमा है की अँधा (नेत्रहीन) व्यक्ति भी देखने लग जाता है और गूंगा भी बोलने में सक्षम हो पाता है।
आगे श्री सूरदास जी कहते हैं की जिनकी कृपा होते ही कंगाल भी सिर पर छत्र धारण करके चलनेवाला नरेश (राजा ) हो जाता है। श्री सूरदास कहते हैं कि मैं उस करुणामय भगवान् श्रीहरि के चरणों की बारंबार वंदना करता हूँ, अपना शीश झुकाता हूँ।
चरण कमल बंदौ हरि राइ की व्याख्या Charan kamal Bando hari rai vyakhya
प्रस्तुत पद्यांश में, कवि सूरदास अपने प्रिय श्रीकृष्ण के सुन्दर कमल के समान चरण की वंदना करते हुए कहते हैं की रहे हैं कि यदि मेरे श्रीकृष्ण की कृपा हो जाए तो लंगड़े भी पर्वत को लांघ जाएंगे, अर्थात पर्वत को पार कर लेंगे इसके साथ ही श्री कृष्ण जी कृपा का प्रभाव यह की की अंधा व्यक्ति भी देखने लग जाता है।श्री कृष्ण जी की कृपा से बहरा सुनने लगता है और गूंगा व्यक्ति भी बोल पाने में भी समर्थ हो पाता है। सूरदास जी श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन करते हैं की श्री कृष्ण जी की महिमा है की दीन हीन व्यक्ति, निर्धन व्यक्ति भी धनवान बन पाता है और उसके सर पर भी छत्र हो जाता है भाव है की भिखारी भी राजा बन जाता है और अपने सिर पर मुकुट धारण कर लेता है, अर्थात उसकी गरीबी समाप्त हो जाती है।
सूरदास जी की वाणी है की ऐसे दयालु स्वामी (श्री कृष्ण) के चरणों की हम वन्दना हम बारम्बार, बार बार करते हैं।
Charan Kamal Band Hari Raai Meaning in English/English Translation
Soordasa Ji praises the divine feet of Lord Shri Hari and humbly bows down before them.
The Lord's feet have incredible power - even a physically challenged person can overcome great difficulties with His grace. The Lord's feet are so amazing that a visually impaired person starts to see and a speech-impaired person gains the ability to speak.
Soordasa Ji says that with the Lord's grace, even a poor and helpless person can become as majestic as a king, with the Lord's protection like a royal umbrella. He expresses his devotion by repeatedly worshiping and surrendering to the kind and compassionate Lord Shri Hari.
The Lord's feet have incredible power - even a physically challenged person can overcome great difficulties with His grace. The Lord's feet are so amazing that a visually impaired person starts to see and a speech-impaired person gains the ability to speak.
Soordasa Ji says that with the Lord's grace, even a poor and helpless person can become as majestic as a king, with the Lord's protection like a royal umbrella. He expresses his devotion by repeatedly worshiping and surrendering to the kind and compassionate Lord Shri Hari.
Hindi and English Word Meaning of Charan Kamal Band Hari Raai
- राई = राजा। (राई means "king".)
- पंगु = लंगड़ा। (पंगु means "lame" or "physically challenged".)
- लघै = लांघ जाता है, पार कर जाता है। (लघै means "crosses" or "overcomes".)
- मूक = गूंगा। (मूक means "mute" or "speech-impaired".)
- रंक = निर्धन, गरीब, कंगाल। (रंक means "destitute" or "poor".)
- छत्र धराई = राज-छत्र धारण करके। (छत्र धराई means "wearing an umbrella like a king".)
- तेहि = तिनके। (तेहि means "that" or "those".)
- पाई = चरण। (पाई means "feet" or "lotus feet".)
चरण कमल बंदौ हरिराई किसकी रचना है?
चरण कमल बंदौ हरिराई श्री कृष्ण जी के अनंन्य भक्त श्री सूरदास जी की महान रचना है, जिसमें उन्होंने अपने प्रिय भगवान श्री कृष्ण के पवित्र चरणों की स्तुति और महिमा की है। सूरदास जी भक्ति आंदोलन के दौरान एक महान कवि और श्री कृष्ण के भक्त रहे हैं। उन्हें हिंदी साहित्य का सूर्य और ब्रज भाषा के श्रेष्ठ कवि के रूप में आदर सहित जाना जाता है। "चरण कमल बंदौ हरिराई" रचना सूरदास जी की है। इस रचना में सूरदास जी भगवान श्री कृष्ण के पावन चरणों की प्रशंसा करते हैं और उनके भजन और भक्ति में विलीन हो जाते हैं। सूरदास जी भक्ति काल के प्रसिद्ध कवि और संत थे, और उनके कृष्ण भक्ति गीत लोकप्रियता के साथ माने जाते हैं। उनके भक्तिभाव से भरे हुए गीत और कविताएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।Whose creation is Charan Kamal Bandau Harirai?
"Charan Kamal Bandau Hari Rai" is a composition by Surdas Ji, where he explains and praises the holy feet of his beloved Lord Shri Krishna. Surdas Ji was a great poet during the Bhakti movement and a devoted follower of Lord Shri Krishna. He is considered as a shining star in Hindi literature and is regarded as one of the finest poets in the Braj language."
चरण कमल बंदौ हरिराई में कौन सा अलंकार है?
चरण कमल बंदौ हरिराई पद में रूपक अलंकार है। यहां 'रूपक' अर्थात 'उपमा' होता है, जिसमें एक वस्तु को दूसरी वस्तु के साथ तुलना किया जाता है। इस पद में सूरदास जी भगवान श्री कृष्ण के पावन चरणों को 'कमल' यानी 'पद्म' से तुलना कर रहे हैं, जो रूपक अलंकार का प्रतीक है। इस तुलना से भगवान के पावन चरणों की श्रेष्ठता और पवित्रता का बोध होता है।यहां चरण कमल में रूपक अलंकार है।यहां उपमान कमल में उपमेय चरण का अभेद आरोप है,इसलिए रूपक अलंकार होगा। इसके प्रकारों में से एक सांगरूपक का भी उदाहरण है -
उदित उदय गिरि मंच पर,रघुवर बाल पतंग।
बिकसे संत सरोज सब,हरषे लोचन भृंग।।
उदित उदय गिरि मंच पर,रघुवर बाल पतंग।
बिकसे संत सरोज सब,हरषे लोचन भृंग।।
इन पंक्तिओं में रूपक अलंकार है क्योंकि यहाँ हरी के कमल रूपी चरणों की वंदना की गयी है।
रुपक अलंकार की परिभाषा - जहाँ उपमेय को उपमान के रूप में बताया जाए।
उपमेय- जिसकी तुलना की जाए- चरण
उपमान- जिससे की जाए- कमल
उदाहरण- सीता का मुख पुष्प सम कोमल है ।
उपमेय- मुख
उपमान- पुष्प
रुपक अलंकार की परिभाषा - जहाँ उपमेय को उपमान के रूप में बताया जाए।
उपमेय- जिसकी तुलना की जाए- चरण
उपमान- जिससे की जाए- कमल
उदाहरण- सीता का मुख पुष्प सम कोमल है ।
उपमेय- मुख
उपमान- पुष्प
सांग्य रूपक: इसमें उपमेय और उपमान के बीच का सांग्य अर्थ होता है, जिसमें उपमेय और उपमान के बीच सम्बन्ध उजागर करते हुए रूपक अलंकार का उपयोग किया जाता है। उदाहरण के रूप में: "तुम मेरे सूरज हो, तुम्हारी किरणें मेरे जीवन को प्रकाशित करती हैं।"
निरंग रूपक: इसमें उपमेय और उपमान के बीच का निरंग अर्थ होता है, जिसमें केवल उपमेय का बोध किया जाता है और उपमान का कोई अस्तित्व नहीं होता है। उदाहरण के रूप में: "काजल की दोली में है मोरी बाई।"
परम्परित रूपक: इसमें एक पुरातन या परंपरागत रूपक को पुनः उपयोग किया जाता है। उदाहरण के रूप में: "राम के चरण कमल बंदौ।"
ये तीनों भेद रूपक के प्रयोग में विभिन्न तरीकों से उपयोग किए जाते हैं और कविता के भाव, अर्थ और संदेश को प्रभावशाली बनाने में सहायक होते हैं।
रूपक अलंकार क्या होता है ? परिभाषा उदाहरण अर्थ हिन्दी एवं संस्कृत What is Rupak Alankar in Hindi ?
रूपक अलंकार से आशय है की पद का वह भाग जहाँ पर उपमेय और उपमान में कोई अंतर ही ना रहे, दोनों समतुल्य हो जाए, एक जैसे गुणों वाले हो जाएँ वहाँ पर रूपक अलंकार होता है। अर्थ है की जहाँ पर उपमेय और उपमान के बीच के भेद को समाप्त करके उसे एक जैसा कर दिया जाता है वहाँ पर रूपक अलंकार होता है।रूपक अलंकार के उदाहरण
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।- राम को रतन (धन) के तुल्य बताया गया है। राम और रतन में भेद को समाप्त कर दिया गया है।
वन शारदी चन्द्रिका-चादर ओढ़े।
गोपी पद-पंकज पावन कि रज जामे सिर भीजे।
बीती विभावरी जागरी !
अम्बर पनघट में डुबो रही
तारा घाट उषा नगरी।
प्रभात यौवन है वक्ष सर में कमल भी विकसित हुआ है कैसा।
उदित उदयगिरी-मंच पर, रघुवर बाल-पतंग।
विकसे संत सरोज सब हर्षे लोचन भंग।
शशि-मुख पर घूँघट डाले
अंचल में दीप छिपाये।
मन-सागर, मनसा लहरि, बूड़े-बहे अनेक।
विषय-वारि मन-मीन भिन्न नहिं होत कबहुँ पल एक।
‘अपलक नभ नील नयन विशाल’
सिर झुका तूने नीयति की मान ली यह बात।
स्वयं ही मुरझा गया तेरा हृदय-जलजात।
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।- राम को रतन (धन) के तुल्य बताया गया है। राम और रतन में भेद को समाप्त कर दिया गया है।
वन शारदी चन्द्रिका-चादर ओढ़े।
गोपी पद-पंकज पावन कि रज जामे सिर भीजे।
बीती विभावरी जागरी !
अम्बर पनघट में डुबो रही
तारा घाट उषा नगरी।
प्रभात यौवन है वक्ष सर में कमल भी विकसित हुआ है कैसा।
उदित उदयगिरी-मंच पर, रघुवर बाल-पतंग।
विकसे संत सरोज सब हर्षे लोचन भंग।
शशि-मुख पर घूँघट डाले
अंचल में दीप छिपाये।
मन-सागर, मनसा लहरि, बूड़े-बहे अनेक।
विषय-वारि मन-मीन भिन्न नहिं होत कबहुँ पल एक।
‘अपलक नभ नील नयन विशाल’
सिर झुका तूने नीयति की मान ली यह बात।
स्वयं ही मुरझा गया तेरा हृदय-जलजात।
"मन-सागर, मनसालहरि, बूड़े-बहे अनेक" - यहाँ यहाँ पर मन (उपमेय) पर सागर (उपमान) का और मनसा यानी इच्छा (उपमेय) पर लहर (उपमान) का आरोप है, अतः इस पद में रूपक अलंकार है।
यह भी जानिये श्रुतिसमभिन्नार्थक शब्द किसे कहते हैं ?
श्रुतिसमभिन्नार्थक शब्द जिसमें श्रुति अर्थात सुनने में
सम-समान,
भिन्न -अलग,
अर्थक से तात्पर्य है अर्थवाला।
अतः इसका अर्थ हुआ की सुनने में समान प्रतीत होने वाले पर अर्थ में भिन्नता रखने वाले शब्द 'श्रुतिसमभिन्नार्थक' शब्द होते हैं।
उदाहरण-
सुत -बेटा = श्री राम राजा दशरथ के सुत थे।
सूत-सारथी = महाभारत में श्री कृष्ण अर्जुन के सूत बने थे।
गृह- घर = मेरे गृह के सामने एक सुन्दर बगीचा है।
ग्रह -आकाशीय पिंड = बुध एक आकाशीय पिंड है।
अनल- आग = मोहन का हाथ अनल से जल गया।
अनिल - हवा = अनिल के कारण जंगल में आग फैल गयी।
इस तरह और भी कई शब्द है। उपर्युक्त- उपयुक्त, आदि - आदी, ओर- और, दिन- दीन, अन्न- अन्य, प्रसाद- प्रासाद, कुल - कूल इत्यादि