ब्राहमिन गुरु है जगत का संतन का गुरु नाहि मीनिंग Brahman Guru Hai Jagat Ka Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth/Bhavarth
ब्राहमिन गुरु है जगत का, संतन का गुरु नाहि,
अरुझि परुझि के मरि गये, चारों वेदो माहि।
or
बाँम्हण गुरु जगत का, साधू का गुरु नाहिं।
उरझि पुरझि करि मरि रह्या, चारिउँ बेदाँ माहिं॥
उरझि पुरझि करि मरि रह्या, चारिउँ बेदाँ माहिं॥
Brahman Guru Jagat Ka, Sadhu Ka Guru Nahi,
Urajhi Purajhi Kari Mari Rahya, Chariu Bedo Mahi.
ब्राहमिन गुरु है जगत का संतन का गुरु नाहि मीनिंग/अर्थ
- बाँम्हण गुरु जगत का : ब्राहमण जगत का गुरु कहलाता है.
- साधू का गुरु नाहिं : लेकिन वह साधू का गुरु नहीं हो सकता है.
- उरझि पुरझि करि मरि रह्या : वह उलझ उलझ कर मर रहा है.
- चारिउँ बेदाँ माहिं : चारों वेदों के अंदर.
- बाँम्हण : पंडित लोग जो शास्त्रीय ज्ञान का अनुसरण करते हैं.
- गुरु : गुरु, मार्गदर्शक.
- जगत का : संसार का.
- साधू : ऐसा व्यक्ति जो मोह माया का त्याग करके हृदय से भक्ति करे.
- का गुरु नाहिं : साधू का गुरु नहीं हो सकता है.
- उरझि पुरझि : उलझ उलझ कर.
- करि : उलझ कर.
- मरि रह्या ; मर रहा है, समाप्त हो रहा है.
- चारिउँ : चारों.
- बेदाँ : वेद.
- माहि : के अन्दर (वेदों के अंदर)
किताबी ज्ञान रखने वाले ब्राह्मण के सम्बन्ध में कबीर साहेब का कथन है की ब्राह्मण जगत/संसार का गुरु हो सकता है लेकिन संतजन का नहीं क्योंकि संतजन तत्व ज्ञान को समझते हैं और ब्राह्मण केवल किताबी ज्ञान को रटते रहते हैं। वह अपने ही किताबी ज्ञान में उलझ कर मर रहे हैं, चारों वेदों में मध्य वे उलझे पड़े हैं। कबीर साहेब कहते हैं की ब्राह्मण इस जगत / संसार का गुरु हो सकता है लेकिन संतों का नहीं. ब्राह्मण चारों वेदों में दिए गए विरोधाभाषी ज्ञान में ही उलझ कर मर जाता है, तत्व को प्राप्त नहीं कर सकता है. ब्राह्मण केवल शाश्त्रीय ज्ञान को आधार मान कर अपनी राय बनाता है, उसे वस्तु की परख नहीं होती है. अतः कबीर साहेब कहते हैं की किताबी ज्ञान को कंठस्थ करने से कोई लाभ नहीं होने वाला है जब तक की उस ज्ञान को हम अपने आचरण में ना उतार लें. इश्वर एक है, ब्रह्म एक है वह कण कण में है उसे किसी कर्मकांड और किताब के माध्यम से प्राप्त नहीं किया जा सकता है.