पाँच पहर धन्धे गया तीन पहर गया सोय मीनिंग Panch Pahar Dhandhe Gaya Meaning

पाँच पहर धन्धे गया तीन पहर गया सोय मीनिंग Panch Pahar Dhandhe Gaya Meaning : Kabir Ke Dohe Meaning/Arth

पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय।
एक पहर हरि नाम बिन, मुक्ति कैसे होय॥

Panch Pahar Dhane Gaya, Teen Pahar Gaya Soy,
Ek Pahar Hari Naam Bin, Mukti Kaise Hoy.
 
पाँच पहर धन्धे गया तीन पहर गया सोय मीनिंग Panch Pahar Dhandhe Gaya Meaning

 

पाँच पहर धन्धे गया तीन पहर गया सोय शब्दार्थ Panch Pahar Dhandhe Gaya Shabdarth

  • पाँच पहर : दिन के पाँचों पहर, पूर्ण दिवस।
  • धन्धे : काम काज में, पूर्ण दिवस तुमने काम किया, माया अर्जित करने में समय को व्यतीत किया।
  • गया : बीता दिया।
  • तीन पहर : तीन पहर (पांच पहर माया में पड़ा रहा और तीन पहर सो गया, ऐसे करके आठों पहर पूर्ण कर दिए )
  • गया सोय : निद्रा में व्यतीत किया।
  • हरि नाम : ईश्वर का नाम, हरी सुमिरन।
  • बिन : के बिना।
  • मुक्ति कैसे होय : मुक्ति कैसे होगी।

पाँच पहर धन्धे गया तीन पहर गया सोय हिंदी में अर्थ/मीनिंग Panch Pahar Dhandhe Gaya Meaning/Arth/Bhavarth

कबीर साहेब ने व्यक्ति का ध्यान भक्ति की तरफ करने के लिए उसे आगाह किया है की दिवस के पांच पहर वह धंधे में बीता देता है और तीन पहर सोने में। इस प्रकार से पूरा दिन ही वह माया अर्जित करने और सांसारिक क्रियाओं में व्यतीत कर देता है लेकिन एक पहर भी हरी के नाम का सुमिरन नहीं करता है। ऐसे में बिना मालिक के नाम का सुमिरन के उसकी मुक्ति कैसे होगी।

भाव है की यह जीवन माया के भ्रम जाल में व्यतीत हो रहा है, इसलिए आवश्यक है की जीव जागृत होकर हरी के नाम की महिमा को समझे और हरी के नाम का सुमिरन हृदय से करे। साहेब ने कई स्थानों पर कहा है की माया एक महा ठग है जो व्यक्ति को अपने जाल में फांस लेती है और हरी से विमुख कर देती है। अतः जीविका के लिए जितना धन चाहिए उसके अतिरिक्त इसका संग्रह करना और माया अर्जित करने में ही सम्पूर्ण जीवन लगा देना मुर्खता है।
 

मानव जीवन के उद्देश्य और मोक्ष प्राप्ति के लिए आवश्यक है की हम मालिक के नाम का सुमिरन करें। हम पुरे दिन माया एकत्रित करने में व्यस्त रहते हैं। फिर तीन पहरों तक का समय आता है, जब हम अपने शारीरिक आवश्यकताओं के लिए सुस्त रहते हैं, आराम करते हैं और नींद में व्यतीत करते हैं। हम एक पहर में भी हम भगवान की याद नहीं करते हैं, जिससे हमारे जीवन का असली उद्देश्य विस्मृत होता है और आत्मा की मुक्ति संभव नहीं हो पाती है। 

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