कबीर नौबत आपणी दिन दस लेहु बजाइ हिंदी मीनिंग कबीर के दोहे

कबीर नौबत आपणी दिन दस लेहु बजाइ हिंदी मीनिंग Kabir Nobat Aapni Din Das Lehu Bajai-Hindi Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit


कबीर नौबत आपणी दिन दस लेहु बजाइ
ए पुर पाटन, ए गली, बहुरि न देखै आइ 
 
Kabeer Naubat Aapanee Din Das Lehu Bajai
E Pur Paatan, E Galee, Bahuri Na Dekhai Aai 
 
कबीर नौबत आपणी दिन दस लेहु बजाइ हिंदी मीनिंग Kabir Nobat Aapni Din Das Lehu Bajai Hindi Meaning

नौबत : नौबत बाजा / खुशियों का सूचक
दिन दस लेहु बजाइ: दस दिन बजा लो /खुशियाँ मना लो।
ए पुर पाटन : यह नगर। 
ए गली : यह गली (जहाँ तुम रहते हो )
बहुरि : दोबारा।

इस दोहे की हिंदी मीनिंग : जीवन क्षणिक हैं, सदा के लिए नहीं मिला है। यहाँ कुछ दिनों का मेला है जिसमे कुछ समय के लिए खुशियाँ मनानी हैं (दस दिन नौबत बजा लेनी है ) . एक बार यहाँ से रवानगी हो जाने पर यह नगर, गलियां और इसके घाट दोबारा देखने को नहीं मिलेंगे। जीवन क्षणिंक है और हरी भजन के लिए मिला है, इसे चाहे जैसे भी बिताया जाय यह दोबारा किसी को नहीं मिला है इसलिए जीवन का प्रत्येक पल हरी भजन को समर्पित कर देना चाहिए। इसके समान ही कबीर साहेब की वाणी है की -
 
जिनके नौबति बाजती, मैंगल बंधते बारि
एकै हरि के नाव बिन, गए जनम सब हारि
Jinake Naubati Baajatee, Maingal Bandhate Baari
Ekai Hari Ke Naav Bin, Gae Janam Sab Haari 

जिन लोगों के सदा ही नौबत बजती थी, द्वार पर जिनके हाथी बंधे रहते थे, वे हरी के नाम के अभाव में सब कुछ हार गए हैं, मानव जीवन का अमूल्य समय वर्बाद कर दिया है। कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी, एक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पाँव पसारी, भाव है की जीवन में यदि हरी भजन नहीं किया तो समझो इसे व्यर्थ ही खो दिया। 
 
कबीर कहता जात हूँ, सुणता है सब कोइ।
राम कहें भला होइगा, नहिं तर भला न होइ॥
कबीर कहै मैं कथि गया, कथि गया ब्रह्म महेस।
राम नाँव सतसार है, सब काहू उपदेस॥
तत तिलक तिहूँ लोक मैं, राम नाँव निज सार।
जब कबीर मस्तक दिया सोभा अधिक अपार॥
भगति भजन हरि नाँव है, दूजा दुक्ख अपार।
मनसा बचा क्रमनाँ, कबीर सुमिरण सार॥
कबीर सुमिरण सार है, और सकल जंजाल।
आदि अंति सब सोधिया दूजा देखौं काल॥
चिंता तौ हरि नाँव की, और न चिंता दास।
जे कछु चितवैं राम बिन, सोइ काल कौ पास॥
पंच सँगी पिव पिव करै, छटा जू सुमिरे मन।
मेरा मन सुमिरै राम कूँ, मेरा मन रामहिं आहि॥
मेरा मन सुमिरै राम कूँ, मेरा मन रामहिं आहि।
अब मन रामहिं ह्नै रह्या, सीस नवावौं काहि
तूँ तूँ करता तूँ भया, मुझ मैं रही न हूँ।
वारी फेरी बलि गई, जित देखौं तित तूँ
कबीर निरभै राम जपि, जब लग दीवै बाति।
तेल घट्या बाती बुझी, (तब) सोवैगा दिन राति
कबीर सूता क्या करै, जागि न जपै मुरारि।
एक दिनाँ भी सोवणाँ, लंबे पाँव पसारि॥
कबीर सूता क्या करै, काहे न देखै जागि।
जाका संग तैं बीछुड़ा, ताही के संग लागि॥
कबीर सूता क्या करै उठि न रोवै दुक्ख।
जाका बासा गोर मैं, सो क्यूँ सोवै सुक्ख॥
कबीर सूता क्या करै, गुण गोबिंद के गाइ।
तेरे सिर परि जम खड़ा, खरच कदे का खाइ॥
कबीर सूता क्या करै, सुताँ होइ अकाज।
ब्रह्मा का आसण खिस्या, सुणत काल को गाज॥
केसो कहि कहि कूकिये, नाँ सोइयै असरार।
राति दिवस के कूकणौ, कबहूँ लगै पुकार॥

यह भी देखें You May Also Like

  
अजब शहर: अमरीका में कबीर - भाग १ / Kabir in America: Part 1 (Hindi Subtitles)
सन २००३ में कबीर की वाणी को अमरीका में एक अदभुत यात्रा के दौरान प्रस्तुत किया गया. डॉ. लिंडा हैस द्वारा आयोजित इस ढाई महीने की यात्रा में प्रहलाद सिंह टिपानिया और उनके साथी कलाकारों ने मालवी लोक शैली में कबीर भजन के ३५ कार्यक्रम प्रस्तुत किए. "अजब शहर: अमरीका में कबीर - भाग १ एवं २" फिल्मों में १२ कबीर भजन प्रस्तुत हैं, और साथ में इस सफ़र के दौरान घटे कुछ चुनिन्दा अनुभव भी, जिनमें मालवा के ग्रामीण लोक कलाकार अमरीका की अनजान संस्कृति से वाकिफ़ होते हैं. उनके लिए यह दुनिया अजब ज़रूर थी, लेकिन शायद उतनी अजब नहीं जितनी हमारे अंतर की दुनिया, जिसे खोजने का आग्रह कबीर करते हैं.
+

एक टिप्पणी भेजें