अंषड़ियाँ झाँई पड़ी पंथ निहारि मीनिंग
अंषड़ियाँ झाँई पड़ी पंथ निहारि मीनिंग
अंषड़ियाँ झाँई पड़ी, पंथ निहारि-निहारि।जीभड़ियाँ छाला पड्या, राम पुकारि-पुकारि॥
Aakhadiya Jhai Padi, Panth Nihari Nihari,
Jibhadiya Chhala Padya Ram Pukari Pukari
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi
विरह में जीवात्मा की स्थिति का वर्णन करते हुए कबीर साहेब वाणी देते हैं की विरह में उसकी आँखों के नीचे कालिमा छा गई है, राह देखते देखते वह व्यथित हो चुकी है। उसकी जिव्हा पर राम रटते रटते छाले पड़ गए हैं। आशय है की विरह में जीवात्मा बहुत अधिक व्यथित है।
यह दोहा कबीर दास जी द्वारा रचित है। इसमें उन्होंने विरह की तीव्र पीड़ा का वर्णन किया है। विरहिणी अपने प्रियतम के इंतजार में दिन-रात एक कर देती है। वह बार-बार प्रियतम के आने का रास्ता निहारती रहती है। उसकी आँखें थक जाती हैं और उनमें अँधेरा छ गया है। वह अपने प्रियतम को पाने के लिए इतनी बेचैन हो जाती है कि उसकी जीभ में छाले पड़ गए हैं।
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |
