प्रेम न खेतौं नीपजै प्रेम न दृष्टि बिकाइ मीनिंग Prem Na Kheto Nipaje Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit
प्रेम न खेतौं नीपजै, प्रेम न दृष्टि बिकाइ।
राजा परजा जिस रुचै, सिर दे सो ले जाइ॥
Prem Na Kheto Nipaje, Prem Na Drishti Bikai,
Raja Parja Jis Ruche, Sir De So Le Jai.
कबीर के दोहे का हिंदी में अर्थ / भावार्थ Kabir Doha Hindi Meaning
भक्ति किसी खेत में पैदा नहीं होती है और ना ही यह किसी बाजार में खरीदी जा सकती है। भले ही कोई राजा हो या कोई सामान्य प्रजा (अमीर हो या गरीब) कोई भी चाहे इसे अपने अहम् (सर काटकर) को समाप्त करके प्राप्त कर सकता है। आशय है की भक्ति व्यक्तिगत समर्पण की वस्तु है, इसे कोई भी अपने अहम् को समाप्त करके प्राप्त कर सकता है। इस दोहे में, कबीर दास प्रेम की प्रकृति और मूल्य को व्यक्त करते हैं। वह कहते हैं कि प्रेम एक अमूल्य वस्तु है, जिसे पैसे से नहीं खरीदा जा सकता है।