माला पहिरे मनमुषी ताथैं कछू न होई मीनिंग Mala Pahire Manmukhi Meaning : kabir Ke Dohe Hindi
माला पहिरे मनमुषी, ताथैं कछू न होई।मन माला कौं फेरता, जग उजियारा सोइ॥
Mala Pahire Mankukhi, Tathe Kachhu Na Hoi,
Man mala Ko Pherata Jag Ujiyara Soi.
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi
कबीर साहेब ने इस दोहे में आडम्बर और दिखावे की भक्ति पर चोट की है. वे कहते हैं की भक्त माला को धारण कर लेते हैं लेकिन उनमे मन में अभी विषय और विकार भरे पड़े हैं, ऐसे में वे कैसे भक्ति कर सकते हैं. भक्ति के बिना केवल बाहरी दिखावा करना कोई मायने नहीं रखता। लोग मनमुखी माला को तो धारण कर लेते हैं, पहन लेते हैं लेकिन अपने मन की माला को नहीं फिराते हैं. मल की माला को फेरने से ही तमाम अवगुणों का बोध होता है और व्यक्ति सच्ची भक्ति की तरफ अग्रसर होता है. यदि मन की माला को फिरा लिया जाए तो तमाम जगत में उजियारा हो उठेगा, आशय है की व्यक्ति का मानव जीवन सफल हो जाएगा.
आत्मिक भक्ति के बिना केवल बाहरी दिखावा करना कोई मायने नहीं रखता। सच्ची भक्ति के लिए तो अपने मन का विश्लेष्ण आवश्यक है.
आत्मिक भक्ति के बिना केवल बाहरी दिखावा करना कोई मायने नहीं रखता। सच्ची भक्ति के लिए तो अपने मन का विश्लेष्ण आवश्यक है.
इस दोहे का आधुनिक संदर्भ में भी उतना ही प्रासंगिक है। आजकल भी बहुत से लोग केवल बाहर से धार्मिक दिखने के लिए माला पहनते हैं, लेकिन उनके मन में कोई भक्ति नहीं होती है। ऐसे लोग केवल दिखावा करते हैं। वे दुनियादारों की तरह ही व्यवहार करते हैं। कबीरदास जी का संदेश यह है कि हमें केवल बाहर से नहीं, बल्कि अंदर से भी धार्मिक होना चाहिए। हमें अपने मन को भक्ति से भरना चाहिए। तभी हम मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं।
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