भेदी भेद ना खुलने पाये चाहे धरती गगन टकराये
भेदी भेद ना खुलने पाये Bhedi Bhed Na Khulane Paye
भेदी भेद ना खुलने पाये,
चाहे धरती गगन टकराये,
चाहे प्राण रहे या जाये,
पर भेदी भेद ना खुलने पाये।
मिले जब राम सीता से,
टहलते समय फुलवारी में,
सिया को राम प्यारे थे,
लगी सीता उन्हें प्यारी,
ध्यान वरदान का आया तो,
प्रेम आंसू लगे बहने,
सबब पूछा जब सीता ने तो,
माँ गौरी लगी कहने,
चाहे लाख कोई समझाए,
शिव धनुष टूट नहीं जाये,
चाहे धरती गगन टकराये,
पर सीता भेद ना खुलने पाये।
तिलक श्री राम का होगा,
प्रफुल्लित थे अवध वासी,
कलेजे पर गिरी बिजली,
चले जब बनके सन्यासी,
कौन जानता था कि,
श्री राम वनको जाएंगे,
रूधिर कर लेने वाले,
वंस रावण का मिटायेंगे,
दसरथ जी प्राण गवाएं,
भाई भरत जी धुनि रमाये,
सब केकई को दोष लगाए,
पर भेदी भेद ना खुलने पाये।
केवट के पास
छुवत सिला भई नारी सुहाई,
पाहन ते न काठ कठिनाई,
एहि प्रति पालऊ सब परिवारू,
नही जानत कछु और कबाड़ू।
बरु तीर मारिहि लखन पै,
जब लगी न पाँय पखारिहौ।
सयन कैरते थे विष्णु क्षीर सागर,
सेस सैया पर,
रहा सागर में एक कछुआ,
हरि चरणों मे दृष्टि कर,
वही है राम नारायण,
शेष रूप है लक्ष्मण,
बना कछुआ वही केवट,
बिचारे प्रभु अपने मन,
हठ किया केवट प्रभु के,
पद कमल पहचान कर,
हस दिए मेरे प्रभु,
केवट की इच्छा जानकर,
केवट क्यु देर लगाए,
क्यु पानी नही भरलाये,
लो लेता हूं चरण धुलाये,
पर केवट भेद ना खुलने पाये।
सूर्पनखा रावण के पास
करुणा निधि मन दिख बिचारि,
उर अंकुरेऊ गर्व तरु भारी,
बेगि सो मैं दारिहऊ उखारी,
पन हमार सेवक असुरारी।
तुम सम पुरुष न मौसम नारी,
ये संजोग बिधि रचेऊ बिचारि।
खरदूषण मौसम बलवंता,
तिनही को मारई बिनु भगवंता।
सुर रंजन भजनजन माही भारा,
जौ भगवंत लीन्ह अवतारा।
तौ मैं जाइ बैर हठी करऊ,
प्रभु सर प्राण तजे भव तरिहऊ।
होइहहिं भजन न तामस देहा,
मन क्रम वचन सत्य दृढ़ नेहा।
दोहा
कौतुक हीं कैलाश पुनि,
लीन्हेसि जाइ उठाई,
मनहु तौलि निज बहुबल,
चला बहुत सुख पाई।
जानकी हारने की युक्ति,
सूझी रावण नीच को,
शीघ्र ही बुलाके,
समझाने लगा मारीच को,
पंचवटी जाना मामा,
सुबह जब छिटके किरण,
जानकी का मन लुभाना,
बनके सोने का हिरन,
जब पकड़ने के लिए,
श्री राम लक्ष्मण जाएंगे,
उसी समय हम साधु बनके,
जानकी हर लाएंगे,
देखो बात ना मेरी भुलाए,
चाहे रघुवर तीर चलाये,
चाहे प्राण रहे या जाये,
पर मामा भेद ना खुलने पाये।
चाहे धरती गगन टकराये,
चाहे प्राण रहे या जाये,
पर भेदी भेद ना खुलने पाये।
मिले जब राम सीता से,
टहलते समय फुलवारी में,
सिया को राम प्यारे थे,
लगी सीता उन्हें प्यारी,
ध्यान वरदान का आया तो,
प्रेम आंसू लगे बहने,
सबब पूछा जब सीता ने तो,
माँ गौरी लगी कहने,
चाहे लाख कोई समझाए,
शिव धनुष टूट नहीं जाये,
चाहे धरती गगन टकराये,
पर सीता भेद ना खुलने पाये।
तिलक श्री राम का होगा,
प्रफुल्लित थे अवध वासी,
कलेजे पर गिरी बिजली,
चले जब बनके सन्यासी,
कौन जानता था कि,
श्री राम वनको जाएंगे,
रूधिर कर लेने वाले,
वंस रावण का मिटायेंगे,
दसरथ जी प्राण गवाएं,
भाई भरत जी धुनि रमाये,
सब केकई को दोष लगाए,
पर भेदी भेद ना खुलने पाये।
केवट के पास
छुवत सिला भई नारी सुहाई,
पाहन ते न काठ कठिनाई,
एहि प्रति पालऊ सब परिवारू,
नही जानत कछु और कबाड़ू।
बरु तीर मारिहि लखन पै,
जब लगी न पाँय पखारिहौ।
सयन कैरते थे विष्णु क्षीर सागर,
सेस सैया पर,
रहा सागर में एक कछुआ,
हरि चरणों मे दृष्टि कर,
वही है राम नारायण,
शेष रूप है लक्ष्मण,
बना कछुआ वही केवट,
बिचारे प्रभु अपने मन,
हठ किया केवट प्रभु के,
पद कमल पहचान कर,
हस दिए मेरे प्रभु,
केवट की इच्छा जानकर,
केवट क्यु देर लगाए,
क्यु पानी नही भरलाये,
लो लेता हूं चरण धुलाये,
पर केवट भेद ना खुलने पाये।
सूर्पनखा रावण के पास
करुणा निधि मन दिख बिचारि,
उर अंकुरेऊ गर्व तरु भारी,
बेगि सो मैं दारिहऊ उखारी,
पन हमार सेवक असुरारी।
तुम सम पुरुष न मौसम नारी,
ये संजोग बिधि रचेऊ बिचारि।
खरदूषण मौसम बलवंता,
तिनही को मारई बिनु भगवंता।
सुर रंजन भजनजन माही भारा,
जौ भगवंत लीन्ह अवतारा।
तौ मैं जाइ बैर हठी करऊ,
प्रभु सर प्राण तजे भव तरिहऊ।
होइहहिं भजन न तामस देहा,
मन क्रम वचन सत्य दृढ़ नेहा।
दोहा
कौतुक हीं कैलाश पुनि,
लीन्हेसि जाइ उठाई,
मनहु तौलि निज बहुबल,
चला बहुत सुख पाई।
जानकी हारने की युक्ति,
सूझी रावण नीच को,
शीघ्र ही बुलाके,
समझाने लगा मारीच को,
पंचवटी जाना मामा,
सुबह जब छिटके किरण,
जानकी का मन लुभाना,
बनके सोने का हिरन,
जब पकड़ने के लिए,
श्री राम लक्ष्मण जाएंगे,
उसी समय हम साधु बनके,
जानकी हर लाएंगे,
देखो बात ना मेरी भुलाए,
चाहे रघुवर तीर चलाये,
चाहे प्राण रहे या जाये,
पर मामा भेद ना खुलने पाये।
भेद ना खुलने पाये। लाइव वीडियो। Hemkant jha pyasa 9831228059
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Author - Saroj Jangir
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