मेरे गुरुवर भक्ति रस अवतार भजन
मेरे गुरुवर भक्ति रस अवतार।
गुरु कह, गुरु हरि दोउ इक सार।
गुरु कह, गुरु का अधिक आभार।
गुरु कह, तन करे जग व्यवहार।
गुरु कह, मन करे हरि सों ही प्यार।
गुरु कह, माँगो रो के निष्काम प्यार।
गुरु कह, हरि गुरु को ही उर धार।
गुरु कह, गुरु करुणा भंडार।
गुरु कह, गुरु दीनन रखवार।
गुरु कह, गुरु निराधार आधार।
गुरु कह, हरि गुरु सेवा सार।
गुरु कह, गुरु ही 'कृपालु' कर्णधार॥
अर्थ: भजन में बताया गया है कि सच्चा गुरु भक्ति रस के अवतार होते हैं और वे भगवान से अभिन्न माने जाते हैं। गुरु का आभार सबसे बड़ा होता है क्योंकि वे ही आत्मा को ईश्वर से जोड़ते हैं। गुरु शरीर को संसार में व्यवहार सिखाते हैं, लेकिन मन को प्रभु प्रेम में लीन रखते हैं। गुरु निष्काम प्रेम की प्रेरणा देते हैं और स्वयं करुणा के भंडार होते हैं। वे दीन-दुखियों के रक्षक और निराधारों के आधार होते हैं। गुरु ही हरि की सेवा का सार बताते हैं और भक्तों के जीवन के सच्चे मार्गदर्शक होते हैं। अंत में कहा गया है कि गुरु ही कृपालु हैं और जीवन रूपी नैया के कर्णधार हैं।
मेरे गुरुवर भक्ति रस अवतार | ब्रज रस माधुरी~२ | Ft. Akhileshwari Didi
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पुस्तक : ब्रज रस माधुरी ,भाग -2
कीर्तन संख्या : 2
पृष्ठ संख्या : 2
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