बुद्ध की प्रेरणादायक कहानी भगवान बुद्ध की खेती Buddha Ki Prernadayak Kahani Buddh Ki Kheti
कहानी: भगवान बुद्ध की खेती
एक बार भगवान बुद्ध भिक्षा के लिए एक किसान के घर पहुंचे। किसान ने उन्हें देख कर उपेक्षा से कहा, “श्रद्धेय, मैं मेहनत से हल जोतता हूँ और तब भोजन करता हूँ। आपको भी हल जोतकर, बीज बोकर फिर खाना चाहिए।”
बुद्ध ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “महाराज! मैं भी खेती ही करता हूँ।”
किसान को बुद्ध की बात पर आश्चर्य हुआ और उसने पूछा, “पर मैंने तो आपके पास न हल देखा, न बैल, न ही कोई खेत। आप कैसे कह सकते हैं कि आप भी खेती करते हैं? कृपया अपनी खेती के बारे में विस्तार से बताएं।”
बुद्ध ने उत्तर दिया, “महाराज! मेरी खेती अलग है। मेरे पास श्रद्धा का बीज है, तपस्या रूपी वर्षा है और प्रजा रूपी जोत और हल है। मेरे पास पाप से डरने का दंड है, विचार रूपी रस्सी है, स्मृति और जागरूकता रूपी हल की धार और पेन है।
मैं वचन और कर्म में संयम रखता हूँ। अपनी इस खेती को मैं व्यर्थ की घास यानी बुराइयों से मुक्त रखता हूँ और आनंद की फसल काटने तक निरंतर प्रयास करता हूँ।
मेरे बैल का नाम ‘अप्रमाद’ है जो कभी रास्ता नहीं बदलता और बिना किसी बाधा की परवाह किए सीधे शांति की ओर ले जाता है। इस प्रकार, मैं अमृत की खेती करता हूँ।”
सीख: भगवान बुद्ध की यह कहानी हमें बताती है कि असली खेती बाहरी साधनों से नहीं होती, बल्कि भीतर की साधनाओं से होती है। जीवन में शांति और आनंद प्राप्त करने के लिए हमें अपने विचारों, कर्मों और व्यवहार में शुद्धता और संयम की आवश्यकता है।
इस कहानी में छिपा गहरा संदेश यह है कि जीवन में असली फल पाने के लिए बाहरी परिश्रम के साथ आंतरिक जागरूकता, संयम और श्रद्धा की भी आवश्यकता होती है।
बुद्ध ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “महाराज! मैं भी खेती ही करता हूँ।”
किसान को बुद्ध की बात पर आश्चर्य हुआ और उसने पूछा, “पर मैंने तो आपके पास न हल देखा, न बैल, न ही कोई खेत। आप कैसे कह सकते हैं कि आप भी खेती करते हैं? कृपया अपनी खेती के बारे में विस्तार से बताएं।”
बुद्ध ने उत्तर दिया, “महाराज! मेरी खेती अलग है। मेरे पास श्रद्धा का बीज है, तपस्या रूपी वर्षा है और प्रजा रूपी जोत और हल है। मेरे पास पाप से डरने का दंड है, विचार रूपी रस्सी है, स्मृति और जागरूकता रूपी हल की धार और पेन है।
मैं वचन और कर्म में संयम रखता हूँ। अपनी इस खेती को मैं व्यर्थ की घास यानी बुराइयों से मुक्त रखता हूँ और आनंद की फसल काटने तक निरंतर प्रयास करता हूँ।
मेरे बैल का नाम ‘अप्रमाद’ है जो कभी रास्ता नहीं बदलता और बिना किसी बाधा की परवाह किए सीधे शांति की ओर ले जाता है। इस प्रकार, मैं अमृत की खेती करता हूँ।”
सीख: भगवान बुद्ध की यह कहानी हमें बताती है कि असली खेती बाहरी साधनों से नहीं होती, बल्कि भीतर की साधनाओं से होती है। जीवन में शांति और आनंद प्राप्त करने के लिए हमें अपने विचारों, कर्मों और व्यवहार में शुद्धता और संयम की आवश्यकता है।
इस कहानी में छिपा गहरा संदेश यह है कि जीवन में असली फल पाने के लिए बाहरी परिश्रम के साथ आंतरिक जागरूकता, संयम और श्रद्धा की भी आवश्यकता होती है।
भगवान बुद्ध के विचार हमें आत्म-जागरूकता, संयम और आंतरिक शांति का महत्व सिखाते हैं। वे मानते थे कि बाहरी साधनों से अधिक महत्वपूर्ण हमारे भीतर की खेती है – यानी हमारे विचार, कर्म और आत्मिक साधनाएँ। बुद्ध का कहना था कि सच्ची शांति और आनंद पाने के लिए हमें अपने मन को पवित्र करना चाहिए, अहंकार, लोभ और क्रोध जैसी नकारात्मक भावनाओं को त्यागना चाहिए। उनका विश्वास था कि श्रद्धा, तपस्या, और सतत प्रयास से जीवन में सच्चे सुख और शांति की फसल प्राप्त की जा सकती है। बुद्ध के अनुसार, आत्म-अनुशासन और जागरूकता से भरा जीवन ही अमृत समान होता है, जो हमें हर बाधा को पार कर सच्चे आनंद की ओर ले जाता है।
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं एक विशेषज्ञ के रूप में रोचक जानकारियों और टिप्स साझा करती हूँ। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |