शुक्र देव की शुक्रवार व्रत कथा शुक्रवार की कहानी Shukrawar Ki Kahani Vrat Katha
शुक्र जी की कथा शुक्रवार का व्रत करने पर सुनी जाती है। आईए जानते हैं शुक्रवार की कथा।
एक गांव में एक परिवार में एक सास और बहु रहती थी। सास भगवान शुक्र को बहुत मानती थी तथा नियमित रूप से पूजा-पाठ करती थी। उन्होंने भगवान के मंदिर में भगवान शुक्र की मूर्ति स्थापित कर रखी थी।
एक बार सांस कहीं तीर्थ यात्रा पर जा रही थी। उसने अपनी बहू से कहा मैं तीर्थ यात्रा पर जा रही हूं। तुम पीछे से भगवान शुक्र की पूजा अवश्य करना।
सास के तीर्थ यात्रा पर जाने के बाद बहू ने भगवान शुक्र की पूजा नहीं की। सुबह जब बहू नहाने लगी तो भगवान शुक्र उन्हें देखकर हंसने लगे। मूर्ति को हंसता हुआ देखकर बहू को गुस्सा आया।
उसने पणिहारी को कहा कि यह मूर्ति मुझे देख कर हंस रही है। इस मूर्ति को तुम ले जाओ। तब पणिहारी ने कहा कि हमारे घर में भी बहू बटियां हैं। इसलिए इस मूर्ति को मैं घर पर नहीं ले जा सकती।
पणिहारी ने कहा कि अगर तुम कहो तो मैं बाहर इसे मिट्टी में दबा दुंगी। तब बहू ने कहा ठीक है मिट्टी में दबा देना। पणिहारी मूर्ति ले गई और उसे मिट्टी में दबा दिया।
कुछ समय बाद घर में हर चीज की कमी हो गई। सारा धन खत्म हो गया। तो बहू से उसके पति ने पूछा कि सारा धन कहां गया। तब उसने कहा कि सास घूमने गई हैं, वही ले गई होंगी।
थोड़े दिनों बाद जब सास तीर्थ यात्रा से वापस आ गई। तब उन्होंने पूछा की मां अपना सारा धन कहां गया। तब सास ने कहा कि जो तुमने अपने हाथ से दिया था मैं तो बस वही धन लेकर गई थी।
फिर जब उसने मंदिर में देखा तो सास ने देखा कि मंदिर में भगवान शुक्र जी की मूर्ति नहीं थी। जब उसने बहू से पूछा तो उसने कहा कि मैंने मूर्ति पणिहारी को दे दी।
सास ने अपनी पणिहारी से जाकर पूछा कि शुक्र जी की मूर्ति कहां है। पणिहारी ने बताया कि उसने भगवान शुक्र की मूर्ति मिट्टी में दबा दी थी। सास उस जगह गई और उसने शुक्र जी की मूर्ति मिट्टी से निकाल ली।
घर जाकर सास ने मूर्ति को नहलाया धुलाया और उसकी सेवा करने लगी। मंदिर में मूर्ति की स्थापना कर उनकी सेवा पूजन करने लगी। ऐसा करने से भगवान शुक्र की कृपा हुई और उनके वैसे ही धन-धान्य की बरसात हो गई।
हे भगवान शुक्र जैसा बेटे बहु को दिया वैसा किसी को ना देना, जैसा सास को दिया वैसा सबको देना। कहानी कहने वाले, कहानी सुनाने वाले और सभी परिवार के सदस्यों पर अपना आशीर्वाद बनाए रखना।
शुक्रवार व्रत की कथा – Lyricspandits
प्राचीन समय की बात है कि एक नगर में एक वृद्धा अपने बेटे के साथ रहती थी। कुछ समय बाद उसने अपने बेटे का विवाह कर दिया। विवाह के बाद वह अपनी बहू से सभी घर के काम करवाने लगी और उसे छोटी-छोटी बातों पर तंग करती। बहू सुबह से रात तक घर का हर काम करती थी, परंतु वृद्धा उसे ठीक से भोजन भी नहीं देती थी। उसका बेटा यह सब देखता था और इन परिस्थितियों से बहुत परेशान हो गया। आखिरकार उसने नगर छोड़कर शहर जाने का निर्णय लिया।जब उसने अपनी माँ और पत्नी को शहर जाने की बात बताई, तो उसकी पत्नी भावुक हो उठी। पति ने पत्नी से जाते समय कोई निशानी देने को कहा, लेकिन वह रोने लगी और बोली, "मेरे पास तो तुम्हें देने के लिए कुछ भी नहीं है।" वह रोते हुए उसके चरणों में गिर पड़ी। इसके बाद वह अपने जीवन की नई शुरुआत करने के लिए शहर चला गया।
एक दिन, वृद्धा की बहू घर के कार्य से बाहर गई और उसने देखा कि कुछ महिलाएँ संतोषी माता की पूजा कर रही हैं। उसकी जिज्ञासा बढ़ी, और उसने उन महिलाओं से व्रत की विधि पूछी। महिलाओं ने उसे समझाया कि एक लौटे में जल, गुड़ और चने का प्रसाद लेकर संतोषी माता की पूजा करनी चाहिए और इस दिन खटाई का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए। बहू ने विधिपूर्वक माता की पूजा करना प्रारंभ कर दिया। धीरे-धीरे उसकी मेहनत रंग लाने लगी, और उसे पति की चिट्ठियाँ और पैसे मिलने लगे।
एक दिन, बहू ने माता से विनती की कि, "हे मां, जब मेरे पति घर वापस आ जाएंगे तो मैं व्रत का उद्यापन करूंगी।" माता संतोषी की कृपा से कुछ समय बाद उसका पति भी घर लौट आया। बहू ने खुशी-खुशी व्रत का उद्यापन किया। मगर, पड़ोस में रहने वाली एक स्त्री, जो उससे ईर्ष्या करती थी, ने अपने बच्चों को बहू के घर भेज दिया और उन्हें खटाई खाने के लिए प्रेरित कर दिया। इससे संतोषी माता क्रोधित हो गईं, और उसका पति राजा के सिपाहियों द्वारा पकड़ा गया।
बहू को अपनी भूल का अहसास हुआ, और उसने माता से क्षमा याचना की। उसने पुनः विधिपूर्वक व्रत का उद्यापन किया और माता से सच्चे मन से आशीर्वाद मांगा। संतोषी माता की कृपा से उसकी सारी कठिनाइयाँ समाप्त हो गईं, उसका पति सुरक्षित घर लौट आया, और उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
भगवान शुक्र जी की आरती:
आरती लक्ष्मण बालजती की,
असुर संहारण प्राणपति की।
जगत जोति अवधपुर राजे,
शेषाचल पै आप विराजे।
घंटा ताल पखावज बाजे,
कोटि देव मुनि आरती साजे।
क्रीट मुकुट कर धनुष विराजे,
तीन लोक जाकि शोभा राजे।
कंचन थार कपूर सुहाई,
आरती करत सुमित्रा माई।
आरती कीजैं हरि की तैसी,
ध्रुव प्रहलाद विभीषण जैसी।
प्रेम मगन होय आरती गावैं,
बसि बैकुण्ड बहुरि नहिं आवैं।
भक्ति हेतु लाड लडावै,
जन घनश्याम परम पद पावै।
आरती लक्ष्मण बालजती की,
असुर संहारण प्राणपति की।
जगत जोति अवधपुर राजे,
शेषाचल पै आप विराजे।
घंटा ताल पखावज बाजे,
कोटि देव मुनि आरती साजे।
क्रीट मुकुट कर धनुष विराजे,
तीन लोक जाकि शोभा राजे।
कंचन थार कपूर सुहाई,
आरती करत सुमित्रा माई।
आरती कीजैं हरि की तैसी,
ध्रुव प्रहलाद विभीषण जैसी।
प्रेम मगन होय आरती गावैं,
बसि बैकुण्ड बहुरि नहिं आवैं।
भक्ति हेतु लाड लडावै,
जन घनश्याम परम पद पावै।
शुक्र देव को खुश कैसे करें?
शुक्र ग्रह को प्रसन्न करने के लिए वैदिक ज्योतिष में कई सरल और प्रभावी उपाय बताए गए हैं। शुक्र ग्रह को प्रेम, सौंदर्य, भौतिक सुख-सुविधाओं और धन का प्रतीक माना जाता है। इसके नकारात्मक प्रभाव को कम करने और जीवन में सौभाग्य को बढ़ाने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:शुक्र ग्रह को प्रसन्न करने के लिए लक्ष्मी देवी की उपासना अति लाभकारी मानी जाती है। प्रतिदिन या विशेष रूप से शुक्रवार को देवी लक्ष्मी की पूजा करने से आर्थिक समृद्धि और सुख की प्राप्ति होती है।
कौन सा देवता शुक्र को नियंत्रित करता है?
शुक्र ग्रह को नियंत्रित करने वाले देवता देवी लक्ष्मी मानी जाती हैं, जो सौंदर्य, धन, और भौतिक सुखों की अधिष्ठात्री देवी हैं। शुक्र ग्रह को प्रसन्न करने के लिए देवी लक्ष्मी की पूजा अर्चना अति लाभकारी होती है। देवी लक्ष्मी को पंचामृत (दूध, शहद, घी, दही, और चीनी) से स्नान कराने से शुक्र के सकारात्मक प्रभावों में वृद्धि होती है। इसके अलावा, देवी लक्ष्मी को सफेद फूल अर्पित करना, चंदन का तिलक लगाना, और शुक्रवार को विशेष पूजा करना शुक्र को प्रसन्न करने के लिए उत्तम माना गया है।आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
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