चाणन छठ की कहानी / चंद्र षष्टी/ चंदन छठ/ उब छट की कहानी
एक साहूकार और एक साहुकारनी थी। साहूकारनी माहवारी के समय भी रसोई घर का कार्य करती तथा बर्तन और सभी वस्तुएं स्पर्श करती थी। थोड़े समय बाद साहूकार और साहूकारनी मर गए। दूसरे जन्म में साहूकार को बैल का रूप और साहूकारनी को कुत्तिया का रूप मिला।साहूकार और साहूकारनी बैल और कुतिया के रूप में अपने बेटे के घर में ही रहते थे। बैल दिन भर खेत में काम करता और कुत्तिया घर की रखवाली करती थी। एक दिन साहूकार का श्राद्ध आया। बहू ने रसोई में खीर बनाई। एक चील उड़ती हुई आई और मरे हुए सांप को खीर के बर्तन में डालकर उड़ गई। साहूकारनी अर्थात कुत्तिया ने यह सब देख लिया। उसने सोचा अगर इस खीर को ब्राह्मण ने खा लिया तो ब्राह्मण मर जायेगा।
इसलिए कुतिया ने खीर को जूठा कर दिया। यह सब बहू ने देख लिया और उसको बहुत गुस्सा आया। बहु ने चूल्हे में से जलती हुई लकड़ी निकाल कर कुतिया को बहुत मारा और उसे खाना भी नहीं दिया। बाद में दूसरी खीर बनाकर ब्राह्मण को खाना खिलाया।
रात को बैल और कुतिया आपस में बातें कर रहे थे तो कुत्तिया ने बैल को बताया कि चील ने खीर में मरा हुआ सांप डाल दिया था। इसलिए उसने खीर जूठी कर दी। बहू ने उसे बहुत मारा और खाना भी नही दिया। कुत्तिया बैल से बोली कि आज आपका श्राद्ध था आपको तो खाना मिला होगा।
बैल ने कहा नहीं मुझे भी आज खाना नहीं मिला और मुझसे खेत में बहुत काम करवाया। उधर बेटे बहु ने उन दोनों की बात सुन ली और दोनों को भरपेट खाना खिलाया। दूसरे दिन बेटे बहु ने ब्राह्मण को बुला कर पूछा कि हमारे माता-पिता किस रूप में हैं। तब पंडित ने बताया कि आपके पिता बैल के रूप में है और आपकी माता कुतिया के रूप में है।
पंडित ने बताया कि भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की छठ को लड़कियां व्रत करती हैं। बाद में कहानी सुनकर रात को अर्ग देती हैं। जब लड़कियां अर्ग देंगी तब इनको उनके उनके पास खड़ा कर देना। इससे ये दोनों इस रूप से आजाद हो जायेंगें। तुम्हारी मां माहवारी के समय भी रसोई घर के सारे कार्य करती थी। इसलिए उन्हें इस रूप में जन्म मिला। फिर आप अपने पिता को भी उनके पास खड़ा कर देना जिससे ये बैल और कुत्तिया के रूप से मुक्त हो जायेंगें।
हे चना छठ माता उनको मोक्ष देना और हमें भी मोक्ष देना। कहानी कहने वालों को और कहानी सुनने वालों को सभी को मोक्ष प्रदान करना और अपना आशीर्वाद बनाए रखना।
चंदन छठ का व्रत कब होता है?
चंदन छठ का व्रत भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को होता है। इसे हलषष्ठी भी कहा जाता है। शास्त्रों में इस व्रत को स्त्रियों को नरक से बचाने वाला, सुख, सौभाग्य, मोक्ष देने वाला अत्यन्त पवित्र पुण्य देने वाला, सौ गोदान का फल देने वाला उत्तम व्रत कहा गया है।चंदन छठ को हल छठ क्यों कहा जाता है?
हिंदू धर्म के अनुसार इस तिथि को बलराम जी का जन्म हुआ था। जो श्री कृष्ण जी के बड़े भाई थे। उनका शस्त्र हल था इसलिए इस षष्टि तिथि को हल षष्टि तिथि भी कहते हैं।हल छठ/ चंदन छठ क्यों किया जाता है?
यह व्रत पुत्र के सुख, शांति, समृद्धि और स्वास्थ्य लाभ के लिए किया जाता है।इस व्रत को संतान की प्राप्ति के लिए भी किया जाता है।
चंदन छठ इस वर्ष 2024 में कब किया जायेगा?
इस वर्ष चंदन छठ का व्रत 24 अगस्त 2024 को किया जायेगा।चंदन छठ को और किस नाम से जाना जाता है?
भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को चंदन छठ कहते हैं। इसके अलावा इसे चाणन छठ, चंद्र छठ, उब छठ और हल षष्टि के नाम से भी जाना जाता है। छठ के व्रत के सम्बन्ध में पौराणिक मान्यता है की माता सीता ने सूर्य देव की पूजा आराधना की और व्रत रखा था। इस व्रत से परिवान में सुख शांति बनी रहती है और संतान की उम्र लम्बी होती है। चन्दन षष्ठी व्रत हर वर्ष भाद्रपद कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को रखा जाता है। इस व्रत पर महिलाएं रात्रि में चन्द्रमा को अर्घ्य देकर अपना व्रत भोजन करके खोलती है। मान्यता है की इस रोज ही श्री कृष्ण जी के बड़े भाई बलराम जी का जन्म भी हुआ था। इसलिए उनके प्रतीक हल का भी इस रोज विशेष महत्त्व है यही कारण है की इसे हलषष्ठी भी कहा जाता है।चंदन छठ क्या है?
चन्दन छठ जिसे राजस्थान में चानण छठ के नाम से जानते हैं, इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं और सूर्य और चन्द्रमा की पूजा करती है। इस व्रत को ही उत्तर भारत के कुछ इलाकों में चन्दन छठ भी कहते हैं।
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