बुध अष्टमी की व्रत कथा Buddh Ashtmi Vrat Katha
एक गांव में एक साहूकारणी थी। साहूकारणी के बेटे का नाम बुधिया था और बेटी का नाम बुधणी था। साहूकारणी हमेशा दूसरों के लिए आटा पिसती थी।उसी आटे में से पाव आटा घर पर ही छुपा कर रख लेती थी। उसकी बेटी बुधणी उसे कहती थी की मां आप यह आटे की चोरी मत किया करो। पर वह मानती नहीं थी।
एक दिन साहूकारणी कुछ दिनों के लिए अपने पीहर जाने लगी। तब उसने अपने बेटी से कहा की आटा पीस के दे देना और एक पाव आटा रख लेना। पीछे से बुधणी ने आटा पीस कर दिया लेकिन वह आटा पूरा ही दे देती थी। उसने पाव आटा अपने पास नहीं रखा।
एक दिन साहूकारणी कुछ दिनों के लिए अपने पीहर जाने लगी। तब उसने अपने बेटी से कहा की आटा पीस के दे देना और एक पाव आटा रख लेना। पीछे से बुधणी ने आटा पीस कर दिया लेकिन वह आटा पूरा ही दे देती थी। उसने पाव आटा अपने पास नहीं रखा।
थोड़े दिनों बाद जब बुधणी की मां पीहर से आकर गेहूं लाने गई तब सभी लोग बोलने लगे कि तू तो चोर है। तू हमारा आटा रख लेती थी। तेरी बेटी ने हमें पूरा आटा दिया है। अब हम तुझसे आटा नहीं पिसवाएंगे।
तब गुस्से में घर आकर उसने बेटी को बहुत मारा और कहा कि तुमने मेरी कमाई छुड़वा दी। अब उसने अपने बेटे से कहा कि अपनी बहन को घर से निकाल दे। चाहे तू कुत्ते से ही इसकी शादी कर दे लेकिन इसकी शादी कर और इसको घर से बाहर निकाल।
तब गुस्से में घर आकर उसने बेटी को बहुत मारा और कहा कि तुमने मेरी कमाई छुड़वा दी। अब उसने अपने बेटे से कहा कि अपनी बहन को घर से निकाल दे। चाहे तू कुत्ते से ही इसकी शादी कर दे लेकिन इसकी शादी कर और इसको घर से बाहर निकाल।
जब साहूकारणी का बेटा बुधिया अपनी बहन के लिए वर ढूंढने बाहर निकाला तो भगवान ने सोचा की यह तो किसी से भी अपनी बहन की शादी कर देगा और हमें कोई नहीं मानेगा।
फिर भगवान ने काले कुत्ते का भेष धरा और बुधिया ने उसके तिलक कर दिया। सारे गांव में भगवान की शादी के बात होने लगी। सभी लोग भगवान की शादी की बात करने लगे। सभी लोग दर्जी, मुंशी, सुनार, लोहार सब उनके घर में काम कर रहे थे।
बुधणी की मां मोढी के पास गई और बोली की मेरी बेटी की शादी है इसलिए उसके लिए शादी के कपड़े रंग दे। तो मोढी ने कहा कि हम तो भगवान के विवाह की चुनरी रंग रहे हैं हमें फुर्सत नहीं है। तब बुधणी की मां दर्जी के पास गई और बोली कि मेरी बेटी की शादी है तू मुझे उसकी शादी के कपड़े सील कर दे। दर्जी ने भी मना कर दिया और कहा कि हम तो भगवान की शादी के बागा दुपट्टे सी रहे हैं। हमें फुर्सत नहीं है।
फिर बुधणी की मां सुनार के पास गई और कहा कि मेरी बेटी की शादी है तुम मेरी बेटी के लिए कांधला गुजरी घड़ कर दो। यह सब सुनकर सुनार ने भी मना कर दिया और कहा कि हम तो भगवान की शादी की तैयारी कर रहे हैं। मैं तो भगवान के और बुधणी के गहने बना रहा हूं।
जब जहां पर बुधणी की मां जा रही थी सभी जगह से उसको ना का जवाब मिला। घर आकर वह अपनी बेटी को मारने लगी और कहा कि पता नहीं कैसी अभागिन है। कोई भी तेरी शादी का कार्य करने को तैयार नहीं है।
भगवान कुत्ते का भेष धरकर के बारात लेकर आने लगे। सारे गांव में चर्चा होने लगी की बुधणी की मां ने बुधणी की शादी कुत्ते के संग तय कर दी है। बुधनी ने भगवान से कहा है भगवान सारा गांव हंस रहा है। आप अपना रूप छोड़कर असली रूप दिखाइए। भगवान शादी होने के बाद जब विदा होने लगे तो बहुत सी बारात, हाथी, घोड़ा बहुत से गहने पहन कर बुधनी जी को साथ लेकर चले।
सारा गांव देखने लग गया कि कुत्ते के संग ब्याह किया था। पर यह तो सत्य की देवी थी जिससे भगवान स्वयं शादी करने आए। बुधणी जी को बहुत दिन ससुराल में रहते हुए हो गए। तब एक सखी ने बुधणी को कहा कि भगवान जी तुमसे बहुत प्यार करते हैं। लेकिन एक कमरा है जिसकी चाबी वह किसी को भी नहीं देते।
बुधणी ने भगवान जी से कहा कि हे भगवान मुझे सातवें कमरे की चाबी चाहिए। मैंने सातवां कमरा नहीं देखा है। इसलिए मैं सातवां कमरा देखना चाहती हूं। भगवान जी बोले कि आप सातवें कमरे की चाबी मत मांगो अन्यथा आपको पछताना पड़ेगा।
लेकिन बुधणी ने भगवान जी की बात नहीं मानी और कहा कि नहीं मुझे उसे सातवें कमरे की चाबी चाहिए। मुझे देखना है कि उसे कमरे में क्या है। भगवान जी ने उसको वह चाबी दे दी। जब बुधणी ने कमरा खोला तो देखा कि उसकी मां कीड़ों के कुंड में पड़ी है। तो बुधणी से देखा नहीं गया और उसने भगवान से कहा कि मेरी मां को कीड़ों के कुंड में से निकाल कर बैकुंठ का वास करवाइए।
भगवान जी ने कहा कि वह तो अपने कर्म का फल भोग रही है। तुम्हारी मां सबका आटा चुराती थी इसी वजह से इस दोष से यह कीड़ों के कुंड में है। आप पूरा आटा देती थी इसीलिए आपकी शादी मेरे साथ हुई।
बुधणी ने कहा है भगवान आपके जैसे दामाद होने पर भी अगर मेरी मां इस नर्क से आजाद नहीं होगी तो कैसे होगी। तो भगवान ने कहा कि अगर तुम्हारी भाभी बुध अष्टमी के आठ व्रत करें और नोवें व्रत को बुध अष्टमी का उद्यापन करें। तब आपकी मां की का यह कष्ट दूर हो जाएगा।
बुधणी लुहारिन का भेष धरकर अपने गांव गई। वहां पर उसकी भाभी प्रसव पीड़ा से बहुत दुखी थी। लुहारिन ने कहा कि मुझे हाथ लगाने दो आपका बच्चा आसानी से हो जायेगा। लेकिन उसके बाद जो मैं बोलूं वही आपको करना पड़ेगा। तो उसकी भाभी ने कहा ठीक है। थोड़ी देर बाद भाभी के बच्चा हो गया। फिर लुहारिन ने कहा कि शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को जब बुधवार हो तब आप उसके आठ व्रत करना। जब नौंवा व्रत हो तो उद्यापन कर देना। ऐसा करने से मेरे मां बाप किसी भी जुनी में होंगे वो वहां से निकल कर बैकुंठ में विराजमान हो जायेंगें।
साहूकारनी की बहू ने वैसा ही किया और जब व्रत का उद्यापन किया तब बैकुंठ से विमान लेने के लिए आया। फिर बुधणी जी ने पूछा कि आप कौन हो। तब भगवान जी ने बुधणी को सारी बात बता दी और सारे गांव में हेला फिरा दिया। जो भी व्यक्ति बुध अष्टमी का व्रत करेगा, कहानी सुनेगा उसको भगवान का आशीर्वाद मिलेगा।
हे बुध अष्टमी माता जैसा बुधणी जी को दिया वैसे सबको देना। कहानी कहने वालों को, कहानी सुनने वालों को अपने सारे परिवार को वैसा ही आशीर्वाद देना। जैसे बुधणी जी की मां को बैकुंठ भेजा वैसे सबको भेजना, हमें भी भेजना। हे माता अपना आशीर्वाद हमारे परिवार के सभी सदस्यों पर बनाए रखना।
बुध अष्टमी कब मनाई जाती है?
हिंदू धर्म के पंचांग में जिस महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को बुधवार होता है उसी दिन बुध अष्टमी मनाई जाती है।बुध अष्टमी का व्रत क्यों किया जाता है?
बुध अष्टमी का व्रत करने से जीवन में सुख, समृद्धि और संपन्नता के प्राप्ति होती है। बुध अष्टमी का व्रत करने से बौद्धिक क्षमता भी विकसित होती है। हिंदू धर्म में माना गया है कि बुध अष्टमी का व्रत करने से गणेश जी की कृपा प्राप्त होती है। जिससे व्यापार में वृद्धि होती है। जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संसार होता है।बुध अष्टमी के व्रत में क्या खाना चाहिए?
बुध अष्टमी व्रत में भोजन और शुद्धता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इस दिन पूजाघर में बुध यंत्र की स्थापना करें और उसकी नियमित पूजा करके शुद्धता बनाए रखें। भोजन में मूंग की दाल से बनी पंजीरी या हलवा तैयार करें। इसे भोग स्वरूप अर्पित करें और पूजा के बाद इसे प्रसाद के रूप में बांटें। शेष प्रसाद को सायंकाल सेवन करें। इस व्रत में भोजन का सेवन दान करने के पश्चात ही करना चाहिए।बुधवारी अष्टमी को क्या करना चाहिए?
बुधवारी अष्टमी एक विशेष तिथि है जिसमें किए गए जप, तप, मौन, दान, और ध्यान का फल अक्षय माना जाता है। इस दिन शुभ संकल्प, मंत्र जप, और ध्यान के लिए उत्तम समय होता है, जैसे कि सोमवती अमावस्या, रविवारी सप्तमी, मंगलवारी चतुर्थी, और बुधवारी अष्टमी, जिन्हें सूर्यग्रहण के बराबर प्रभावशाली माना गया है। बुधवारी अष्टमी पर स्नान, जप-ध्यान, दान, और श्राद्ध करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है।अष्टमी का व्रत कैसे खोला जाता है?
अष्टमी व्रत का पारण रात्रि में तारा या चंद्रमा को अर्घ्य देकर किया जाता है। व्रत खोलने के लिए पहले कलश में जल भरकर अहोई अष्टमी की कथा का श्रवण किया जाता है। इसके बाद अहोई माता को पूरी, हलवा आदि का भोग लगाकर पूजा की जाती है। फिर महिलाएं चंद्रमा या तारे को अर्घ्य अर्पित करके व्रत का पारण करती हैं। इस व्रत का फल संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के रूप में प्राप्त होता है।आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
- आसमाता की कहानी आस माता की कथा, कहानी, व्रत, पूजा विधि Aas Mata Ki Vrat Katha Padhe Puri Kahani
- गाज माता की कहानी पढ़ें पूरी कथा Gaaj Mata Ki Kahani Vrat Katha
- चाणन छठ, चन्दन षष्ठी व्रत कथा Chanan Chhath Katha
- गणगौर की कथा गणगौर की व्रत कथा महात्म्य विधि Gangor Ki Vrat Katha Importance Mahatv
- सत्यनारायण भगवान व्रत कथा Satyanarayan Bhagwan Ki Vrat Kahani
- बछ बारस की व्रत कथा जानिए बछबारस व्रत का महत्व Bachh Baras Ki Vrat Katha Mahatv PDF
- तिलकुटा चौथ की व्रत कहानी Tilkuta Chouth Ki Kahani Vrat Katha
- करवा चौथ की व्रत कहानी करवा चौथ पर पढ़ें Karwa Chauth Vrat Katha Karva Choth Ki Kahani
- बुध अष्टमी की व्रत कथा Buddh Ashtmi Vrat Katha