वस्त्रहरण रांझा महाभारत रैप सॉन्ग

वस्त्रहरण रांझा महाभारत रैप सॉन्ग


वो द्यूत नहीं प्रपंच था ऐसा,
एक एक कर दांव हुए,
जो किसी ने ना था सोचा वो,
इतिहास की छाती पे घाव हुए।

हां सभा वो धर्म की सारी थी,
जहां लगी दांव पे नारी थी,
घसीट के लाया दुःशासन,
वह असहाय बेचारी थी।

वो कराहती चिल्लाती गई,
द्रौपदी गुहार लगाती रही,
पर बन गए सब पाषाण हृदय,
किसी को ना चीख सुनाई दी।

केशों से खींचा सिर को पटका,
आमंत्रित किया विनाश कुल का,
दुर्दशा हुई एक नारी की,
कोई पशु भी ना ऐसा कृत्य करता।

हे भीम उठाओ गदा तुम अपनी,
ना झुकाओ इन आंखों को,
जिस दुःशासन ने छुआ मुझे,
उखाड़ दो उसके हाथों को।

हे अर्जुन क्या तुम भूल गए,
वो प्रण जो लिया मेरे रक्षण का,
लो हाथ में तुम गांडीव,
और काटो मस्तक अब दुर्योधन का।

हे आर्य करो रक्षा मेरी,
ये शब्द गूंजे दरबार में थे,
किसी ने भी ना रोका पाप,
द्रौपदी के आंसू निकलते रहे।

हां धर्म को शास्त्र बनाकर के,
मर्यादाएं भंग होती गईं,
कुकर्म हुआ ऐसा कि कालिख,
भारतवर्ष पर पोथी गई।

जिस धारा पे पूजा जाता है,
देवों से पहले देवी को,
वहां हुई कलंकित कीर्ति वो,
इतिहास ने ना कभी देखी हो।

रिश्तों के धागे तार तार,
हुआ शर्मसार ये संसार,
एक नारी के वस्त्र,
उतरते देखता रह गया,
उसी का परिवार।

हां आंख झुका सब सहते रहे,
जो वीर स्वयं को कहते थे,
हां द्रोण पितामह अर्जुन कर्ण,
नपुंसक बन सब बैठे थे।

अब कान्हा तुम ही लाज रखो,
इस सखी की रक्षा आज करो,
द्रौपदी की आन तुम्हारी हुई,
गोविंद मेरा अब मान रखो।

गोविंद,
मायापति की माया के आगे,
छल का साया काम ना आया,
खींचे दुःशासन पाँचाली के,
वस्त्र का ना अंत पाया।

द्रौपदी के वस्त्र तन पे रहे,
जो ले ली उसने कृष्ण शरण,
पर पुरुष वो सभी निर्वस्त्र हुए,
जो देख रहे थे वस्त्रहरण।

बातों से अब ना बच सकता,
ये समय है तेरे मर्दन का,
तेरी माता ना बनती बांझ अगर,
तू आज ना ऐसा छल करता।

एक नारी का सम्मान करना,
अरे सिखा ना पाखंडी तू,
एक नारी से हुई उत्पत्ति तेरी,
भूल गया घमंडी तू।

जो कर्म किए तूने दुर्योधन,
तेरे कुल के पतन का तू कारण,
और आज के पाप के परिणाम का,
तू ही बनेगा उदाहरण।

इतिहास के पन्नों में शामिल होगी,
दुर्दशा इतनी कातिल होगी,
तू भिक्षा मांगेगा मृत्यु की,
पर मृत्यु तुझे ना हासिल होगी।

ना गिरे आज द्रौपदी के वस्त्र,
पुरुषों की यहां शर्म गिरी,
ना आंख उठी ना शस्त्र उठे,
यहां हुई पराजय धर्म ही की।

जिसे ढाल बना कुकर्म हुआ,
वो कैसा निर्लज्ज धर्म भला,
इतिहास मांगे उत्तर महावीरों,
कैसे ना आई तुम्हें शर्म जरा।

जो हुआ न अब तक अब होगा,
ना हुआ हो ऐसा रण होगा,
और बातें होंगी शस्त्रों से,
अब माफी नहीं मर्दन होगा।

तुम रोक न पाओगे रक्तपात को,
स्वयं बुलाया सर्वनाश को,
बैठे यहां प्रत्येक मनुष्य की,
बली चढ़ेगी यमराज को।

खत्म संपूर्ण वंश होगा,
सब छल और कपट का अंत होगा,
जो भूल पाए त्रिदेव भी न,
रणभूमि में ऐसा विध्वंश होगा।

अब प्राणों का ना दान मिलेगा,
हर आंसू का हिसाब मिलेगा,
बिखरे होंगे मस्तक इतने,
वर्षों तक कोई गिन न सकेगा।

छल का उत्तर वार से देंगे,
रिश्तों का ना मान रखेंगे,
शपथ ये पांडव पुत्रों की,
पाँचाली का नहीं अपमान सहेंगे।

शिव का भयानक तांडव होगा,
अंत का अब ये आरंभ होगा,
रण में रक्त ही रक्त होगा,
भारत में महाभारत होगा।
महाभारत एक अद्वितीय महाकाव्य है। महाभारत धर्म, अधर्म, सत्ता और न्याय के संघर्ष को बताती है। द्रौपदी के वस्त्रहरण इस का सबसे हृदयविदारक अध्याय है, जो नारी के सम्मान और पुरुषों की कायरता उदाहरण है। उस सभा में धर्म और अधर्म का अंतर धुंधला पड़ गया था। उस समय महान योद्धा मौन रहे और पाप अपने चरम पर पहुंच गया था। इस वस्त्रहरण ने कुरुक्षेत्र के महासंग्राम का बीज बोया था। इस प्रकार महाभारत सत्य और धर्म के विजय की गाथा है।


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Song:- Vastraharan
Lyrics & Composition:- Raanjha
Rap:- Raanjha
 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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