एक तरफ सांवले से कान्हा दूजी राधिका गोरी

एक तरफ सांवले से कान्हा दूजी राधिका गोरी

दुनिया क्या अपनी हस्ती,
को ही मिटा बैठे हैं,
जिस पल हम राधा रानी से,
दिल को लगा बैठे हैं,
दुनिया क्या अपनी हस्ती,
को ही मिटा बैठे हैं,
जिस पल हम अपने मोहन से,
दिल को लगा बैठे हैं।

हम खोये रहें उनमें हैं,
जब से प्रीत लगी है मोरी,
एक तरफ सांवले से कान्हा,
दूजी राधिका गोरी,
जैसे एक दूसरे से मिलकर,
हो गये चांद चकोरी।

कान्हा मुरली की तान सुनावें,
तो सुर राधे बन जाए,
और श्याम उसी को मिलते हैं,
जो राधे राधे गाये,
गुलाल लगावे राधा के,
कान्हा खेले जब होरी,
एक तरफ सांवले से कान्हा,
दुजी राधिका गोरी,
जैसे एक दूसरे से मिलकर,
हो गये चांद चकोरी।

भटका है मन माया में,
अब हरि से ध्यान लगाना,
करुणा करके सबको भजकर,
ये जीवन शुद्ध बनाना,
उसे मोहन मुरली वाले ने,
दिल की करी है चोरी,
एक तरफ सांवले से कान्हा,
दुजी राधिका गोरी,
जैसे एक दूसरे से मिलकर,
हो गये चांद चकोरी।

राधा और श्रीकृष्ण का प्रेम आत्मिक और अलौकिक था। उनका प्रेम सिर्फ भक्ति और समर्पण था। राधा का प्रेम कृष्ण के प्रति निस्वार्थ था। जो उनके नाम और स्मरण में ही पूर्ण था। श्रीकृष्ण भी राधा के प्रेम को सर्वोच्च मानते थे। इसलिए उनका नाम सदा साथ में लिया जाता है। इनका प्रेम भौतिक दुनिया की सीमाओं से परे शुद्ध आत्मिक प्रेम है। जय श्री राधाकृष्ण।


SANWLE SE KANHA 2.0 | सांवले से कान्हा | Nikhil Verma | Kshl | NEW VERSION | Krishna Bhajan | 2025

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