होना है पूतना संघार हिंदी रैप देवकी माई के आठवें पुत्र, कारावास से गोकुल में आये, पुत्र भी कौन है स्वयं नारायण, जो करने को लीला फिर धरा पे आये, यशोदा माई के आया है लाल तो, सारा नगर है उत्सव मनाये, किसी को ज्ञात ना कान्हा के नाम का, नन्हा सा बालक ये लीलाधर क्या है।
कंस का नगर में खोफ सा, लहू बहाना है रोज का, वो खोजता प्रतिदिन बालक को, बनेगा कारण जो कल उसकी मौत का, दिव्य बालक हैं नन्द का, कंस तक आई ये सूचना, शूरु हैं यहां से कथा कि, कैसे जा मृत्यु से मिली पूतना।
कंस के कहने पे चली हैं पूतना, मारने आज एक शिशु को, बदलती रूप वो लाखों प्रकार के, कर देती मोहित कर किसी को, बनाके छल कि योजना हरेगी, बालक के प्राण वो आज, लिये एक देवी सा भेष और कदम, बढ़ाये हैं गोकुल की ओर को।
छलिये को आयी है छल से हराने, पूतना बदल के रूप, नगर के लोग भी मोहित हो गए, रूप भी ऐसा है खूब, पूछा है नंद का भवन, कहां यशोदा का लाल, देवता भी थर्राते हैं उससे, बदलती भेष कमाल।
यशोदा माई से मिली वो बोली कि, लाल के दर्श को आई हूं आज, दिव्य जन्मा है बालक ये तेरा और, दो मुझे हुई है सिद्धियां प्राप्त, पहली तो यहीं कि होता नहीं कभी भी, निष्फल मेरा दिया आशीर्वाद, और दूसरी सिद्धि कि बहती है स्तनों से, मेरे तो अमृत की रस धार।
आई हैं पूतना मारने हरि को, रूप बदल के चली वो, कराने आई हैं विषपान, कंश ने चाल ये छल की चली जो, भविष्यवाणी ना झूठी हो, होना है पूतना संघार।
अमर हो जायेगा, मेरे दुग्ध के पान से बालक ये, कोई बला ना छू भी पायेगी, बड़ा अलौकिक है बालक ये, यशोदा माई मुस्काई हैं, अंजान हैं वो इस छलावे से, भरी हैं हामी पिलाने को दूध, अब पूरी षड्यंत्र की बारी हैं।
तेरे बालक को आशीर्वाद, अवश्य दे सकती हूं, मेरे स्तनों से निरंतर, अमृत रस छड़ता रहता है, जिसे पीने से जिसके पीने से, तेरा पुत्र अमर हो जायेगा, अर्थात मैं इसकी थाई बनकर, इसे अपना दूध पिला देती हूं।
स्तन पे लगा के विष को, चली हैं पूतना हरि को मारने, छलावा बनी थी देवी जो, हरि तो मन ही मन सब जानते, समय है हरि की लीला का उठाई, पूतना बालक को हाथ में, पूतना स्वयं नारायण को विष, पिला रही दूध की आड़ में।
कर रहा शिशु वो दुग्ध पान, अमृत के नाम पे विषपान, मन ही मन झूमती पूतना, ये कंस के भय का समाधान, माया थी समझ से परे, आत्मा पूतना की हुई बैचैन, जब करने लगा शिशु दूध के, साथ में पूतना के वही प्राणवान।
हर रहे आत्मा हरि तो पीड़ा से, तिलमिला बैठी है चीख का शोर, बालक ना छोड़े वो स्तन की पकड़, तो उठी चिल्लाई हैं सभी में खोफ, यशोदा माई हैं भय से युक्त की, कान्हा सर आई एक बला हैं जो, पीड़ा वो पाई ना झेल तो स्वयं के, रूप विकराल में आई है लौट।
दौड़े वो यहां वहां कान्हा छोड़े कहां, जिसे पकड़े एक बार वो, चिंता में नगर सारा भय बढ़ता जा रहा, लेगी बालक के प्राण क्यों, पर कोई ना समझ पा रहा, ऐसी रची माया गिरी भूमि पे आ वो, कान्हा हैं गोद में उसकी और पहुंची हैं, काल के मुख में जा वो।
कई कोस के शरीर में, ध्वस्थ कर नगर के वन, भय में नगर के वासी, हृदय में सभी के कंप, देख के कान्हा को चैन पड़ी, जीवित हैं बालक कुशल, लीला यें हुई प्रारम्भ, हुआ है पूतना वध।
छ दिन के बालक ने छ कोस बड़ी, एक मायावी ध्वस्थ की राक्षसी, हरि के आई जो हरने थी प्राण, वो क्रिया भी थी दुग्ध पान की, योजना भले थी छल की, उसमें भी ममता सी झलक थी, इसी करण श्री हरि ने पूतना को, भी दी गति एक मां सी।
आई हैं पूतना मारने हरि को, रूप बदल के चली वो, कराने आई हैं विषपान, कंश ने चाल ये छल की चली जो, भविष्यवाणी ना झूठी हो, होना है पूतना संघार।
पूतना राक्षसी कंस की भेजी हुई राक्षसी थी। जो छोटे बच्चों को मारने के लिए आई थी। जब श्रीकृष्ण का जन्म हुआ तो कंस ने पूतना को श्री कृष्ण को मारने गोकुल भेजा। पूतना एक सुंदर स्त्री का रूप बनाकर करके नंद बाबा के घर पहुंची और श्रीकृष्ण को अपनी गोद में उठा लिया। उसने अपने स्तनों पर विष लगाकर कृष्ण को दूध पिलाने की कोशिश की। लेकिन श्रीकृष्ण ने उसके प्राण ही खींच लिए। पूतना छटपटाने लगी और अंत में अपने असली राक्षसी रूप में गिरकर मर गई। भगवान श्रीकृष्ण ने बचपन में ही इतने बड़े संकट को समाप्त कर दिया और गोकुलवासियों को सुरक्षित किया।
Putna Vadh - Vayuu | पूतना संघार कथा Rap Song | Krishna Leela | Hindi Rap
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