एक सुंदर पहाड़ी गाँव, शिवपुर, जहाँ हरे-भरे पेड़ और शांत वातावरण था, वहाँ दो परिवार आमने-सामने रहते थे। एक था सुधीर और रमा का परिवार, जिसमें दिन-रात बहस और तनाव का माहौल रहता था। दूसरा था अजय और कविता का परिवार, जहाँ हमेशा हँसी-खुशी और सौहार्द बना रहता।
रमा को हमेशा यह बात कचोटती कि उनके पड़ोसी इतने सुखी और शांत कैसे रहते हैं। एक दिन उसने सुधीर से कहा,
"तुम जाकर पता करो कि अजय और कविता इतने खुशहाल कैसे रहते हैं! कहीं कोई रहस्य तो नहीं?"
सुधीर को यह सुझाव अच्छा लगा। अगले दिन वह चुपके से उनके घर के पास जाकर खिड़की के पास छिप गया।
अंदर कविता झाड़ू लगा रही थी कि अचानक किचन से कुछ गिरने की आवाज़ आई। वह जल्दी से किचन की ओर भागी। इसी दौरान अजय कमरे की ओर जा रहा था, लेकिन उसका ध्यान दरवाज़े के पास रखे पानी के जग पर नहीं गया, और उसका पैर फिसल गया। पूरा पानी फ़र्श पर फैल गया।
कविता किचन से लौटकर आई और जैसे ही गीला फर्श देखा, मुस्कुराकर बोली,
"अरे! मेरी गलती है, मुझे यह पानी यहाँ नहीं रखना चाहिए था।"
अजय भी मुस्कुरा दिया और बोला,
"नहीं, नहीं! गलती मेरी है, मुझे देखकर चलना चाहिए था।"
सुधीर यह देखकर स्तब्ध रह गया। अगर यही घटना उसके घर में होती, तो अब तक जोर-जोर से झगड़ा हो चुका होता। वह चुपचाप घर लौटा।
रमा ने उत्सुकता से पूछा, "क्या पता चला?"
सुधीर ने गहरी साँस लेते हुए कहा,
"हमारा परिवार हमेशा एक-दूसरे को दोष देता है, लेकिन अजय और कविता अपनी गलतियाँ मान लेते हैं। वे अहंकार को छोड़कर 'हम' को अपनाते हैं, इसलिए उनके घर में शांति बनी रहती है।"रिश्तों की मधुरता अहंकार को त्यागने और अपनी गलतियों को स्वीकारने से बढ़ती है। जब हम बहस में जीतने की बजाय रिश्तों को संवारने पर ध्यान देते हैं, तो परिवार में सुख-शांति बनी रहती है। खुशहाल जीवन का रहस्य एक-दूसरे को समझने, सहयोग देने और छोटी-छोटी बातों को प्यार से संभालने में छिपा होता है।