जुड़ रहे हैं तार उर के तुमसे मेरे शंकरा, उड़ रहे संताप सारे जैसे हों कोई हवा, मैं द्वन्द सारे छोड़कर तेरी शरण में आ गया, तेरे चरण की वंदना में सार जग का पा गया, भीगे नयन मन हो मगन सब तुझ में ही पाए, मन शम्भू शम्भू शम्भू शम्भू शम्भू शम्भू गाये, मन शम्भू शम्भू शम्भू शम्भू शम्भू शम्भू गाये।
अब डर का ना कोई माया का, ना मोह का अभिमान का, अब भय ना कोई हार का, ना जीत का यश गान का, हां छट रहा है सब अंधेरा, निज अहं अज्ञान का, मैं दीप्त जैसे हो गया, तेरी आभा से मेरे शंकरा।
मुड़ रहे हैं राग सारे पग में तेरे शंकरा, जग रहे हैं भाग मेरे जैसे हो तुमने छुआ, मैं बृन्द जग के छोड़ कर तेरी शरण में आ गया, तेरे चरण की वंदना में क्षीर जग का पा गया, भीगे नयन मन हो मगन सब तुझ में ही पाए, मन शम्भू शम्भू शम्भू शम्भू शम्भू शम्भू गाये, मन शम्भू शम्भू शम्भू शम्भू शम्भू शम्भू गाये।
भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं। वे डमरू बजाकर तांडव नृत्य करते हैं जिससे सृष्टि में ऊर्जा प्रवाहित होती है। उनकी जटाओं से गंगा बहती है जो धरती को पावन बनाती है। भोलेनाथ अपने भक्तों पर अपार कृपा बरसाते हैं और उनका कल्याण करते हैं। उनके नृत्य से सृष्टि का संतुलन बना रहता है। जय शिव शंकर।
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