हिंदी अर्थ सहित जानिये रहीम दास जी के दोहे

हिंदी अर्थ सहित जानिये रहीम दास जी के दोहे

 
रहीम के दोहे हिंदी में Raheem Ke Dohe Hindi Lyrics

धन थोरो इज्‍जत बड़ी, कह रहीम का बात ।
जैसे कुल की कुलबधू, चिथड़न माँह समात ॥

धन दारा अरु सुतन सों, लगो रहे नित चित्‍त ।
नहिं रहीम कोउ लख्‍यो, गाढ़े दिन को मित्‍त ॥

धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पिअत अघाय ।
उदधि बड़ाई कौन हे, जगत पिआसो जाय ॥

धरती की सी रीत है, सीत घाम औ मेह ।
जैसी परे सो सहि रहै, त्‍यों रहीम यह देह ॥

धूर धरत नित सीस पै, कहु रहीम केहि काज ।
जेहि रज मुनिपत्‍नी तरी, सो ढूँढ़त गजराज ॥

नहिं रहीम कछु रूप गुन, नहिं मृगया अनुराग ।
देसी स्‍वान जो राखिए, भ्रमत भूख ही लाग ॥

नात नेह दूरी भली, लो रहीम जिय जानि ।
निकट निरादर होत है, ज्‍यों गड़ही को पानि ॥

नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत ।
ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछू न देत ॥

निज कर क्रिया रहीम कहि, सुधि भाव के हाथ ।
पाँसे अपने हाथ में, दॉंव न अपने हाथ ॥
 
धन थोरो इज्‍जत बड़ी, कह रहीम का बात।
जैसे कुल की कुलबधू, चिथड़न माँह समात॥


रहीम कहते हैं कि थोड़े धन के साथ बड़ी इज्जत होना श्रेष्ठ है, जैसे कुलीन परिवार की बहू साधारण वस्त्रों में भी सम्मानित रहती है।

धन दारा अरु सुतन सों, लगो रहे नित चित्‍त।
नहिं रहीम कोउ लख्‍यो, गाढ़े दिन को मित्‍त॥


रहीम कहते हैं कि जिनका मन सदा धन, पत्नी और पुत्रों में लगा रहता है, उन्होंने कठिन समय के मित्र को नहीं पहचाना। सच्चे मित्र वही हैं जो विपत्ति में साथ दें।

धनि रहीम जल पंक को, लघु जिय पिअत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय॥


रहीम कहते हैं कि तालाब का जल धन्य है, जो छोटे जीवों की प्यास बुझाता है। समुद्र की बड़ी बात क्या, जिसका जल संसार के लिए प्यासा ही रहता है।

धरती की सी रीत है, सीत घाम औ मेह।
जैसी परे सो सहि रहै, त्‍यों रहीम यह देह॥


रहीम कहते हैं कि धरती की प्रकृति है कि वह सर्दी, गर्मी और वर्षा सहन करती है। उसी प्रकार यह शरीर भी सुख-दुःख सहन करता है।

धूर धरत नित सीस पै, कहु रहीम केहि काज।
जेहि रज मुनिपत्‍नी तरी, सो ढूँढ़त गजराज॥


रहीम कहते हैं कि जो धूल रोज़ सिर पर गिरती है, उसका क्या महत्त्व? वही धूल, जिसमें मुनि की पत्नी अहिल्या का उद्धार हुआ, उसे गजराज (हाथी) ढूंढ़ता है।

नहिं रहीम कछु रूप गुन, नहिं मृगया अनुराग।
देसी स्‍वान जो राखिए, भ्रमत भूख ही लाग॥


रहीम कहते हैं कि यदि देशी कुत्ते को पाला जाए, जिसमें न तो रूप है, न गुण, न शिकार का शौक, तो वह भूख से ही भटकता रहेगा।

नात नेह दूरी भली, लो रहीम जिय जानि।
निकट निरादर होत है, ज्‍यों गड़ही को पानि॥


रहीम कहते हैं कि संबंधों में दूरी भली होती है, क्योंकि निकटता से निरादर होता है, जैसे गड्ढे का पानी निकट होने पर भी तुच्छ माना जाता है।

नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत।
ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछू न देत॥


रहीम कहते हैं कि हिरण संगीत पर मोहित होकर अपना शरीर दे देता है, मनुष्य धन के लिए प्राण तक दे देता है, लेकिन जो रीझकर भी कुछ नहीं देता, वह पशु से भी अधम है।

निज कर क्रिया रहीम कहि, सुधि भाव के हाथ।
पाँसे अपने हाथ में, दॉंव न अपने हाथ॥


रहीम कहते हैं कि अपने कर्म करना हमारे हाथ में है, लेकिन उसका फल भाग्य के अधीन है। जैसे पांसे हमारे हाथ में हैं, पर दांव हमारे हाथ में नहीं।

पूरा नाम – अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना, (रहीम दास)
जन्म – 17 दिसम्बर 1556 ई.
मृत्यु – 1627 ई. (उम्र- 70)
उपलब्धि – कवि,

मुख्य रचनाए – रहीम रत्नावली, रहीम विलास, रहिमन विनोद, रहीम ‘कवितावली, रहिमन चंद्रिका, रहिमन शतक,
रहीम का पूरा नाम अब्दुल रहीम खानखाना था। रहीम मध्यकालीन कवि, सेनापति, प्रशासक, आश्रय दाता, दानवीर कूटनीतिज्ञ, बहु भाषा विद, कला प्रेमी सेनापति एवं विद्वान थे। रहीम के पिता का नाम बैरम खान और माता का नाम सुल्ताना बेगम था।
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