शिक्षाप्रद रहीम दास के दोहे सरल अर्थ सहित
नैन सलोने अधर मधु, कहि रहीम घटि कौन ।
मीठो भावै लोन पर, अरु मीठे पर लौन ॥
पन्नग बेलि पतिव्रता, रति सम सुनो सुजान ।
हिम रहीम बेली दही, सत जोजन दहियान ॥
परि रहिबो मरिबो भलो, सहिबो कठिन कलेस ।
बामन है बलि को छल्यो, भलो दियो उपदेस ॥
पसरि पत्र झँपहि पितहिं, सकुचि देत ससि सीत ।
कहु रहीम कुल कमल के, को बैरी को मीत ॥
पात पात को सींचिबो, बरी बरी को लौन ।
रहिमन ऐसी बुद्धि को, कहो बरैगो कौन ॥
पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन ।
अब दादुर बक्ता भए, हमको पूछत कौन ॥
पिय बियोग तें दुसह दुख, सूने दुख ते अंत ।
होत अंत ते फिर मिलन, तोरि सिधाए कंत ॥
पुरुष पूजें देवरा, तिय पूजें रघुनाथ ।
कहँ रहीम दोउन बनै, पॅंड़ो बैल को साथ ॥
प्रीतम छबि नैनन बसी, पर छवि कहाँ समाय ।
भरी सराय रहीम लखि, पथिक आप फिर जाय ॥
प्रेम पंथ ऐसो कठिन, सब कोउ निबहत नाहिं ।
रहिमन मैन-तुरंग चढ़ि, चलिबो पाठक माहिं ॥
नैन सलोने अधर मधु, कहि रहीम घटि कौन।
मीठो भावै लोन पर, अरु मीठे पर लौन॥रहीम कहते हैं कि सुंदर नेत्र और मधुर वचन किसे प्रिय नहीं होते? जैसे मीठे में नमक और नमकीन में मीठा स्वाद बढ़ाता है, वैसे ही मधुर वचन और सुंदर नेत्र सबको भाते हैं।
पन्नग बेलि पतिव्रता, रति सम सुनो सुजान।
हिम रहीम बेली दही, सत जोजन दहियान॥रहीम कहते हैं कि जैसे सर्प की बेल पतिव्रता होती है और रति के समान सुजान होती है, वैसे ही हिमालय की बेली (लता) दही के समान शीतल होती है, चाहे वह सौ योजन दूर ही क्यों न हो।
परि रहिबो मरिबो भलो, सहिबो कठिन कलेस।
बामन है बलि को छल्यो, भलो दियो उपदेस॥रहीम कहते हैं कि पराधीन रहकर मरना अच्छा है, बजाय कठिन कष्ट सहने के। जैसे वामन ने बलि को छल से पराजित किया, लेकिन अच्छा उपदेश दिया।
पसरि पत्र झँपहि पितहिं, सकुचि देत ससि सीत।
कहु रहीम कुल कमल के, को बैरी को मीत॥रहीम कहते हैं कि जैसे कमल के पत्ते फैलकर अपने पिता (कमल) को ढँक लेते हैं, और चंद्रमा शीतलता प्रदान करता है, वैसे ही कुल के कमल (संतान) में कौन शत्रु है और कौन मित्र, यह समझना चाहिए।
पात पात को सींचिबो, बरी बरी को लौन।
रहिमन ऐसी बुद्धि को, कहो बरैगो कौन॥रहीम कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति प्रत्येक पत्ते को सींचे और हर बारीक चीज़ में नमक डाले, तो ऐसी बुद्धि का क्या लाभ? अर्थात्, हमें मुख्य बातों पर ध्यान देना चाहिए, न कि छोटी-छोटी बातों में उलझना चाहिए।
पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन।
अब दादुर बक्ता भए, हमको पूछत कौन॥रहीम कहते हैं कि वर्षा ऋतु देखकर कोयल मौन हो जाती है, और मेंढक बोलने लगते हैं। ऐसे में हमारी कौन सुनता है? अर्थात्, समय के अनुसार ही व्यक्ति की कद्र होती है।
पिय बियोग तें दुसह दुख, सूने दुख ते अंत।
होत अंत ते फिर मिलन, तोरि सिधाए कंत॥रहीम कहते हैं कि प्रिय के वियोग से बढ़कर कोई दुःख नहीं है, और सूनेपन का दुःख अंतहीन होता है। लेकिन अंत में फिर मिलन होता है, यदि प्रियतम सिधार जाए तो।
पुरुष पूजें देवरा, तिय पूजें रघुनाथ।
कहँ रहीम दोउन बनै, पॅंड़ो बैल को साथ॥रहीम कहते हैं कि यदि पुरुष देवताओं की पूजा करें और स्त्रियाँ रघुनाथ की, तो दोनों कैसे साथ रहेंगे? जैसे एक बैल को दो पंडे साथ नहीं ले जा सकते।
प्रीतम छबि नैनन बसी, पर छवि कहाँ समाय।
भरी सराय रहीम लखि, पथिक आप फिर जाय॥रहीम कहते हैं कि जब प्रियतम की छवि नयनों में बस गई है, तो अन्य छवि कहाँ समा सकती है? जैसे भरी हुई सराय देखकर पथिक स्वयं ही लौट जाता है।
प्रेम पंथ ऐसो कठिन, सब कोउ निबहत नाहिं।
रहिमन मैन-तुरंग चढ़ि, चलिबो पाठक माहिं॥रहीम कहते हैं कि प्रेम का मार्ग इतना कठिन है कि हर कोई इसे निभा नहीं सकता। जैसे मृग (हिरण) पर सवार होकर पथरीले मार्ग पर चलना कठिन है।
पूरा नाम – अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना, (रहीम दास)
जन्म – 17 दिसम्बर 1556 ई.
मृत्यु – 1627 ई. (उम्र- 70)
उपलब्धि – कवि,
मुख्य रचनाए – रहीम रत्नावली, रहीम विलास, रहिमन विनोद, रहीम ‘कवितावली, रहिमन चंद्रिका, रहिमन शतक,
रहीम का पूरा नाम अब्दुल रहीम खानखाना था। रहीम मध्यकालीन कवि, सेनापति, प्रशासक, आश्रय दाता, दानवीर कूटनीतिज्ञ, बहु भाषा विद, कला प्रेमी सेनापति एवं विद्वान थे। रहीम के पिता का नाम बैरम खान और माता का नाम सुल्ताना बेगम था। ऐसा कहते हैं कि उनके जन्म के समय उनके पिता की आयु लगभग 60 वर्ष हो चुकी थी और रहीम के जन्म के बाद उनका नामकरण अकबर के द्वारा किया गया था । रहीम को वीरता, राजनीति, राज्य-संचालन, दानशीलता तथा काव्य जैसे अदभुत गुण अपने माता-पिता से विरासत में मिले थे।