करम गति टारै नाहिं टरी Karam Gati Tare Nahi Tari Lyrics Kabir Bhajan
मुनि वसिष्ठ से पण्डित ज्ञानी सोधि के लगन धरी।
सीता हरन मरन दसरथ को वन में विपति परी
करम गति टारै नाहिं टरी
कहॅं वह फन्द कहाँ वह पारधि कहँ वह मिरग चरी।
कोटि गाय नित दान करत नृग गिरगिट जोन परी
करम गति टारै नाहिं टरी
पिता वचन तेजे सो पापी सो प्रह्लाद करी।
ताको फंद छुड़ावन को प्रभु नरहरि रूप धरी
पाण्डव जिनके आप सारथी तिन पर विपति परी।
कहत कबीर सुनो भाई साधो होनी होय रही
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