प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरूँ प्रेमी मिलै न कोइ हिंदी मीनिंग Premi Dhundhat Main Phiru Meaning : kabir Ke Dohe Ka Hindi Arth / Bhavarth
प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरूँ, प्रेमी मिलै न कोइ।
प्रेमी कूँ प्रेमी मिलै तब, सब विष अमृत होइ॥
Premi Dhundhat Main Phiru, Premi Mile Na Koi,
Premi Ku Premi Mile Tab, Sab Vish Amrit Hoi,
कबीर के दोहे का हिंदी में अर्थ / भावार्थ Kabir Doha Hindi Meaning
कबीर साहेब इस दोहे में वर्णन करते हैं की वे इश्वर को ढूंढते हुए फिर रहे हैं, इधर उधर घूम रहे हैं, लेकिन उनको कोई भी प्रेमी नहीं मिलता है। वे अपने जैसे अन्य प्रेमी को खोज पाने में असमर्थ हैं। जब प्रेमी को कोई अन्य प्रेमी मिलता है तो समस्त विष अमृत में बदल जाता है। आशय है की विष क्या है ? काम, क्रोध, लोभ, मोह, असत्य, हिंसा आदि को कबीर साहेब ने विष बताया है और अमृत को आनंद का प्रतीक बताया है। जब भक्त अपने जैसे ही किसी भक्त से मिलता है तो समस्त विष अमृत में तब्दील हो जाता है। संत कबीर दास जी के इस दोहे में वे ईश्वर के प्रेम की बात कर रहे हैं। वे कहते हैं कि ईश्वर के प्रेमी को खोजने के लिए हमें पूरे संसार में भटकना पड़ता है। लेकिन जब हम उसे मिल जाते हैं, तो सब कुछ विष अमृत में बदल जाता है। पहले चरण में कबीर दास जी कहते हैं कि "प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरूँ, प्रेमी मिलै न कोइ"। इसका अर्थ है कि मैं ईश्वर के प्रेमी को खोजता घूम रहा हूं, लेकिन मुझे कोई भी मिलता नहीं है।
"प्रेमी कूँ प्रेमी मिलै तब, सब विष अमृत होइ"। इसका अर्थ है कि जब ईश्वर-प्रेमी को दूसरा ईश्वर-प्रेमी मिल जाता है, तो विषय-वासना रूपी विष अमृत में परिणत हो जाता है।
"प्रेमी कूँ प्रेमी मिलै तब, सब विष अमृत होइ"। इसका अर्थ है कि जब ईश्वर-प्रेमी को दूसरा ईश्वर-प्रेमी मिल जाता है, तो विषय-वासना रूपी विष अमृत में परिणत हो जाता है।