'मैं जाणा जोगी दे नाळ' कई गायकों के द्वारा गाया गया है और स्वाभाविक रूप से उनके क्षेत्र और परिवेश के प्रभाव से इसमें कुछ जुड़ जाता है और कुछ हटा दिया जाता है। इस गीत में जिन लफ्जों का इस्तेमाल हुआ है उनका मैंने हिंदी में तर्जनुमा करने की कोशिस की है, अगर आपको पसंद आये तो कमेंट करें। जल्दी ही दूसरे गायकों के द्वारा गाये गए इस गीत का मैं हिंदी अनुवाद करुँगी।
मक्के गयां, गल्ल मुकदी नाहीं भाँवे सौ सौ जुम्मे पढ़ आइये
बुल्लेशाह को पढ़ें तो जहन में कबीर स्वतः ही आ जाते हैं। जिस तरह से कबीर साहेब ने धार्मिक आडंबर और मिथ्या आचरण को लोगों के सामने रखा वैसे ही बाबा बुल्लेशाह कहते हैं की क्या स्थान विशेष पर जाने मात्र से ही कुछ हासिल होने वाला है, नहीं कुछ नहीं। मक्का जाने और वहां पर जुम्मा पढ़ने से बात ख़त्म नहीं होती है। बात खत्म होगी अंदर झाँकने से, मन में विचार करने से ही अच्छे और बुरे का इल्म होगा, नहीं तो भले ही मक्के जाओ या फिर तीर्थ, बात एक जैसी ही है।
गंगा गया गल्ल मुकदी नाहीं
भावें सौ सौ ग਼ोते खाइये
गंगा में स्नान करने से पाप धुलने वाले नहीं हैं जब तक की मन को साफ़ नहीं किया जाय। गंगा में कितने ही गोते लगा लोन, गर दिल में खोट और पाप है तो गंगा में गोते लगाने से कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है।
गया गयां गल्ल मुकदी नाहीं
भावें सौ सौ पंड भराइये
इसी भाँती लोग गया में जाकर श्राद्ध करवाते हैं, पिंड दान करवाते हैं, ये सब फिजिकल है, इसका ईश्वर की प्राप्ति /ईश्वर के प्रति लगाव से कोई नाता नहीं है। जब तक बंदा अपने दिल /मन को नहीं टटोलेगा तब तक उसे कुछ हासिल नहीं होगा।
बुल्ले स਼ाह गल्ल ताहियों मुकदी
जद 'मैं' नूं दिलों मुकाइयों
इस प्रकार से कबीर साहेब कहते हैं की 'जब मैं था हरी नाहीं ' मतलब की अहम् और स्वंय के होने का भास, अस्तित्व का बोध, दम्भ, अहंकार है, तब तक ईश्वर /खुदा को जानना मुश्किल है। खुदा को पहचानने के लिए खुद को ख़त्म करना पड़ता है।
पढ़ पढ़ आलम फाज़ल होयां
कदीं अपने आप नु पढ़इया नयी
किताबों का इल्म हासिल करके आलम और फाजल बन गए हो, कभी अंदर भी पढ़ लो। अंदर क्या है, जो है अंदर ही है। जब अंदर झाँकने का वक़्त किसी को मिल जाता है तो सच मानिये उसे बाहर कुछ ढूंढने की जरुरत ही नहीं रह जाती है।
जा जा वड़नाए मंदर मसीती
कदी मन अपने विच वडयाऍ नयी
मंदिर और मस्जिद में भाग कर घुसता है, कभी अपने अंदर घुसा ही नहीं। जो है अंदर ही है। आत्मा ही ईश्वर है, उसकी आवाज नेक राह पर चलाती है।
एवैएन रोज़ शैतान नाल लड़नाइ इ
कदी नफस अपने नाल लड़याऍ नयी
सारी बुराईया अपने ही अंदर हैं, अहम् और "मैं " ईश्वर प्राप्ति में सबसे बड़ा बाधक है। जब खुद के होने का, स्वंय के अस्तित्व की दीवार गिर जाती है तब कहीं जाकर खुदा की भनक लग पाती है। सबसे बड़ा शैतान अंदर बैठा है जिसे मारने की जरूरत है।
बुल्ले शाह अस्मानी उडदीयाँ फड़दा हे
जेडा घर बैठा ओन्नु फडयाऍ नयी
बड़ी खूबसूरत पंक्ति है की, बुल्ले शाह आसमान में क्या ढूंढ रहे हो, खुदा तो घर में हैं, खुद में हैं , पड़ौसी में है, भिखारी में है , राजा में है सबमे है। उसे जब स्वंय में ढूँढोगे तभी कहीं जाकर बात ख़त्म होगी।
सर ते टोपी ते नीयत खोटी
लेणा की टोपी सर धर के
ऐसे कबीर साहेब कहते हैं की तिलक, भगवा और माला आदि से कोई भला होने वाला नहीं है, वैसे ही बुल्ले शाह जी कहते हैं की नियत खोटी हो और सर पर मजहबी टोपी हो तो कोई फायदा नहीं होगा। वस्तुतः, मजहब को भी समझने की जरूरत है। मजहब क्या है ? मजहब ही खुदा है, भगवान् है यदि उसे समझा जाए और आचरण में उतार लिया जाय।
तस्बीह फेरी पर दिल न फिरेया
लेना की तस्बीह हथ फड़ के
हाथों में माला फेरने से कुछ भी हासिल नहीं होगा तो फिर मात्र हाथ में तस्बीह लेने से क्या फायदा।
चिल्ले कीता पर रब न मिलया,
लेना की चिल्लेयाँ विच वड़ के
सभी तरह की धार्मिक रीती रिवाजों का पालन करने के बाद भी यदि ईश्वर नहीं मिलता है तो ऐसे धार्मिक रीती रिवाज और अनुष्ठान की काम के।
बुल्लेया जाग बिना दूध नई जंमदां
ते भांवे लाल होवे, कढ कढ के
जैसे दूध को गर्म करके, और गर्म करने मात्र से वह दही में तब्दील नहीं होता है, वैसे ही खुद को बेवजह तपाने, तपस्या करने और शरीर को दुःख पहुंचाने से कुछ लाभ नहीं मिलता है। जैसे दूध जामुन लगाने से ही जंमता है वैसे ही खुद को पहचानने और नेक राह पर चलने से ही ईश्वर की प्राप्ति सम्भव है।
नी मैं जाणा जोगी दे नाळ,
नी मैं जाणा जोगी दे नाळ
कन्नी मुंदरा पा के
मत्थे तिलक लगा के
नी मैं जाणा जोगी दे नाळ,
नी मैं जाणा जोगी दे नाळ
मुझे उस जोगी के ही साथ जाना है, जोगी को मनाने के लिए मैं कानों में कुण्डल, माथे पर तिलक लगाकर कंजरी बन के उसे (ईश्वर ) को मनावुंगी। मैं उसी जोगी के साथ जाउंगी।
ए जोगी मेरे मन विच बसिया
ऐ जोगी मेरा ज़ुरा ख़स्सीयाँ
ये वही जोगी है जिसने मेरे मन में आकर्षण पैदा किया है और मुझे मेरे होने का आभास करवाया है , मैं इसी जोगी के साथ जाउंगी।
सच आखां मैं कसमए कुरान
जोगी मेरा दींन इ ईमान
जोगी मेरे नाळ मैं जोगी दे नाळ नाळ
मैं सच कहती हूँ, मुझे कसम कुरान की है, ये जोगी मेरा दीन और इमां है। मैं इस जोगी के साथ ही जाउंगी।