आकासे मुखि औंधा कुआं पाताले पनिहारी मीनिंग
आकासे मुखि औंधा कुआं, पाताले पनिहारी।
ताका पाणी को हंसा पीवै, बिरला आदि विचारि।।
Aakaase Mukhi Aundha Kuaan, Paataale Panihaaree.
Taaka Paanee Ko Hansa Peevai, Birala Aadi Vichaari.
शब्दार्थ: आकासे - शून्य मंडल में, औधा - उलटा, हंसा = जीवात्मा।
दोहे की हिंदी मीनिंग: इस उलटबासी में वाणी है की आकाश में एक कुआ है जिसका मुंह निचे की और है /उल्टा है और इसमे पानी भरने वाला पाताल में है /इसका पानी पाताल से भरा जाता है। इसका पानी जीव (हंसा) पीता है और इस पर कोई बिरला (बहुत कम ही) विचार कर पाते हैं। प्राण वायु जब ऊपर की और होती है तो जीव नाड़ी में माध्यम से उस ब्रह्म नाद को प्राप्त करता है।
कबीर माया बेसवा , दोनों को इक जात ।
आवत को आदर करें, जात न बूझै बात।।
माया के विषय में कबीर साहेब की वाणी है की माया स्वार्थी है और अपना स्वार्थ सिद्ध हो जाने के उपरान्त इसे जीव की गति और दुर्गति के विषय में कोई लेना देना नहीं है। जैसे कोई वैश्या होती है उसका पूरा ध्यान ग्राहक की जेब पर होता है और जेब से पैसों को प्राप्त कर लेने के उपरान्त वह उससे कोई सबंध नहीं रखती है, ऐसे ही माया जीव को अपने जाल में फंसाने के लिए कई यत्न करती है और एक बार जीव जब जाल में फँस जाता है तो उसकी खैर खबर लेने वाला कोई नहीं नहीं होता है। ऐसे ही वैस्या का काम निकल जाने पर वह जाते समय कोई कुशल क्षेम नहीं पूछती है।
कामी अमी न भावई, विष को लेवे शोध।
कुबुद्धि ना भाजे जीव की, भावे ज्यो परमोध।।
कामी जीव को /विषय वासना में पड़े जीव को अमृत (राम का नाम ) अच्छा नहीं लगता है और कुबुद्धि से ग्रस्त होने के कारण वह राम नाम को छोड़कर नष्ट होने के अन्य माध्यम ढूंढ लेता है। यह माया का ही प्रभाव होता है जिसमे जीव अपनी मुक्ति मार्ग को छोड़कर स्वंय को ही नष्ट करने में व्यस्त हो जाता है।