अहिरन (एरण) की चोरी करै करे सुई का दान हिंदी मीनिंग Eran Ki Chori Kari Kiyo Kabi Doha Hindi Meaning

अहिरन (एरण) की चोरी करै करे सुई का दान हिंदी मीनिंग Eran Ki Chori Kari Kiyo Kabi Doha Hindi Meaning

अहिरन (एरण) की चोरी करै, करे सुई का दान।
उंचा चढी कर देखता, केतिक दूर विमान।।

Ahiran Kee Choree Karai, Kare Suee Ka Daan.
Uncha Chadhee Kar Dekhata, Ketik Door Vimaan.
 
अहिरन (एरण) की चोरी करै करे सुई का दान हिंदी मीनिंग Eran Ki Chori Kari Kiyo Kabi Doha Hindi Meaning
 
एरण एक प्रकार का बड़ा लोहे का टुकड़ा होता है जिससे लुहार लोहे को पीटने के लिए आधार बनाता है। एरण की चोरी करके सुई का दान करते हो, बड़ी वस्तु की चोरी और दिखावे के लिए वहुत ही छोटी वस्तु का दान करते हो, यह कैसा दान या परोपकार का कार्य है। ऐसा करने के उपरान्त तुम घर पर चढ़ कर देखते हो की मुझे लेने स्वर्ग से आने वाला विमान कितनी दूर है, आया क्यों नहीं है! भाव है की यह संसार दिखावे पर चलता है। पहले चोरी करता है और फिर दान करने का पाखण्ड रचता है। यह दान नहीं है, ईश्वर तो समस्त ब्रह्माण्ड का स्वामी है उससे क्या छुपा हुआ है। इसलिए यदि भक्ति मार्ग पर आगे बढ़ना है तो पाखण्ड और बाह्याचार तो छोड़ना ही पड़ेगा।

एरण की चोरी करी, कियो सुई को दान रे,
चढ़ चौबारे झाँक रहियो तू, अभी ना आयो विमान रे,


Ehran Ki Chori Kari Meaning English : The Eron is a type of large iron piece that makes the iron the base for beating the iron. You steal the Eron and donate needles(sui), steal the big thing and donate the very small thing for show of your charity, what kind of charity is it ? After doing this, you go to home roop and see how far the plane coming from heaven to take me, why has it not come till now! This world goes on display and pomp and show. 

He first steals and then creates a hypocrisy to donate. This is not charity, God is the master of all the universe, what is hidden from him, nothing. Therefore, if you have to proceed on the path of devotion-Bhakti Marga, you have to leave hypocrisy and externalism.

करता था तो क्यों रहा, अब करि क्यों पछताय।
बोया पेड़ बबूल का, आम कहां ते खाय।।
Karata Tha To Kyon Raha, Ab Kari Kyon Pachhataay.
Boya Ped Babool Ka, Aam Kahaan Te Khaay. 
 
जब बुरे कर्म तुमने किये तो करते ही रहे, अब पछतावा की बात का ? तुमने बुरे करम करके बबूल के पेड़ बोये हैं तो अब आम कहाँ से खाओगे। भाव है की व्यक्ति को बुरे कर्मो से दूर रहना चाहिए अन्यथा

उसके बुरे फल उसे अवश्य ही मिलेंगे।
छिनहिं चढै छिन उतरै, सों तो प्रेम न होय।
अघट प्रेमपिंजर बसै, प्रेम कहावै सोय।।
Chhinahin Chadhai Chhin Utarai, Son To Prem Na Hoy.
Aghat Premapinjar Basai, Prem Kahaavai Soy.


प्रेम के विषय में कथन है की जो क्षण भर में चढ़ जाए, प्रेम हो जाए, और क्षण भर में उतर जाए, प्रेम ना रहे, यह कैसा प्रेम है ? यह प्रेम नहीं हो सकता है, इसे प्रेम नहीं कहा जा सकता है क्योंकि प्रेम तो यदि एक बार घट में राम जाए तो उसका असर कभी कम नहीं होता है, उसे ही प्रेम कहा जा सक्ता है। प्रेम हर परिस्थिति में एक समान होना चाहिए क्योंकि यह अघट होता है, कभी कम नहीं होता है। भाव है की प्रेम वही है जिसका रंग कभी कम नहीं होता है। प्रेम से यहाँ अभिप्राय भक्ति से है। यदि एक बार भक्ति का रंग चढ़ जाए तो वह कभी उतरता नहीं है, यदि वह रंग उतर जाए तो वह प्रेम नहीं है।

कबीर सुमिरण सार है, और सकल जंजाल।
आदि अंत मधि सोधिया, दूजा देखा काल।।
Kabeer Sumiran Saar Hai, Aur Sakal Janjaal.
Aadi Ant Madhi Sodhiya, Dooja Dekha Kaal.
 
ईश्वर सुमिरण के अतिरिक्त सब कुछ व्यर्थ है, जंजाल है आदि और अंत के मध्य में भी सोधिया है, खोजा है, इसके अतिरिक्त सभी काल है व्यर्थ हैं। हरी सुमिरण के अतिरिक्त सभी माध्यम काल की तरफ ही लेकर जाते हैं इसलिए हरी सुमिरण ही जीवन का आधार है। तमाम तरह के धार्मिक अनुष्ठान, तीर्थ, पूजा पाठ सभी व्यर्थ हैं यदि हरी का हृदय से सुमिरण नहीं किया जाए।

कुल करनी के कारनै, हंसा गया बिगोय।
तब कुल काको लाजि है, चारिपांव का होय।।
Kul Karanee Ke Kaaranai, Hansa Gaya Bigoy.
Tab Kul Kaako Laaji Hai, Chaaripaanv Ka Hoy. 
 
कुल के रिवाज, कुल की करनी के कारण हंस पतित हो गया है, हंस तो पवित्र है लेकिन उसकी करनी के कारण उसने अपना स्वरुप बदल दिया है। जरा विचार करो की उस समय किसका कुल लाज मरेगा/ शर्मिंदा होगा जब चार पाँव (पशु योनी में जनम होगा) का बन जाएगा। भाव है की हरी सुमिरण के अतिरिक्त व्यक्ति की मुक्ति संभव नहीं है। हरी को जीवन का आधार मान कर जीवन का समय व्यतीत करना चाहिए।

सार शब्द जानै बिना, जिन परलै में जाय।
काया माया थिर नहीं, शब्द लेहु अरथाय।।
Saar Shabd Jaanai Bina, Jin Paralai Mein Jaay. 
 
सार शबद को जाने बिना तो परलय में ही जाने जैसा है और व्यक्ति अधिक दुखी होता है। काया और माया स्थिर नहीं है, शबद का थाह ले लो, काया और माया का थाह लेकर उचित मार्ग का अनुसरण करो, उचित मार्ग यही है की सच्चे हृदय से हरी नाम का सुमिरण करो।

गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान।
गुरु बिन सब निष्फल गया, पूछौ वेद पुरान।।
Guru Bin Maala Pherate, Guru Bin Dete Daan.
Guru Bin Sab Nishphal Gaya, Poochhau Ved Puraan. 
 
जो व्यक्ति गुरु की महिमा का भान नहीं करते हैं और गुरु के बगैर ही दान देते हैं तो सब कुछ निष्फल हो जाता है। भले ही कोई वेड शास्त्र देख लो, कहीं भी इसकी प्रमाणिकता को परख लो, गुरु के बगैर सब कुछ निष्फल ही है।

साधु दर्शन महाफल, कोटि यज्ञ फल लेह।
इक मन्दिर को का पड़ी, नगर शुद्ध करि लेह।।
Saadhu Darshan Mahaaphal, Koti Yagy Phal Leh.
Ik Mandir Ko Ka Padee, Nagar Shuddh Kari Leh. 
 
साधू संतों का दर्शन ही महा फलदाई होता है, वह करोड़ों यज्ञों से प्राप्त यश के तुल्य होता है, एक मंदिर ही नहीं बल्कि इससे तो पूरा नगर ही शुद्ध हो जाता है। इस दोहे में संतजन और साधुजन की महिमा का वर्णन किया गया है की कैसे उनके सानिध्य से करोड़ों सुयश प्राप्त होता है। साधू के दर्शन मात्र से ही नगर शुद्ध हो जाता है।

बैरागी बिरकत भला, गिरही चित्त उदार।
दोऊ चुकि खाली पड़े , ताको वार न पार।।
Bairaagee Birakat Bhala, Girahee Chitt Udaar. 
 
साधू विरक्ति भाव का ही होना चाहिए और जो गृहस्थ हैं उन्हें उदार चित्त का होना चाहिए। यदि दोनों अपने इन दो गुणों से चूक जाते हैं तो इनका मुक्त होना संभव नहीं है। यदि वैरागी के मन में वैराग्य नहीं है और गृहस्थ के मन में उदारता नहीं है तो दोनों का पतन होना निश्चित है जिसकी कोई सीमा, हद नहीं है।

कबीर हरि के नाव सूं, प्रीति रहै इकतार।
तो मुख तैं मोती झड़ैं, हीरे अन्त न फार ॥
Kabeer Hari Ke Naav Soon, Preeti Rahai Ikataar.
To Mukh Tain Motee Jhadain, Heere Ant Na Phaar. 
 
यदि कोई भी अपने मुझ से हरी नाम की रटना निरंतर करता रहे तो समझो की उसके मुख से हीरे/मोती झड़ने लग रहे हों। भाव है की हरी नाम का सुमिरण ही जीवन का आधार है। हमें निरंतर हरी के नाम
का सुमिरण करते रहना चाहिए।

माला तिलक तो भेष है, राम भक्ति कुछ और।
कहैं कबीर जिन पहिरिया, पाँचो राखै ठौर।।
Maala Tilak To Bhesh Hai, Raam Bhakti Kuchh Aur.
Kahain Kabeer Jin Pahiriya, Paancho Raakhai Thaur. 
 
माला पहनना, तिलक लगाना और तरह तरह के भेष धारण कर लेना भक्ति नहीं है भक्ति कुछ और ही है। जिसने भी वास्तिवक माला तिलक या भेष को पहना है/धारण है, पूर्ण निष्ठा के साथ उसकी पाँचों इन्द्रियाँ उसी के नियंत्रण में हो जाती हैं। यहाँ पर भक्ति के वास्तविक रूप को रेखांकित क्या गया है।

यह तो घर है प्रेम का ऊँचा अधिक इकंत।
शीष काटी पग तर धरै, तब पैठे कोई सन्त।।
Yah To Ghar Hai Prem Ka Ooncha Adhik Ikant.
Sheesh Kaatee Pag Tar Dharai, Tab Paithe Koee Sant. 
 
भक्ति मार्ग में चलना कोई आसान कार्य नहीं है, यह घर / प्रेम -भक्ति का घर अधिक ऊँचा और एकांत में बना हुआ है, यहाँ पर हर कोई प्रवेश नहीं कर सकता है। भक्ति और प्रेम के इस घर में प्रवेश करने के लिए अपने मस्तक (अहम्) को काट कर चरणों में रख कर आगे बढ़ा जा सकता है।

सबै रसायन हम पिया, प्रेम समान न कोय।
रंचन तन में संचरै, सब तन कंचन होय।।
Sabai Rasaayan Ham Piya, Prem Samaan Na Koy.
Ranchan Tan Mein Sancharai, Sab Tan Kanchan Hoy. 
 
समान कोई रसायन दुसरा कोई नहीं है। यह प्रेम का रस थोडा सा भी शरीर में प्रवेश कर जाए तो सम्पूर्ण तन ही कंचन होता है। भाव है की प्रेम/भक्ति ही सबसे बड़ी है जिसके सामने कोई भी प्रदार्थ/रसायन मायने नहीं रखते हैं।

दुनिया के धोखें मुआ, चला कुटुम्ब की कानि।
तब कुल की क्या लाज है, जब ले धरा मसानि।।
Duniya Ke Dhokhen Mua, Chala Kutumb Kee Kaani.
Tab Kul Kee Kya Laaj Hai, Jab Le Dhara Masaani. 
 
सम्पूर्ण दुनियाँ ही धोखे का अनुसरण करती है और यही इसके मरण का कारण भी है। व्यक्ति अपने ही कुटुंब का अनुसरण करता है क्या होगा जब तुम्हारी मृत्यु हो जायेगी और तुम्हें उठा कर शमशान में ले जा कर रख दिया जाएगा। भाव है की हमें संसार और अपने कुटुंब कबीले का अनुसरण नहीं करना चाहिए और पवित्र हृदय से हरी के नाम का सुमिरण करना चाहिए। हरी का नाम ही मुक्ति का मार्ग है इसके लिए तुच्छ स्वार्थों का त्याग कर देना चाहिए।

जिभ्या जिन बस में करी, तिन बस कियो जहान।
नहिं तो औगुन उपजे, कहि सब संत सुजान।।
Jibhya Jin Bas Mein Karee, Tin Bas Kiyo Jahaan.
Nahin To Augun Upaje, Kahi Sab Sant Sujaan. 
 
जिसने भी अपनी जिव्हा /जुबान को अपने बस में कर लिया है, उस पर नियंत्रण स्थापित कर लिया है वह समस्त संसार को अपने वश में कर सकने के योग्य बन जाता है। ऐसा सभी संत और सुजान/ज्ञानी कहते हैं की जिसने भी अपनी जिव्हा को बस में नहीं किया है उसमे कई प्रकार के अवगुण उत्पन्न हो जाते हैं। भाव है की हमें अपनी वाणी
पर नियत्रंन करना सीखना चाहिए।

काम काम सब कोय कहै, काम न चीन्है कोय।
जेती मन की कल्पना, काम कहावै सोय।।
Kaam Kaam Sab Koy Kahai, Kaam Na Cheenhai Koy.
Jetee Man Kee Kalpana, Kaam Kahaavai Soy. 
 
काम के विषय में सभी कोई कहता है लेकिन काम है क्या, काम को किसी ने चिन्हित नहीं किया है। मन में जितनी प्रकार की भी कल्पनाएँ हैं वे सभी काम ही हैं। अतः काम (विषय वासना) को समझने की जरूरत है।

कबीर औंधी खोपड़ी , कबहूं धापै नाहिं।
तीन लोक की संपदा कब आवै घर मांहि।।
Kabeer Aundhee Khopadee , Kabahoon Dhaapai Naahin.
Teen Lok Kee Sampada Kab Aavai Ghar Maanhi. 
 
मनुष्य की खोपड़ी उलटी होती है/वह मुर्ख होता है और धन से कभी भी तृप्त नहीं होता है। वह इसी उधेड़ बन में लगा रहता है की तीन लोक की संपदा/वैभव धन कब उसके घर में आएगा। भाव है की व्यक्ति को लालची नहीं होना चाहिए और जो भी ईश्वर ने दिया है/दे रहा है उसमे संतुष्ट रहना ही उसका धर्म है।

कबीर टुक टुक देखता, पल पल गयी बिहाये।
जीव जनजालय परि रहा, दिया दमामा आये।
Kabeer Tuk Tuk Dekhata, Pal Pal Gayee Bihaaye
Jeev Janajaalay Pari Raha, Diya Damaama Aaye. 
 
साहेब देखते हैं की पल पल में समय समाप्त हो रहा ही, जीव जंजाल में ही फंसा रह गया है और काल ने दमामा /ढोल पीट दिया है। काल अपने साथ ले जाने के लिए जीव को पकड़ने वाला है। भाव है की बातों ही बातों में जीवन व्यर्थ में बर्बाद हो जाता है इसलिए व्यक्ति को अपने जीवन का सदुपयोग हरी के सुमिरण में करना चाहिए।

कबीर पगरा दूर है, आये पहुचै सांझ।
जनजन को मन राखती, वेश्या रहि गयी बांझ।
Kabeer Pagara Door Hai, Aaye Pahuchai Saanjh
Janajan Ko Man Raakhatee, Veshya Rahi Gayee Baanjh. 
 
मुक्ति का द्वार बहुत ही दूर है और सांझ होने वाली है / समय बहुत ही कम बचा है । इस संसार में हमारी स्थिति वेश्या की तरह से हो गई है जो जन जन का मन रखने के लिए स्वंय का ही नुकसान कर बैठती है और बाँझ रह जाती है। भाव है की हमें हरी नाम का आधार लेकर, भक्ति मार्ग पर बिना किसी भटकाव के आगे बढ़ना चाहिए नहीं तो समय को जाते देर नहीं लगती है।

कबीर हरि सो हेत कर, कोरै चित ना लाये
बंधियो बारि खटीक के, ता पशु केतिक आये।
Kabeer Hari So Het Kar, Korai Chit Na Laaye
Bandhiyo Baari Khateek Ke, Ta Pashu Ketik Aaye. 
 
हरी का सुमिरण करो, हरी से हेत/स्नेह करो । अपने हृदय में कूड़ा कचरा मत भरो। सोचो की कोई पशु खटीक के घर के बाहर बंधा हो तो उसकी आयु कितनी शीश बची हुई है, ऐसे ही हमें कभी काल अपना शिकार बना सकता है।
Kabir Ke Pad/कबीर साहेब के पद
प्रेम नगर का अंत न पाया
प्रेम नगर का अंत न पाया, ज्‍यों आया त्‍यों जावैगा॥
सुन मेरे साजन सुन मेरे मीता, या जीवन में क्‍या क्‍या बीता॥
सिर पाहन का बोझा लीता, आगे कौन छुड़ावैगा॥
परली पार मेरा मीता खड़िया, उस मिलने का ध्‍यान न धरिया॥
टूटी नाव, उपर जो बैठा, गाफिल गोता खावैगा॥
दास कबीर कहैं समझाई, अंतकाल तेरा कौन सहाई॥
चला अकेला संग न कोई, किया अपना पावैगा॥
रहना नहीं देस बिराना है॥
यह संसार कागद की पुड़िया, बूँद पड़े घुल जाना है॥
यह संसार काँटे की बाड़ी, उलझ-पुलझ मरि जाना है॥
यह संसार झाड़ और झाँखर, आग लगे बरि जाना है॥
कहत कबीर सुनो भाई साधो, सतगुरु नाम ठिकाना है॥

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1 टिप्पणी

  1. Nice.. Well explained