कोटि क्रम पेलै पलक हिंदी मीनिंग कबीर के दोहे

कोटि क्रम पेलै पलक हिंदी मीनिंग Koti Kram Pele Palak Meaning Kabir Dohe Hindi Me, Kabir Dohe Hindi Arth Sahti.

कोटि क्रम पेलै पलक मैं, जे रंचक आवै नाउँ।
अनेक जुग जे पुन्नि करै, नहीं राम बिन ठाउँ॥

Koti Kram Pele Palak Me, Je Ranchak Ave Nau,
Anek Jug Je Punni Kare, Nahi Raam Bin Thaun.
 
कोटि क्रम पेलै पलक हिंदी मीनिंग Koti Kram Pele Palak Meaning Kabir Dohe

कबीर दोहा हिंदी शब्दार्थ Kabir Doha Hindi Word Meaning

कोटि-करोड़ों
क्रम-करम/कर्म.
पेलै-समाप्त करना/नष्ट करना.
पलक मैं-क्षण भर में।
जे-जो।
रंचक-रंच मात्र/थोड़ा सा।
नाउँ- नाम।
अनेक जुग- अनेकों युगों तक।
जे पुन्नि करै- जो पुण्य करे।
नहीं राम बिन-ईश्वर के नाम के बिना।
ठाउँ-ठिकाना।
कबीर दोहा हिंदी मीनिंग : यदि क्षण भर भी ईश्वर के नाम का सुमिरण किया जाय तो करोड़ों जन्मों के पाप कर्म दूर हो जाते हैं। ईश्वर के नाम का सुमिरण छोड़ कर यदि अनेकों जन्मों तक पुण्य भी किए जाएं तो भी हरि नाम के अभाव में उसका कोई ठिकाना नहीं होता है।
ईश्वर के नाम स्मरण की महिमा है की अनेकों युगों के पाप कर्म भी पल भर में नष्ट हो जाते हैं। यदि अनेकों जन्मों तक शुभ कार्य कर भी लिए जाएँ और जीवात्मा ईश्वर से विमुख रहती है तो उसके पुण्य कर्म कुछ भी फलदाई नहीं रहते हैं और वह आवागमन के फेर से मुक्त नहीं हो पाता है। ईश्वर नाम सुमिरन के अभाव में जीवात्मा पुनः नए जन्म की भागी बनती है। आवागमन के इस चक्र से मुक्ति का एक ही माध्यम है ईश्वर के नाम का सुमिरन। महत्वपूर्ण है की भक्ति और ज्ञान से कर्म भी क्षय होते हैं। ईश्वर के नाम सुमिरण से बुरे कर्मों के परिणाम को भी दूर किया जा सकता है। यही महिमा है ईश्वर के नाम सुमिरण की। "कोटि क्रम पेलै पलक मैं, जे रंचक आवै नाउँ" पंक्ति में चपलातिश्योक्ति अलंकार की व्यंजना हुई है। 

प्रस्तुत साखी में कबीर साहेब ने नाम सुमिरण के महत्त्व को उजागर किया है। किसी भी कर्मकांड, तीर्थ और धार्मिक अनुष्ठान का कोई महत्त्व नहीं है। यदि सच्चे हृदय से ईश्वर के नाम का सुमिरन किया जाए तो जीवात्मा कोटि पाप कर्मों के फल से मुक्त हो सकती है। अच्छे कर्मों का भी फल तभी प्राप्त होता है जब जीवात्मा ईश्वर की शरण में जाए। ईश्वर से विमुख जीवात्मा का कोई ठौर ठिकाना नहीं रहता है। 

Kabir Doha Meaning in English : If the name of God is remembered even for a moment, then the sinful deeds of millions of births go away. Even if you leave the name of God and do virtue for many births, even in the absence of Hari name, he has no place.
अतिश्योक्ति अलंकार : जहाँ पर काव्य में किसी विषय को अत्यंत ही बढ़ा चढ़ा कर वर्णन किया जाए, वहाँ पर अतिश्योक्ति अलंकार होता है। भाव है की लोकमर्यादा के विरूद्ध व्यक्ति ,वस्तु अथवा रूप सौंदर्य आदि के गुणों का वर्णन प्रचलित लोक सीमा से बढ़ा चढ़ा कर चमत्कारिक रूप से प्रस्तुत करने पर अतिश्योक्ति अलंकार की व्यंजना होती है।
अतिश्योक्ति अलंकार के अन्य उदाहरण -

देखि सुदामा की दीन दशा , करुणा करके करुणानिधि रोए ।
पानी परात को हाथ छुयो नहीं ,। नैनन के जल सों पग धोए ।


देख लो साकेत नगरी है यही।
स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही।

बाण नहीं पहुंचे शरीर तक,
शत्रु गिरे पहले ही भूकर।

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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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