कबीर माया जिनि मिलैं सो बरियाँ दे बाँह मीनिंग
कबीर माया जिनि मिलैं, सो बरियाँ दे बाँह।
नारद से मुनियर गिले, किसौ भरोसे ताह.
Kabir Maya Jini Mile, So Bariya De Banh,
Narad Se Muniyar Gile, Kiso Bharose Tyah.
कबीर माया जिनि मिलैं : यदि माया मिले.
सो बरियाँ दे बाँह : सो बार बाँह देकर, हाथों से इशारा करके बुलाना.
नारद से मुनियर गिले : इसने (माया ने ) नारद जैसे मुनिजनों को भी निगल लिया है.
किसौ भरोसे त्याँह/ताह : इस पर किस भाँती से भरोसा किया जा सकता है.
माया : सांसारिक विषय विकार, लालसा / कामना.
जिनि जो, यदि.
मिलैं : मिलने के लिए.
सो बरियाँ : सो बार,
दे बाँह : हाथों से इशारा करके बुलाना/बाहें पसार कर गले मिलना.
नारद से : नारद के समान.
मुनियर : मुनिजन.
गिले : निगल लिए हैं, समाप्त कर दिए हैं.
किसौ : किस, कैसा.
भरोसे : विशवास.
ताहि : उसका (माया का)
कबीर साहेब की वाणी है की यदि माया सो बार गले से मिलकर, गले लगाकर भी प्यार प्रदर्शित करे तो भी माया से दोस्ती स्थापित नहीं करनी चाहिए. माया ने तो ब्रह्मा जी के पुत्र नारद को भी समाप्त कर दिया था, निगल लिया था. ऐसे में इस पर कैसे भरोसा किया जा सकता है. भाव है की यदि यह नारद जैसे मुनिजन को भी निगल जाती है तो आम व्यक्ति इसके आगे कहाँ ठहरता है. अतः स्पष्ट है की माया से विमुख रहकर सद्मार्ग का पालन करते हुए हरी भक्ति ही इस जीवन का आधार है.
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।
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