शनि देव न्याय प्रिय देवता है। शनि देव को कठोर प्रवृत्ति का देव माना गया है । शनि देव व्यक्ति के कर्म के अनुसार फल देते हैं इसलिए इन्हें कर्मफल दाता भी कहा गया है। यदि व्यक्ति के कर्म अच्छे हैं तो फल भी अच्छा मिलेगा वहीं अगर व्यक्ति के कर्म बुरे हैं तो उसके परिणाम भी बुरे ही होंगे। शनिदेव हर 30 साल में सभी राशियों में भ्रमण करते हुए वापस उसी राशि में पहुंच जाते हैं । हर 30 वर्ष पश्चात हमें शनि की दशा से गुजरना पड़ता है । ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शनिदेव का प्रभाव सभी राशियों पर पड़ता है। शनि देव के अशुभ प्रभाव से व्यक्ति को कई तरह की समस्याओं से जूझना पड़ता है। लेकिन व्यक्ति अपने आचरण से शनिदेव की प्रतिकूल परिस्थितियों को भी अपने अनुकूल बना लेता है। जब शनिदेव की कृपा होती है और शनिदेव प्रसन्न होते हैं तो शनिदेव व्यक्ति को रंक से राजा भी बना सकते हैं।
वहीं अगर व्यक्ति को शनिदेव की साढ़ेसाती या ढैय्या लगी हो और व्यक्ति बुरे कर्म करें तो शनिदेव उन्हें राजा से रंक भी बना सकते हैं। इसलिए विशेष तौर पर शनि की दशा चाहे साढ़ेसाती हो या ढैय्या व्यक्ति को अपने अच्छे कर्म करने चाहिए। किसी का बुरा नहीं करना चाहिए । व्यक्ति अपने अच्छे कर्म से सभी प्रतिकूल परिस्थितियों को भी अपने अनुकूल बनाने में सक्षम है। शनि देव कर्म फल दाता है । व्यक्ति जैसे कर्म करेगा वैसा ही उसे फल मिलेगा ।
शनिदेव की दशा में शनि चालीसा का पाठ करने से सभी समस्याओं का निवारण होता है और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
शनिदेव की दशा में शनि चालीसा का पाठ करने से सभी समस्याओं का निवारण होता है और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
Shani Chalisa / शनि चालीसा लिरिक्स हिंदी
(श्री शनि चालीसा हिंदी लिरिक्स हिंदी )
दोहा
जय गणेश गिरिजा सुवन,
मंगल करण कृपाल,
दीनन के दुख दूर करि,
कीजै नाथ निहाल।।
जय जय श्री शनिदेव प्रभु,
सुनहु विनय महाराज,
करहु कृपा हे रवि तनय,
राखहु जन की लाज।।
जयति-जयति शनिदेव दयाला,
करत सदा भक्तन प्रतिपाला।।
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै,
माथे रतन मुकुट छबि छाजै।।
परम विशाल मनोहर भाला,
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला।।
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके,
हिय माल मुक्तन मणि दमके।।1।।
कर में गदा त्रिशूल कुठारा,
पल बिच करैं अरिहिं संहारा।।
पिंगल, कृष्णा, छाया नन्दन,
यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन।।
सौरी, मन्द, शनी, दश नामा,
भानु पुत्र पूजहिं सब कामा।।
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं,
रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं।।2।।
पर्वतहू तृण होई निहारत,
तृणहू को पर्वत करि डारत।।
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो,
कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो।।
बनहूँ में मृग कपट दिखाई,
मातु जानकी गई चुराई।।
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा,
मचिगा दल में हाहाकारा।।3।।
दोहा
जय गणेश गिरिजा सुवन,
मंगल करण कृपाल,
दीनन के दुख दूर करि,
कीजै नाथ निहाल।।
जय जय श्री शनिदेव प्रभु,
सुनहु विनय महाराज,
करहु कृपा हे रवि तनय,
राखहु जन की लाज।।
जयति-जयति शनिदेव दयाला,
करत सदा भक्तन प्रतिपाला।।
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै,
माथे रतन मुकुट छबि छाजै।।
परम विशाल मनोहर भाला,
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला।।
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके,
हिय माल मुक्तन मणि दमके।।1।।
कर में गदा त्रिशूल कुठारा,
पल बिच करैं अरिहिं संहारा।।
पिंगल, कृष्णा, छाया नन्दन,
यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन।।
सौरी, मन्द, शनी, दश नामा,
भानु पुत्र पूजहिं सब कामा।।
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं,
रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं।।2।।
पर्वतहू तृण होई निहारत,
तृणहू को पर्वत करि डारत।।
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो,
कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो।।
बनहूँ में मृग कपट दिखाई,
मातु जानकी गई चुराई।।
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा,
मचिगा दल में हाहाकारा।।3।।
रावण की गतिमति बौराई,
रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई।।
दियो कीट करि कंचन लंका,
बजि बजरंग बीर की डंका।।
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा,
चित्र मयूर निगलि गै हारा।।
हार नौलखा लाग्यो चोरी,
हाथ पैर डरवाय तोरी।।4।।
भारी दशा निकृष्ट दिखायो,
तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो।।
विनय राग दीपक महं कीन्हयों,
तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों।।
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी,
आपहुं भरे डोम घर पानी।।
तैसे नल पर दशा सिरानी,
भूंजीमीन कूद गई पानी।।5।।
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई,
पारवती को सती कराई।।
तनिक विलोकत ही करि रीसा,
नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा।।
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी,
बची द्रौपदी होति उघारी।।
कौरव के भी गति मति मारयो,
युद्ध महाभारत करि डारयो।।6।।
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला,
लेकर कूदि परयो पाताला।।
शेष देवलखि विनती लाई,
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई।।
वाहन प्रभु के सात सजाना,
जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना।।
जम्बुक सिंह आदि नख धारी,
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी।।7।।
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं,
हय ते सुख सम्पति उपजावैं।।
गर्दभ हानि करै बहु काजा,
सिंह सिद्धकर राज समाजा।।
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै,
मृग दे कष्ट प्राण संहारै।।
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी,
चोरी आदि होय डर भारी।।8।।
तैसहि चारि चरण यह नामा,
स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा।।
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं,
धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं।।
समता ताम्र रजत शुभकारी,
स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी।।
जो यह शनि चरित्र नित गावै,
कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै।।9।।
अद्भुत नाथ दिखावै लीला,
करैं शत्रु के नशि बलि ढीला।।
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई,
विधिवत शनि ग्रह शांति कराई।।
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत,
दीप दान दै बहु सुख पावत।।
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा,
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा।।10।।
दोहा
पाठ शनिश्चर देव को,
की हों भक्त तैयार,
करत पाठ चालीस दिन,
हो भवसागर पार।।
रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई।।
दियो कीट करि कंचन लंका,
बजि बजरंग बीर की डंका।।
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा,
चित्र मयूर निगलि गै हारा।।
हार नौलखा लाग्यो चोरी,
हाथ पैर डरवाय तोरी।।4।।
भारी दशा निकृष्ट दिखायो,
तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो।।
विनय राग दीपक महं कीन्हयों,
तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों।।
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी,
आपहुं भरे डोम घर पानी।।
तैसे नल पर दशा सिरानी,
भूंजीमीन कूद गई पानी।।5।।
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई,
पारवती को सती कराई।।
तनिक विलोकत ही करि रीसा,
नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा।।
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी,
बची द्रौपदी होति उघारी।।
कौरव के भी गति मति मारयो,
युद्ध महाभारत करि डारयो।।6।।
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला,
लेकर कूदि परयो पाताला।।
शेष देवलखि विनती लाई,
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई।।
वाहन प्रभु के सात सजाना,
जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना।।
जम्बुक सिंह आदि नख धारी,
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी।।7।।
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं,
हय ते सुख सम्पति उपजावैं।।
गर्दभ हानि करै बहु काजा,
सिंह सिद्धकर राज समाजा।।
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै,
मृग दे कष्ट प्राण संहारै।।
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी,
चोरी आदि होय डर भारी।।8।।
तैसहि चारि चरण यह नामा,
स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा।।
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं,
धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं।।
समता ताम्र रजत शुभकारी,
स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी।।
जो यह शनि चरित्र नित गावै,
कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै।।9।।
अद्भुत नाथ दिखावै लीला,
करैं शत्रु के नशि बलि ढीला।।
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई,
विधिवत शनि ग्रह शांति कराई।।
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत,
दीप दान दै बहु सुख पावत।।
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा,
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा।।10।।
दोहा
पाठ शनिश्चर देव को,
की हों भक्त तैयार,
करत पाठ चालीस दिन,
हो भवसागर पार।।
शनि चालीसा के अलावा दशरथ कृत शनि स्त्रोत का पाठ भी सुखदाई है । राजा दशरथ ने शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए इस स्त्रोत की रचना की थी । इसीलिए इस स्त्रोत को दशरथ कृत शनि स्त्रोत भी कहा गया है ।
राजा दशरथ कृत शनि स्त्रोत:
राजा दशरथ कृत शनि स्त्रोत:
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।
नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च।।
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते।।
तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।
देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।
प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत।
एवं स्तुतस्तद सौरिग्र्रहराजो महाबल:
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।
नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च।।
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते।।
तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।
देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।
प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत।
एवं स्तुतस्तद सौरिग्र्रहराजो महाबल:
शनि चालीसा के फायदे / लाभ : Shani Chalisa Ke Fayade Hindi (Benefits of Shani Chalisa in Hindi)
- शनि चालीसा के पाठ से जीवन में संकट, विपत्तियां मिटती हैं।
- जीवन में साढ़े साती की दशा दूर होती है।
- शनि चालीसा के पाठ से जीवन में मानसिक शान्ति प्राप्त होती है।
- यदि शनि चालीसा का पाठ शनि मंदिर में किया जाए तो पितृ दोष दूर होता है।
- नियमित रूप से शनि चालीसा का पाठ करने से बिगड़े हुए कार सुधरते हैं।
- गृहस्थ जीवन में शनि देव की मूर्ति को स्थापित नहीं करना चाहिए।
- दरिद्रता और अभाव दूर होते हैं नियमित रूप से शनि चालीसा के पाठ से।
- जीवन में किसी कार्य में आ रही अड़चने दूर होती हैं।
- शनि और भगवान् हनुमान दोनों ही कलियुग में जाग्रत देव हैं।
- किसी व्यक्ति को राजा बना देना, राजा से रंक बना देना, विद्वान बना देना शनि देव के ही कार्य हैं, अतः शनि देव की कृपा पाना अत्यंत ही आवश्यक है।
- शनि देव समस्याएँ उत्पन्न अवश्य ही करता है लेकिन भविष्य को भी उज्ज्वल करता है।
- शनि चालिसा के पाठ से शत्रुओं का मुकाबला करने के शक्ति बढ़ जाती है।
- ध्यान रखें की शनिवार को सूर्य अस्त होने के बाद इसका पाठ अधिक लाभदायी होता है।
इस स्त्रोत का पाठ करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं और सबकी विपदाओं को दूर करते हैं। राजा दशरथ जी ने भी यही स्त्रोत पढ़कर शनिदेव को प्रसन्न ने किया था। शनिदेव क्रूर ग्रह नहीं है। लेकिन बुरे कर्मों का फल अवश्य देते हैं। इसीलिए इन्हें कर्मफल दाता भी कहा जाता है। शनिदेव के प्रकोप से बचने के लिए अच्छे कार्य करने चाहिए।
शनिदेव को प्रसन्न करने के उपाय : ऐसे करें शनि देव जी को प्रशन्न.
- शनि देव को प्रसन्न करने के लिए धर्म-कर्म को मानना चाहिए ।
- धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों पर शनिदेव की कृपा बनी रहती है ।
- ईमानदार एवं भरोसेमंद व्यक्तियों पर भी सदैव अपनी कृपा बरसाते हैं ।
- शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए अन्न का सम्मान करना चाहिए ।
- अन्न को बर्बाद नहीं करना चाहिए।
- गरीबों में अन्न का दान करना चाहिए।
- प्रकृति को प्रेम करने वाले लोग भी शनिदेव को प्रिय होते हैं ।
- पेड़ पौधे लगाने चाहिए ।
- जानवरों की सेवा करनी चाहिए ।
- बीमार और भूखे जानवरों को दवा और चारा डालना चाहिए ।
- मेहनत करने वाले लोग शनिदेव की कृपा के पात्र होते हैं ।
- मेहनत करने वाले को कभी भी शनिदेव के प्रकोप का सामना नहीं करना पड़ता है।
- दूसरों से प्रेम करने वाले और सभी का मान सम्मान करने वाले व्यक्ति भी शनिदेव की कृपा के पात्र होते हैं। इन सभी बातों को ध्यान में रखकर आप शनिदेव के दुष्प्रभावों से बच सकते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। शनिदेव को प्रसन्न करके रंक से राजा बना जा सकता है । इसलिए सभी से प्रेम करें, सभी की देखभाल करें, मेहनत करें, धर्म का पालन करें, धार्मिक प्रवृत्ति अपनाएं, गरीब और जरूरतमंदों की मदद करें।
ऐसे करें शनि चालीसा का पाठ Shani Chalisa Ka Path Karne ki Vidhi
सूर्य अस्त हो जाने के उपरान्त शनिवार के दिन यदि सम्भव हो तो शनि या हनुमान जी के मंदिर में जाएं। अपने मन में संकल्प करें की आपको कितनी बार चालीसा का पाठ करना है। यदि पिप्पल का पेड़ हो तो उसके निचे बैठ कर अवश्य इसका पाठ करें, जो की अधिक लाभदाई होता है। कम से कम ११ शनिवार को इसका पाठ अवश्य ही करें।
चालीसा का पाठ करने से पहले स्वंय के सामने एक लोहे के टुकड़े को काले कपडे में लपेट लें और ११ बार चालीसा का पाठ करें। इस विधि को ११ से २१ शनिवार को जाप करना लाभदायी होता है। यदि काला आसन उपलब्ध हो तो श्रेष्ठ रहेगा। चालीसा के उपरान्त फल का दान करना उचित रहता है। चालीसा के पाठ के रोज मंगलवार और शनिवार को मांस और मदिरा का सेवन भूल कर भी नहीं करनी चाहिए।
चालीसा का पाठ करने से पहले स्वंय के सामने एक लोहे के टुकड़े को काले कपडे में लपेट लें और ११ बार चालीसा का पाठ करें। इस विधि को ११ से २१ शनिवार को जाप करना लाभदायी होता है। यदि काला आसन उपलब्ध हो तो श्रेष्ठ रहेगा। चालीसा के उपरान्त फल का दान करना उचित रहता है। चालीसा के पाठ के रोज मंगलवार और शनिवार को मांस और मदिरा का सेवन भूल कर भी नहीं करनी चाहिए।
शनि दव के कुछ मंत्र हैं जिन का जाप करने से शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या के दौरान आई मुसीबतों से छुटकारा मिलता है और शनि की कृपा प्राप्त होती हैं।
Other Version of Shani Chalisa Hindi
॥ दोहा ॥आइए जानते हैं शनिदेव के मंत्र चमत्कारिक मंत्र
श्री शनिश्चर देवजी,
सुनहु श्रवण मम् टेर।
कोटि विघ्ननाशक प्रभो,
करो न मम् हित बेर॥
॥ सोरठा ॥
तव स्तुति हे नाथ,
जोरि जुगल कर करत हौं।
करिये मोहि सनाथ,
विघ्नहरन हे रवि सुव्रन॥
॥ चौपाई ॥
शनि देव मैं सुमिरौं तोही,
विद्या बुद्धि ज्ञान दो मोही।
तुम्हरो नाम अनेक बखानौं,
क्षुद्रबुद्धि मैं जो कुछ जानौं।
अन्तक, कोण, रौद्रय मगाऊँ,
कृष्ण बभ्रु शनि सबहिं सुनाऊँ।
पिंगल मन्दसौरि सुख दाता,
हित अनहित सब जब के ज्ञाता।
नित जपै जो नाम तुम्हारा,
करहु व्याधि दुःख से निस्तारा।
राशि विषमवस असुरन सुरनर,
पन्नग शेष सहित विद्याधर।
राजा रंक रहहिं जो नीको,
पशु पक्षी वनचर सबही को।
कानन किला शिविर सेनाकर,
नाश करत सब ग्राम्य नगर भर।
डालत विघ्न सबहि के सुख में,
व्याकुल होहिं पड़े सब दुःख में।
नाथ विनय तुमसे यह मेरी,
करिये मोपर दया घनेरी।
मम हित विषम राशि महँवासा,
करिय न नाथ यही मम आसा।
जो गुड़ उड़द दे वार शनीचर,
तिल जव लोह अन्न धन बस्तर।
दान दिये से होंय सुखारी,
सोइ शनि सुन यह विनय हमारी।
नाथ दया तुम मोपर कीजै,
कोटिक विघ्न क्षणिक महँ छीजै।
वंदत नाथ जुगल कर जोरी,
सुनहु दया कर विनती मोरी।
कबहुँक तीरथ राज प्रयागा,
सरयू तोर सहित अनुरागा।
कबहुँ सरस्वती शुद्ध नार महँ,
या कहुँ गिरी खोह कंदर महँ।
ध्यान धरत हैं जो जोगी जनि,
ताहि ध्यान महँ सूक्ष्म होहि शनि।
है अगम्य क्या करू बड़ाई,
करत प्रणाम चरण शिर नाई।
जो विदेश से बार शनीचर,
मुड़कर आवेगा जिन घर पर।
रहैं सुखी शनि देव दुहाई,
रक्षा रवि सुत रखें बनाई।
जो विदेश जावैं शनिवारा,
गृह आवें नहिं सहै दुखारा।
संकट देय शनीचर ताही,
जेते दुखी होई मन माही।
सोई रवि नन्दन कर जोरी,
वन्दन करत मूढ़ मति थोरी।
ब्रह्मा जगत बनावन हारा,
विष्णु सबहिं नित देत अहारा।
हैं त्रिशूलधारी त्रिपुरारी,
विभू देव मूरति एक वारी।
इकहोइ धारण करत शनि नित,
वंदत सोई शनि को दमनचित।
जो नर पाठ करै मन चित से,
सो नर छूटै व्यथा अमित से।
हौं मंत्र धन सन्तति बाढ़े,
कलि काल कर जोड़े ठाढ़े।
पशु कुटुम्ब बांधन आदि से,
भरो भवन रहिहैं नित सबसे।
नाना भांति भोग सुख सारा,
अन्त समय तजकर संसारा।
पावै मुक्ति अमर पद भाई,
जो नित शनि सम ध्यान लगाई।
पढ़ै प्रात जो नाम शनि दस,
रहैं शनीश्चर नित उसके बस।
पीड़ा शनि की कबहुँ न होई,
नित उठ ध्यान धरै जो कोई।
जो यह पाठ करैं चालीसा,
होय सुख साखी जगदीशा।
चालिस दिन नित पढ़े सबेरे,
पातक नाशे शनी घनेरे।
रवि नन्दन की अस प्रभुताई,
जगत मोहतम नाशै भाई।
याको पाठ करै जो कोई,
सुख सम्पत्ति की कमी न होई।
निशिदिन ध्यान धरै मनमाहीं,
आधिव्याधि ढिंग आवै नाहीं।
॥ दोहा ॥
पाठ शनीश्चर देव को,
कीहौं विमल तैयार।
करत पाठ चालीस दिन,
हो भवसागर पार॥
जो स्तुति दशरथ जी कियो,
सम्मुख शनि निहार।
सरस सुभाषा में वही,
ललिता लिखें सुधार॥
ॐ शं शनिश्चराय नम:यह शनि देव का सबसे सरल मंत्र है। इसका जाप आसानी से किया जा सकता है। इस मंत्र का जाप शाम के समय किया जाता है। मंत्र का जाप करते समय काले वस्त्र धारण करने चाहिए। शनि मंदिर में सरसों का तेल का दीपक जलाएँ। काले तिल और काला वस्त्र शनिदेव को अर्पित करें। इसके बाद इस मंत्र का जाप करें।
सुखद और सफल जीवन की कामना के लिए इस मंत्र का जाप करें:
अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वर।।
गतं पापं गतं दु:खं गतं दारिद्रय मेव च।
आगता: सुख-संपत्ति पुण्योऽहं तव दर्शनात्।।
शनि देव जी का तांत्रिक मंत्र:
ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः।शनि देव जी का वैदिक मंत्र:
ऊँ शन्नो देवीरभिष्टडआपो भवन्तुपीतये।
शनि देव जी का एकाक्षरी मंत्र:
ऊँ शं शनैश्चाराय नमः।
शनि देव जी का गायत्री मंत्र:
ऊँ भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्।ऊँ श्रां श्रीं श्रूं शनैश्चाराय नमः।
ऊँ हलृशं शनिदेवाय नमः।
ऊँ एं हलृ श्रीं शनैश्चाराय नमः।
ऊँ मन्दाय नमः।
ऊँ सूर्य पुत्राय नमः।
शनिदेव की दशा साढ़ेसाती या ढैय्या के प्रतिकूल प्रभाव से बचना चाहते हैं और शनिदेव को प्रसन्न करना चाहते है इन मंत्र का जाप करें :
ऊँ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम ।शनिदेव की प्रतिकूल परिस्थितियों को अनुकूल बनाने के लिए हम हनुमान जी की पूजा भी कर सकते हैं । एक बार हनुमान जी ने शनिदेव की रक्षा की थी । तभी शनिदेव जी ने उन्हें वरदान दिया था कि जो हनुमान जी की पूजा करेगा उस पर शनिदेव हमेशा मेहरबान रहेंगे, साढ़ेसाती और ढैय्या के समय भी उनको परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ेगा तथा शनिदेव की कृपा बनी रहेगी।
उर्वारुक मिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात ।
ॐ शन्नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।शंयोरभिश्रवन्तु नः। ऊँ शं शनैश्चराय नमः।
ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।
भजन श्रेणी : शनि भजन (Shani Bhajan/Shani Dev Bhajan)
कर्मफल दाता शनिदेव का पावन चालीसा || जयति जयति शनिदेव दयाला || Shri Shani Chalisa
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