सोधु शबद में कनियारी भजन

सोधु शबद में कनियारी भई भजन

 
सोधु शबद में कनियारी लिरिक्स Sodhu Shabad Me Kanihaari Bhajan Lyrics

खेल ब्रह्माण्ड का पिंड में देखिया,जगत की भर्मना दूरि भागी।
बाहर भीतरा एक आकाशवत,सुषुमना डोरि तहँ उलटि लागी।। 
पवन को उलटि करि सुन्न में घर किया,धरिया में अधर भरपूर देखा। 
कहें कबीर गुरु पूरे की मेहर सों तिरकुटी मद्ध दीदार देखा। 
धरती तो रोटी भई, और कागा लिए ही जाए,
पूछो अपने गुरु से वो कहां बैठकर खाए।  
ऐजी शब्द कहां से उठता, और कहो कहां को जाए,
हाथ पाँव वाको नहीं तो फिर कैसे पकड़ा जाए
शबद के मारा गिर पड़ा, शब्द ने छोड़ा राज,
जिन जिन शब्द विवेक किया, सर गया काज,  
 
यह एक कबीर साहेब की उलटबासी का भजन है। उलटबासी के शब्दों का अर्थ सामान्य अर्थ से उल्टा ही अर्थ लगाया जाता है।
सोधु शबद में कनियारी भई,
ढूँढूँ शबद में कनियारी,
बिना डोर जल भरे कुए से,
बिना शीश की वा पणिहारी,
सोधू शबद में कणिहारी भई।


भव बिन खेत, कुआ बिन बाड़ी,
जल बिन रहट चले भारी,
बिना बीज़ एक बाड़ी रे बोई,
बिन पात के बेल चली,
बिना मुँह का मिरगला उन,
बाड़ी को खाता घडी घड़ी,
बिना चोँच का चिरकला उन,
बाड़ी को चुगता घड़ी घड़ी,
सोधू शबद में कणिहारी भई।

ले धनुष वो चला शिकारी,
नहीं धनुष पर चाप चढ़ी,
मिरग मार भूमि पर राखिया,
नहीं मिरग को चोट लगी,
मुआ मिरग का माँस लाया,
कुण नर की देखो बलिहारी,
सोधू शबद में कणिहारी भई।

धड़ बिन शीश, शीश बिन गगरी,
वा भर पानी चली पनिहारी,
करूँ विनती उतारो गागरी,
जेठ जेठाणी मुस्कानी,
सोधू शबद में कणिहारी भई।

बिन अग्नि रसोई पकाई,
वा सास नणद के बहु प्यारी,
देखत भूख भगी है बालम की,
चतुर नार की वा चतुराई,
सोधू शबद में कणिहारी भई।

कहे कबीर सुणो भाई साधो,
ये बात है निर्बाणि,
इना भजन की करे खोजना,
उसे समझना ब्रह्मज्ञानी,
सोधू शबद में कणिहारी भई।  



सोधु - शोध करना, अनुसंधान करना।
शबद - गुरु के उपदेश।
भव बिन खेत- धरती के बगैर खेत।
कुआ बिन बाड़ी- कुए के बिना बाड़ी।
जल बिन रहट चले भारी- बिना जल के रहट चलता है।
बिना बीज़ एक बाड़ी रे बोई-बगैर बीज ही बाड़ी को बो दिया गया है, उगाया गया है।
बिन पात के बेल चली- बिना पत्तों के बेल आगे बढ़ती है।
बिना मुँह का मिरगला उन- बगैर मुँह के हिरण (मिरगला) उसे (उन)
बाड़ी को खाता घडी घड़ी- बाड़ी को घडी घडी खाता रहता है।
बिना चोँच का चिरकला उन- बगैर चोँच के चिड़िया (चिरकला).
बाड़ी को चुगता घड़ी घड़ी- बाड़ी में से अन्न को बार बार चुगता रहता है।
ले धनुष वो चला शिकारी-धनुष लेकर शिकारी चल पड़ता है।
नहीं धनुष पर चाप चढ़ी-धनुष पर चाप नहीं चढ़ी होती है।
मिरग मार भूमि पर राखिया-हिरण को मार करके भूमि पर रखता है।
नहीं मिरग को चोट लगी-मिरग मरा नहीं और उसे चोट भी नहीं लगी।
मुआ मिरग का माँस लाया-मृग का मांस लेकर आता है। 
 
Sodhu Shabad Mein Kaniyaaree Bhai,
Dhoondhoon Shabad Mein Kaniyaaree,
Bina Dor Jal Bhare Kue Se,
Bina Sheesh Kee Va Panihaaree,
Sodhu Shabad Mein Kanhinari Bhai.

धरती तो रोटी भई, और कागा लिए ही जाए, पूछो अपने गुरु से वो कहां बैठकर खाए. ऐजी शब्द कहां से उठता, और कहो कहां को जाए हाथ पांव वाको नहीं तो फिर कैसे पकड़ा जाए...कबीर भजन और कबीर शबद पर प्रहलाद सिंह टिपानिया का यह भजन साहित्य तक पर सुनिए.
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