आजि कि काल्हि कि पचे दिन हिंदी मीनिंग
आजि कि काल्हि कि पचे दिन, जंगल होइगा बास।
ऊपरि ऊपरि फिरहिंगे, ढोर चरंदे घास॥
Aaji Ki Kalhi Ki Pache Din, Jangal Hoiga Baas,
Upari Upari Phirahinge, Dhor Charande Ghaas
(यह तन काचा कुंभ है, मांहि कया ढिंग बास।
कबीर नैंण निहारियाँ, तो नहीं जीवन आस॥)
आजि कि काल्हि : आज या कल.
कि पचे दिन : या इसके उपरान्त आने वाले दिन.
जंगल होइगा बास : जंगल (शमशान) में ही वास होगा.
ऊपरि ऊपरि : के ऊपर.
फिरहिंगे : फिरेंगे.
ढोर : पशु, जानवर.
चरंदे घास : घास चरेंगे.
कबीर साहेब की इस साखी का मूल भाव है की यह तन स्थाई नहीं है, एक रोज इसे समाप्त हो ही जाना है. या तो आज या कल एक रोज तो जंगल में ही वास होना है और तुम्हारी चिता पर ऊपर घास उगेगी जिसे जानवर चरेंगे. भाव है की इस तन पर घमंड करना व्यर्थ है, यह स्थाई नहीं है, इसे एक रोज समाप्त हो जाना है. जीवन का मूल उद्देश्य हरी सुमिरण ही है.
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।
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