आजि कि काल्हि कि पचे दिन हिंदी मीनिंग Aaji Ki Kalhi Ki Pache Meaning कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित (Kabir Ke Dohe Hindi Meaning/Hindi Bhavarth)
आजि कि काल्हि कि पचे दिन, जंगल होइगा बास।ऊपरि ऊपरि फिरहिंगे, ढोर चरंदे घास॥
Aaji Ki Kalhi Ki Pache Din, Jangal Hoiga Baas,
Upari Upari Phirahinge, Dhor Charande Ghaas
(यह तन काचा कुंभ है, मांहि कया ढिंग बास।
कबीर नैंण निहारियाँ, तो नहीं जीवन आस॥)
आजि कि काल्हि : आज या कल.
कि पचे दिन : या इसके उपरान्त आने वाले दिन.
जंगल होइगा बास : जंगल (शमशान) में ही वास होगा.
ऊपरि ऊपरि : के ऊपर.
फिरहिंगे : फिरेंगे.
ढोर : पशु, जानवर.
चरंदे घास : घास चरेंगे.
कि पचे दिन : या इसके उपरान्त आने वाले दिन.
जंगल होइगा बास : जंगल (शमशान) में ही वास होगा.
ऊपरि ऊपरि : के ऊपर.
फिरहिंगे : फिरेंगे.
ढोर : पशु, जानवर.
चरंदे घास : घास चरेंगे.
कबीर साहेब की इस साखी का मूल भाव है की यह तन स्थाई नहीं है, एक रोज इसे समाप्त हो ही जाना है. या तो आज या कल एक रोज तो जंगल में ही वास होना है और तुम्हारी चिता पर ऊपर घास उगेगी जिसे जानवर चरेंगे. भाव है की इस तन पर घमंड करना व्यर्थ है, यह स्थाई नहीं है, इसे एक रोज समाप्त हो जाना है. जीवन का मूल उद्देश्य हरी सुमिरण ही है.