यह तनु काचा कुंभ है चोट चहूँ दिसि खाइ मीनिंग
यह तनु काचा कुंभ है, चोट चहूँ दिसि खाइ।
एक राम के नाँव बिन, जदि तदि प्रलै जाइ॥
Yah Tanu Kacha Kumbh Hai, Chot Chahu Disi Khai,
Ek Raam Ke Naav Bin, Jadi Tadi Prale Jaai.
यह तनु : यह तन/मानव देह.
काचा : कच्चा, कोमल.
कुंभ : मटका, घड़ा.
चोट चहूँ दिसि खाइ : हर तरफ से चोट लगनी है.
एक राम के : इश्वर का नाम सुमिरण.
नाँव बिन : नाम के बिना, नाम के बगैर.
जदि तदि : जब कभी.
प्रलै जाइ : प्रलय होनी है, नष्ट होनी है.
कबीर साहेब की वाणी है की यह तन कच्चे घड़े के समान है. जैसे कुम्भकार उसे अपने हाथों के थपेड़ों से चारों तरफ से चोट मारता है वैसे ही राम के नाम (सुमिरण) के अभाव में माया के थपेड़ों का सामना करना पड़ता है. जीवन के समस्त कष्ट और संताप मायाजनित ही होते हैं. माया के भरम में पड़कर ही जीव स्वंय को इस जगत से जोड़ लेता है और दुखी रहता है. जहाँ पर जुड़ाव होता है वहीँ पर संताप उत्पन्न होता है. साहेब यही समझाने का प्रयत्न कर रहे हैं की इस संसार में सिवाय चोट के कुछ प्राप्त नहीं होने वाला है, इसलिए हरी के नाम का सुमिरण करना चाहिए. हरी के नाम सुमिरण के अभाव में वह विभिन्न प्रकार की यातनाओं का सामना करता है. प्रस्तुत साखी में रूपक अलंकार की सफल व्यंजना हुई है.
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।
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