डागल उपरि दौड़णां सुख नींदड़ी मीनिंग
डागल उपरि दौड़णां सुख नींदड़ी न सोइ मीनिंग
डागल उपरि दौड़णां, सुख नींदड़ी न सोइ।पुनै पाए द्यौंहणे, ओछी ठौर न खोइ॥
Dagal Upari Doudana, Sukh Nindadi Na Soi,
Pune Paae Dyohane, Ochhi Thour Na Khoi.
डागल : कठिन और उबड खाबड़ जगह.
उपरि : के ऊपर.
दौड़णां : दौड़ना.
सुख : सुख चैन, आराम, निश्चिंत.
नींदड़ी : नींद, निंद्रा.
न सोइ: नींद मत लो, नींद मत लो.
पुनै पाए : दुबारा
द्यौंहणे : मंदिर देवालय.
ओछी ठौर : निकृष्ट कार्य, नीच कर्म.
न खोइ : बर्बाद मत करो.
उपरि : के ऊपर.
दौड़णां : दौड़ना.
सुख : सुख चैन, आराम, निश्चिंत.
नींदड़ी : नींद, निंद्रा.
न सोइ: नींद मत लो, नींद मत लो.
पुनै पाए : दुबारा
द्यौंहणे : मंदिर देवालय.
ओछी ठौर : निकृष्ट कार्य, नीच कर्म.
न खोइ : बर्बाद मत करो.
कबीर साहेब की वाणी है की तुम बेफिक्र होकर नींद में मत रहो, यह तुम्हे तो कई प्रकार के विकट स्थानों और परिस्थितियों से गुजरना है. यह मानव देख पाकर, जो की देवालय के समान है, तुम ओछे कर्म में लिप्त मत रहो. उल्लेखनीय है की अनेकों प्रकार के जीवन प्राप्त करने के बाद मानव देह को प्राप्त किया है, इसलिए इसे व्यर्थ में खो देना उचित नहीं है. हरी के नाम का सुमिरण और हृदय से इश्वर की भक्ति ही मुक्ति का मार्ग होता है. माया के प्रभाव में आकर व्यर्थ में गाफिल होकर इसे बर्बाद मत करो. साधना का पथ अवश्य ही कुछ विकट है लेकिन मुक्ति का मार्ग भी यही है.
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |
