कबीर कोठी काठ की दहुँ दिसि लागी आगि मीनिंग कबीर के दोहे

कबीर कोठी काठ की दहुँ दिसि लागी आगि मीनिंग Kabir Kothi Kath Ki Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit (kabir Dohe Hindi Meaning/Bhavarth/Hindi Arth)

कबीर कोठी काठ की, दहुँ दिसि लागी आगि ।
पंडित पंडित जल गुए, मूरख उबरे भागि ॥
Kabir Kothi Kaath Ki, Dahu Disi Lagi Aagi,
Pandit Pandit Jal Gue, Murakh Ubare Bhagi.

कबीर कोठी काठ की  : जय जगत काष्ठ, लकड़ी की कोठी, कोठरी (मकान) है.
दहुँ दिसि लागी आगि : इस काष्ठ की कोठी में दासों दिशाओं में अग्नि लगी है, आग से जल रही है.
पंडित पंडित जल गुए : जगत की आसक्ति होने के कारण पंडित लोग जल मरते हैं.
मूरख उबरे भागि :मुर्ख व्यक्ति बच जाते हैं. ऐसे लोग जिनको पंडित मुर्ख समझते हैं.
कबीर साहेब की वाणी है की यह जगत लकड़ी की एक कोठरी है जिसमें दसों दिशाओं में आग लगी है. इसमें पंडित लोग जगत में आसक्ति रखने के कारण जलकर मर जाते हैं, वे आसक्ति होने के कारन नष्ट होते हैं. लेकिन पंडित लोग जिन संत जन को मुर्ख समझते हैं वे इस अग्नि से बच जाते हैं क्यों की वे संसार में रहकर भी संसार से स्वंय को दूर रखते हैं. 

कबीर के दोहे हिंदी भावार्थ/हिंदी अर्थ/ हिंदी मीनिंग सहित। श्रेणी : कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग
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