कबीर हद के जीव सूँ हित करि मुखाँ न बोलि हिंदी मीनिंग Kabir Had Ke Jeev Su Meaning Kabir Dohe

कबीर हद के जीव सूँ हित करि मुखाँ न बोलि हिंदी मीनिंग Kabir Had Ke Jeev Su Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe Hindi Meaning (Hindi Bhavarth/Arth)

कबीर हद के जीव सूँ, हित करि मुखाँ न बोलि
जे लागे बेहद सूँ, तिन सूँ अंतर खोलि॥
(कबीर साषत की सभा, तू मत बैठे जाइ।
एकै बाड़ै क्यू बड़ै, रीझ गदहड़ा गाइ॥)
Kabir Had Ke Jeev Su, Hit Kari Mukha Na Boli,
Je Laage Behad Su, Tin Su Antar Kholi.

हद के जीव : ऐसे जीव जो संसार के कार्यों में लिप्त हैं, संलिप्त हैं.
सूँ : से (सांसारिक क्रियाओं में लिप्त व्यक्तियों से.)
हित करि : प्रेमपूर्वक, प्रेम सहित.
मुखाँ न बोलि : मुख से मत बोलो, सम्बन्ध मत रखो.
जे लागे बेहद सूँ : यदि तुम बेहद से लगते हो तो.
तिन सूँ : उनसे.
अंतर खोलि : हृदय को खोलकर, हृदय की बात करो.

प्रस्तुत साखी में कबीर साहेब की वाणी है की हे जीव तुम ऐसे व्यक्तियों से सम्पर्क मत करो जो सांसारिक क्रियाओं में पूर्ण रूप से संलिप्त हैं. ऐसे लोगों से तुम स्नेह बढाकर मुख से मत बोलो. जो लोग सांसारिक क्रियाओं से ऊपर उठ चुके हैं तुम उनसे तुम संपर्क जोड़ों. जो ससीम व्यक्ति नहीं है तुम उनसे अपने हृदय को जोड़ो. इस दोहे का भाव है की व्यक्ति जैसी संगती में रहता है उसकी मनोवृति वैसी ही बन जाती है. इसलिए उसको कबीर साहेब का सन्देश है की ऐसे व्यक्तियों के साथ में मत रहो क्योंकि वे स्वंय ही माया के बंधन में जकडे हुए हैं. यदि उनकी संगती की जाती है तो अवश्य ही उनका प्रभाव स्वंय पर लक्षित होने लगेगा. इसलिए ऐसे व्यक्तिओं से अपने हृदय को जोड़ों जो बेहद (संसार की क्रियाओं से उपर) उठ चुके हैं. ऐसे व्यक्ति संतजन होते हैं और उनकी संगती से अवश्य ही मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है.
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