कबीर केवल राम की तूँ जिनि छाड़ै ओट हिंदी मीनिंग Kabir Keval Ram Su Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe Hindi Meaning (Hindi Bhavarth/Hindi Arth)
कबीर केवल राम की, तूँ जिनि छाड़ै ओट।घण अहरणि बिचि लोह ज्यूँ, घणी सहे सिर चोट॥
Kabir Keval Raam Ki, Tu Jini Chhade Oat.
Ghan Aharani Bichi Loh Jyu, Ghani Sahe Sir Chot.
कबीर केवल राम की : तुम राम की. (राम की ओट को मत छोडो)
तूँ जिनि : यदि तुम (यदि तुम राम सुमिरण की ओट को छोड़ देते हो)
छाड़ै ओट : पीछे रहकर किसी की ओट लेना, सुरक्षित रहना.
घण : लोहे का एक बड़ा हथौड़ा जिसे लुहार लोहा पीटने के काम में लेता है.
अहरणि बिचि : अहिरन, निहाई. एक लोहे का भारी टुकड़ा जिसपर लुहार लोहे को रखकर उसे पीटता है, उसे मनवांछित आकार देता है.
लोह ज्यूँ : लोहे के समान.
घणी : अधिक मात्रा में, खूब.
सहे : सहता है (चोट सहता है)
सिर : अपने सर के ऊपर, मस्तक के ऊपर.
चोट : प्रहार.
तूँ जिनि : यदि तुम (यदि तुम राम सुमिरण की ओट को छोड़ देते हो)
छाड़ै ओट : पीछे रहकर किसी की ओट लेना, सुरक्षित रहना.
घण : लोहे का एक बड़ा हथौड़ा जिसे लुहार लोहा पीटने के काम में लेता है.
अहरणि बिचि : अहिरन, निहाई. एक लोहे का भारी टुकड़ा जिसपर लुहार लोहे को रखकर उसे पीटता है, उसे मनवांछित आकार देता है.
लोह ज्यूँ : लोहे के समान.
घणी : अधिक मात्रा में, खूब.
सहे : सहता है (चोट सहता है)
सिर : अपने सर के ऊपर, मस्तक के ऊपर.
चोट : प्रहार.
कबीर साहेब की वाणी है की यदि काल के प्रहार से बचना है, माया के भ्रम जाल से मुक्त होना है तो तुम राम रूपी ओट (शरण) को मत छोडो. क्योंकि यदि राम सुमिरण रूपी कवच, ओट को तुमने त्याग दिया तो अवश्य ही तुम्हारी स्थिति भी ऐसी होगी जैसे लोहे की होती है. उसे घण और एरण के मध्य में अपने मस्तक पर घनघोर चोट को सहन करना पड़ता है.
राम सुमिरण से जीव इस संसार के संताप से बच सकता है. अन्यथा उसे माया अपने भरम जाल में फंसाकर उसका जीवन कौड़ी में बदल देती है. प्रस्तुत साखी में द्रष्टान्त और उदाहरण अलंकार की व्यंजना हुई है.
राम सुमिरण से जीव इस संसार के संताप से बच सकता है. अन्यथा उसे माया अपने भरम जाल में फंसाकर उसका जीवन कौड़ी में बदल देती है. प्रस्तुत साखी में द्रष्टान्त और उदाहरण अलंकार की व्यंजना हुई है.