कबीर मन बिकरै पड़ा गया स्वादि के साथ मीनिंग Kabir Man Bikare Pada Meaning Kabir Dohe

कबीर मन बिकरै पड़ा गया स्वादि के साथ मीनिंग Kabir Man Bikare Pada Meaning Kabir Dohe, Kabir Doha Hindi Meaning (Hindi Arth/Bhavarth)

कबीर मन बिकरै पड़ा, गया स्वादि के साथ।
गलका खाया बरजताँ, अब क्यूँ आवै हाथि॥
Kabir Man Bikare Pada, Gaya Swadi Ke Saath,
Galaka Khaya Barajata, Abu Kyu Aave Haathi.

कबीर मन बिकरै पड़ा : मन तो विषय विकारों में पड़ गया है.
गया स्वादि के साथ : वह स्वाद के साथ, विकारों में पड़ गया है. वह स्वाद के पीछे ही चला है.
गलका खाया: गले तक खाया, ठूंस ठूंस कर खाया.
बरजताँ : रोकना, मना करना.
अब क्यूँ आवै हाथि : अब कैसे हाथ में आएगा. कैसे नियंत्रित होगा (भक्ति से ही हाथ आयेगा.)

प्रस्तुत साखी में कबीर साहेब की वाणी है की तुमने अपने मन के मुताबिक़ कार्य किए हैं, विषय विकार में तुम पूर्ण रूप से पड़े रहे और अपने विषयों रसों का भोग किया है. ऐसा करते हुए तुमने स्वंय को कभी रोका नहीं. अब ऐसे में तुमको भक्ति किस विधि से प्राप्त हो सकती है. भाव है की भक्ति मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए, हरी भक्ति को प्राप्त करने के लिए तुमको अवश्य ही हरी के नाम का सुमिरण करना होगा और विषय वासनाओं, काम क्रोध, मद लोभ माया आदि से दूर रहना होगा. तुम पूर्ण रूप से, गले तक विषय वासनाओं में पड़े रहे, कभी भी तुमने स्वंय को मना नहीं किया. साधक को चाहिए की वह यह समझे की विषय वासनाओं में पड़कर वह भक्ति को प्राप्त नहीं कर सकता है. भक्ति को प्राप्त करने के लिए उसे अवश्य ही विषय विकारों से दूर रहना होगा. यह मानसिक अनुशाशन है. स्वंय को नियंत्रित करने का यही मार्ग कबीर साहेब ने बताया है. बाह्य भटकाव को आत्मिक अनुशासन और आत्मिक केन्द्रीकरण के माध्यम से ठीक किया जा सकता है.
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